नई दिल्ली: गुजरात चुनाव नजदीक आ रहा है और सोशल मीडिया पर तमाम तरह की चीजें प्रचारित की जा रही हैं. इन्हीं में से एक है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वीडियो. इस वीडियो के जरिए दावा किया जा रहा है कि मुस्लिम टोपी पहनने से मना करने वाले प्रधानमंत्री मोदी गुजरात चुनाव के लिए बंद कमरे में मुस्लिम दस्तार पहन रहे हैं.

सोशल मीडिया पर काफी शेयर किए जा रहे इस वीडियो के साथ एक संदेश भी लोगों तक पहुंचाया जा रहा है. जिसमें कहा जा रहा है कि गुजरात चुनाव के लिए बंद कमरे में प्रधानमंत्री मोदी ने एक बैठक बुलाई थी. इस बैठक में एक मुस्लिम दल भी पहुंचा था और प्रधानमंत्री को जीत के लिए दस्तार पहनाया था.



वीडियो में दिख रहा है कि प्रधानमंत्री के कमरे में एक मुस्लिम दल उनसे मिलने के लिए पहुंचता है. प्रधानमंत्री उनका स्वागत करते हैं सबसे हाथ मिलाकर बातचीत होती है. और फिर उनके सिर पर एक गुलाबी रंग का साफा बांधा जाता है मोदी को शॉल भी पहनाई जाती है और हाथ में कुछ भेंट भी दी जाती है.



सितंबर 2011 में मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और सद्भावना मिशन के लिए उपवास पर बैठे थे. इस मंच पर खेड़ा जिले के रुस्तमपुर गांव के सैयद इमाम शाही पहुंचे थे. उन्होंने अपनी जेब से टोपी निकालकर मोदी को पहनानी चाही तो मोदी ने हाथ जोड़ लिए थे. लेकिन इमाम साहब अपने साथ जो शॉल लाए थे उसे मोदी ने स्वीकार कर लिया था.



अब 6 साल पहले के इसी वीडियो को आधार बनाकर सोशल मीडिया पर नई कहानी पेश की जा रही है. अब बात दस्तार वाले वीडियो की तो ये वीडियो मई 2016 का है. जब प्रधानमंत्री मोदी ने अजमेर शरीफ से आए एक डेलिगेशन से मुलाकात की थी. इसी वक्त अजमेर शरीफ से आए प्रतिनिधि मंडल ने प्रधानमंत्री मोदी के सिर पर दस्तार बांधा था.

हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती एक सूफी दरगाह है. यहां हर धर्म और जाति के लोग आकर माथा टेकते हैं. ये दरगाह हर मजहब के लिए प्रेम और सद्भभाव का संदेश देती है. यहां किसी तरह की कट्टरता नहीं है. एबीपी न्यूज़ ने दरगाह के खादिम सैय्यद फखर काज़मी चिश्ती से बात की. सैयद फखर काजमी चिश्ती ने ही मोदी के सिर पर दस्तार बांधा था. हमने उनसे पूछा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सिर पर जो पहना उसका धर्म से क्या रिश्ता है?

उन्होंने बता," यह दस्तार अजमेर शरीफ दरगाह का आशीर्वाद है, इसका मुस्लिम धर्म से कोई रिश्ता नहीं है. दरगाह के आशीर्वाद को मुस्लिम प्रतीकों से जोड़ना सही नहीं. ये परंपरा है कि बेहतर भविष्य के लिए आशीर्वाद के तौर पर दस्तारबंदी की जैती है. चुनाव से इसका कोई लेना देना नहीं है."