इराक में मारे गए 39 भारतीयों के शव लाने के लिए वी के सिंह रवाना, जानिए इनके दर्द की कहानी
रोजी-रोटी की तलाश में इराक गए 39 भारतीयों की आतंकी संगठन आइएसआइएस ने हत्या कर दी. लंबे इंतजार के बाद जब परिजनों को इराक में भारतीयों के मौत की जानकारी मिली तो वे अपने आंसू रोक नहीं सके. जानिए इनके दर्द की कहानी
नई दिल्ली: विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह आज इराक में मारे गए 39 भारतीयों के शव वापस लाने के लिए रवाना हो गए हैं. बताया जा रहा है कि सिंह कल तक वापस आ जाएंगे और परिजनों को शवों के अवशेष सौंपने के लिए पहले अमृतसर जाएंगे. इसके बाद वे पटना और कोलकाता जाएंगे.
बता दें कि रोजी-रोटी की तलाश में इराक गए 39 भारतीयों की आतंकी संगठन आइएसआइएस ने हत्या कर दी. लंबे इंतजार के बाद जब परिजनों को इराक में भारतीयों के मौत की जानकारी मिली तो वे अपने आंसू रोक नहीं सके. मृतक भारतीयों के घरवालों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. कई परिवारवाले सदमें हैं और ये मानने के लिए तैयार नहीं है कि उनका बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा.
किसी ने अपना बेटा खोया तो किसी ने अपना पति. किसी ने अपना भाई खोया तो किसी ने अपना एकमात्र सहारा. आइएसआइएस की बर्बरता ने भारत के इन 39 परिवारों की जिंदगी दबाह कर दी. मृतकों के घरवालों को जिस दर्द और तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है उसका शायद अंदाजा लगाना मुश्किल है.
आइए आपको इन 39 भारतीयों में से कुछ लोगों के दर्द की कहानी बताते हैं.
दर्द की कहानी
गुरदासपुर के बटाला में रहने वाले धरमिंदर 2013 में इराक गए थे, लेकिन फिर वहां से वे कभी लौट के नहीं आ सके. धरमिंदर को इराक जाने में एक एजेंट ने उनकी मदद की थी. एजेंट ने धरमिंदर से कहा था कि तुम्हे अच्छे देश भेजूंगा. लेकिन उसने उन्हे इराक भेज दिया. 2014 जून में आखिरी बार परिवारवालों की उनसे बात हुई थी. घरवालों की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से करीब 10 बार मुलाक़ात भी हुई थी. हर बार उन्होंने कहा कि बेटा आपको ज़िंदा है.
आखिरी बार जब घरवाले मिलने गए थे तो विदेश मंत्री ने कहा था कि नए साल में कोई खुशखबरी मिलेगी. मौत पर सरकार की पुष्टि के बाद अब धरमिंदर के परिवार वाले इसलिए नाराज़ हैं क्योंकि उम्मीद के बाद इस खबर के मिलने से इन्हें नए ज़ख्म मिले है.
वहीं अमृतसर के गुरचरण सिंह 2013 में इराक गए थे. बीमारी की हालत में भी उनके पिता को अब तक ये उम्मीद थी कि बेटा लौटेगा. पत्नी भी इसी आस में दिन काट रही थीं लेकिन अचानक मिली मौत की खबर इस परिवार के लिए किसी सदमे से कम नहीं है.
इन्ही 39 भारतीयों में से एक 32 साल के सोनू थे. उनके परिवार में पत्नी सीमा, दो बेटे करन अर्जुन और माता पिता हैं. बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए सोनू इराक गए थे. परिवारवालों ने कभी सोचा नहीं था कि फिर कभी वो वापस लौट कर नहीं आएंगे.
15 जून 2014 को आखिरी बार उनसे बात हुई थी. तब सोनू से बताया था कि उन्हें बंधक बना लिया गया है. उसके बाद कोई बात नहीं हुई. पत्नी सीमा ही तब से घर चला रही हैं. भाई हीरा लाल की मांग है कि सरकार बच्चों के लिए कुछ करे और पत्नी को नौकरी दे.
तरण तारण जिले के मनोचहल गांव की बलविंदर कौर भी अपने आंसू नहीं रोक पाईं. मृत घोषित 39 लोगों में उनका बेटा रणजीत सिंह भी शामिल था. उन्होंने कहा था कि एक मां के लिए अपनी औलाद को खोने से बड़ा कोई गम नहीं होता. कोई भी भारतीय अधिकारी यह बताने की हालत में नहीं था कि आखिर मेरा लाल कहां है और किस हाल में है.
अमृतसर जिले के जलालुसमा गांव की गुरमीत कौर ने कहा कि उन्हें फोन कॉल के जरिये इस बात की जानकारी दी गई कि उनका भाई गुरचरण सिंह इराक में बुरे हालात में फंस गया है. गुरमीत ने कहा कि किसी ने उन्हें यह नहीं बताया कि उसका भाई मर गया है या जिंदा है.
इराक में मारे गए 39 भारतीयों में 6 बिहार के थे. सीवान के संतोष तिवारी की पत्नी पूनम का भी बुरा हाल है. हिमाचल प्रदेश के रहने वाले इंदरजीत के घर में भी मातम पसरा हुआ है. परिवार का कहना है कि सरकार के बार-बार दिए भरोसे से उन्हें ये उम्मीद थी कि इंदरजीत वापस आएगा. लेकिन अब बाकी परिवारों की तरह उन्हें भी लग रहा है कि 4 साल से उन्हें धोखे में रखा गया.