नई दिल्ली: किसी भी देश और नागरिकों के लिए वह हालात ज्यादा खराब होते हैं जब लोग गुमराह होकर उपद्रवी बन जाएं. फिलहाल देश में कुछ ऐसा ही माहौल बन रहा है जहां पर प्रदर्शनकारियों को उपद्रवी बनाने में अफवाहों की सबसे बड़ी भूमिका सामने आ रही है. ऐसी ऐसी अफवाहें उड़ाई जा रही हैं जिससे कि एक आम नागरिक भी घबरा कर हिंसा में शामिल हो जाए.


सीलमपुर घटना की आंखों देखी


ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिला जब दिल्ली के सीलमपुर में हिंसा भड़की. जो लोग हिंसा में शामिल थे उनमें से अधिकतर लोगों को यह पता भी नहीं कि आखिर वह यह हिंसा कर क्यों रहे हैं. अगर कुछ पता था तो यह कि उनको देश से निकाला जा रहा है सरकार उनको देश से निकाल देगी. अधिकतर लोगों को तो नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के बारे में भी सही से जानकारी नहीं थी. कुछ थी तो बस यही कि सरकार ऐसे कानून बना रही है जिससे मुसलमानों को देश से निकाल दिया जाएगा और इसी अफवाह के चलते प्रदर्शनकारी उपद्रवी बनते चले गए.


हालांकि यह साफ कर देना भी जरूरी है कि इस प्रदर्शन में भी ऐसा नहीं कि सभी लोग उपद्रव के लिए तैयार थे बहुत सारे लोग ऐसे थे जिनको जब तक कुछ समझ में आता तब तक वह भीड़ का हिस्सा बन चुके थे. बहुत सारे लोग अपने घरों में दुबक कर बैठ गए तो कई लोग बचने का रास्ता ढूंढने लगे, लेकिन जो लोग इस मकसद से ही अफवाह फैला रहे थे कि उनको उपद्रव और हिंसा का मौका मिले उनको वहां पूरा मौका मिल गया. जनता की भीड़ में शामिल वह उपद्रवी अपने मकसद में कामयाब होने लगे.


पहले पुलिस के ऊपर उन्होंने यह कहते हुए पथराव शुरु किया कि पुलिस उनको आगे नहीं बढ़ने दे रही जबकि प्रदर्शनकारियों के मुताबिक पहले से ही तय था कि वह एक सीमा तक ही जाएंगे, लेकिन प्रदर्शन में शामिल उपद्रवियों की मंशा ही दूसरी थी उन्होंने उस सीमा को पार करने की भी कोशिश शुरू कर दी और जब पुलिस ने उनको रोका तो पथराव शुरू कर दिया. हालात यह हो गए कि आने जाने वाली आम जनता के ऊपर भी पथराव होने लगा जिसमें कई लोग घायल हो गए और जब हालात ऐसे बनने लगे तो पुलिस को भी कार्रवाई करनी ही थी, पुलिस ने भी कार्रवाई की और आंसू गैस के गोलों और लाठीचार्ज का सहारा लेकर हालात को सामान्य करने की कोशिश की.


उपद्रवियों की साजिश आम जनता का नुकसान


दिल्ली के सीलमपुर में हुई घटना ने भी यही जाहिर किया कि अफवाह जब फैलती है तो आम जनता भी उपद्रवी की श्रेणी में आ जाती है क्योंकि उपद्रवियों का कोई अलग चेहरा नहीं होता वह उसी भीड़ का हिस्सा होते हैं. हालांकि आम जनता अपना या किसी और का नुकसान नहीं करना चाहती लेकिन उपद्रवियों का मकसद ही दूसरा होता है उनका मकसद होता है हिंसा करना और उपद्रव करना. इस सब के बीच में अगर कोई परेशान होता है, पिसता है तो वह है आम जनता. जिसको पहले तो अफवाहों के जरिए गुमराह किया जाता है और बाद में सरकारी/निजी सम्पत्तियों को हुए नुकसान की भरपाई भी आम जनता के टैक्स के पैसे से ही होती है. इस सब के बीच जो लोग को उपद्रव करते हैं वह अपने मकसद में सफल होने के बाद घरों में दुबक कर बैठ जाते हैं.


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