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वैलेंटाइन डे पर शहीदी दिवस की दावेदारी का हैरान करने वाला सच!

नई दिल्ली: आज 14 फरवरी है, मौका वैलेंटाइन डे का है. वैलेंटाइन डे को मोहब्बत करने वालों का दिन कहा जाता है लेकिन सोशल मीडिया पर इस दिन को लेकर एक बहस शुरू हो चुकी है. सोशल मीडिया पर एक दावा बेहद तेजी से वायरल हो रहा है. दावा है कि आज जिस दिन को वैलेंटाइन डे के तौर पर मनाया जा रहा है वो तो शहीदी दिवस है जिस दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई थी?

सोशल मीडिया पर इस बहस में दो धड़े हैं एक 14 फरवरी के दिन शहीदी दिवस मनाने की वकालत कर रहा है और दूसरा धड़ा पूछ रहा है कि भला अचानक वेलेंटाइन डे के दिन शहीदी दिवस की चर्चा क्यों और किस मकसद से की जा रही है?

सोशल मीडिया पर क्या है दावा? सोशल मीडिया पर तस्वीरें शेयर करते हुए लोग लिख रहे हैं, ''आज ही के दिन भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी. मेरे देश के लोगों आज वेलेंनटाइन डे नहीं आज देश के लिए काला दिन है, सलाम करें 23 साल के उस नौजवान शहीद भगत सिंह को.''

ऐसे सैकड़ों मैसेज और तस्वीर के जरिए लोगों के बीच देशभक्ति जगाने की कोशिश हो रही है. देश के नागरिकों से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत को सलाम करने की अपील की जा रही है. दूसरा पक्ष ऐसे मैसेजेस का है जो ऐसी तस्वीरों को शेयर करने वालों से ये पूछना चाहता है कि उन्हें वेलेंनटाइन डे के दिन ही देशभक्ति की भावना जगाने की इतनी तीव्र इच्छा क्यों हो रही है?

क्या है इस दावे का सच? भगत सिंह का जन्म साल 1907 में लयालपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है. भगत सिंह के लिए देश की आजादी से बड़ा कुछ नहीं था. माता-पिता जब भगत सिंह की शादी करनी चाही तो उन्होंने यही कहा था कि अगर गुलाम भारत में ही उन्हें शादी करनी हुई तो मौत ही उनकी दुल्हन होगी. देश को आजादी दिलाने के लिए भगत सिंह ने अपनी जान की परवाह भी नहीं की थी.

भगत सिंह को क्यों हुई थी फांसी? 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन का बहिष्कार करने पर अंग्रेजों ने लाठीचार्ज किया था लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय को सिर पर चोट आई थी. जिसके बाद लाला लाजपत राय की मौत हो हई थी. भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए अंग्रेज अफसर स्कॉट की हत्या की योजना बनाई थी. जब भगत सिंह और राजगुरू ने हमला बोला तो शिकार बना अंग्रेज अफसर जे पी सॉन्डर्स,जो गोलीकांड में मारा गया.

सैंडर्स हत्याकांड की तफ्तीश चलती रही भगत सिंह आजादी की जंग लड़ते रहे.1929 में भगत सिंह ने अंग्रेज सरकार के बहरे कानों तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए आज की संसद और उस समय की सेंट्रेल असेंबली में बमधमाका किया और आत्मसमर्पण कर दिया. मकसद था मुकदमें को देश में जागृति फैलाने के लिए इस्तेमाल करना और हुआ भी कुछ ऐसा ही.

भगत सिंह,राजगुरू और सुखदेव ने मुकदमे की सुनवाई में जिस तरह अंग्रेज सरकार का विरोध किया उसने देश में हजारो नवयुवकों को आजादी की लड़ाई के लिए तैयार किया. दो साल मुकदमा चला. जब अंग्रेज हारते दिखे तो उन्होंने सैंडर्स हत्याकांड में बिना सबूत भगत सिंह को और कुछ अन्य मुकदमों में राजगुरू और सुखदेव को एक साथ फांसी का ऐलान कर दिया. 23 मार्च 1931 के दिन तीनो को एक साथ फांसी दी गयी. हंसते हंसते पर फंदा चूम कर फांसी पर लटके.

दरअसल वैलेंटान डे को शहीदी दिवस के रुप में मनाने वालों ने जब श्रृद्धांजलि वाली तस्वीरें पोस्ट करना शुरू किया तो शुरू में ये संदेश गया कि भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को 14 फरवरी को फांसी दी गयी थी. इस पर जानकार लोगों ने सोशल मीडिया पर ही इस दावे का खंडन शुरू किया.

इस पर शहीदी दिवस मनाने की अपील करने वालों ने नया जवाब लिखना शुरू किया. दावा ये किया गया कि 14 फरवरी 1931 को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी की सजा सुनायी गयी थी. फिर कुछ मैसेज में ये भी दावा किया गया कि महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मदन मोहन मालवीय ने तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन के सामने फांसी रद्द करने की याचिका दायर की पर इसी 14 फरवरी 1931 को ही वो याचिका खारिज कर दी गयी थी. जबकि इतिहास हमें बताता है कि राजगुरू,सुखदेव और भगत सिंह को फांसी की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गयी थी.

अब इस वायरल विवाद को अच्छी तरह समझने के लिए आप वायरल दावे और इतिहास के तथ्य को एक साथ देखें.

  • वायरल दावा- 14 फरवरी को शहीदी दिवस है
  • इतिहास में 23 मार्च शहीदी दिवस है
  • वायरल दावा- 14 फरवरी 193 को फांसी की सजा सुनाई गयी
  • इतिहास का तथ्य है कि सजा 7 अक्टूबर1931 को सुनाई गयी थी
  • वायरल दावा- 14 फरवरी को मदनमोहन मालवीय ने दया याचिका दायर की
  • इतिहास में ऐसे भी किसी दावे की पुष्टि नहीं होती

वेलेनटाइन डे के विरोध के लिए देशभक्ति को हथियार क्यों मनाया जाता है? वेलेनटाइन डे के विरोध का ये कैसा बुखार है कि विरोध करने वाले किसी भी तरीके से इसे मिटा देना चाहते हैं? क्या तथ्यों को ऐसे पेश करना अपराध नहीं है? क्या शहीदों की शहादत का अपनी सुविधा के लिए इस्तेमाल करना उनका अपमान नहीं है?

एबीपी न्यूज इस खबर को सच पहले से जानने वाले और नहीं जानने वाले दोनों से ये अपील करता है कि सोशल मीडिया को कुछ लोगों के एजेंडा पूरा करने का अड्डा मत बनने दें. इस तरह की अफवाह फैलाने वाले लोग किसी अपराधी से कम नहीं हैं. हमारी पड़ताल में 14 फरवरी के दिन शहीदी दिवस की दावेदारी करने वाला मैसेज झूठा साबित हुआ है.

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