1998 का वो क्या था पुराना फैसला? वोट फॉर नोट वाले मामले में जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया
1998 PV Narasimha Verdict: पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या के बाद 1991 में लोकसभा का चुनाव हुआ था. जिसमें कांग्रेस पार्टी को 232 सीटें मिलीं थीं. ये सीटें बहुमत को आंकड़े 272 को छू नहीं पा रहीं थीं.
1998 PV Narasimha Rao Verdict: रिश्वत लेकर वोट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (04 मार्च) को 1998 के पीवी नरसिम्हा फैसले को पलटे हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बेंच ने फैसला बदलते हुए कहा कि सांसदों और विधायकों को सदन में वोट डालने या भाषण देने के बदले रिश्वत के केस में अभियोजन से छूट नहीं होती.
ये कहते हुए कोर्ट ने सर्वसम्मति से 1998 वाला फैसला खारिज कर दिया जिसमें सांसदों और विधायकों को संसद में मतदान के लिए रिश्वतखोरी के खिलाफ मुकदमा चलाने से छूट दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम पीवी नरसिम्हा मामले से असहमत हैं. तो आइए जानते हैं क्या है 1998 का वो पुराना फैसला.
वोट के बदलने नोट की पूरी कहानी
दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद 1991 में लोकसभा का चुनाव हुआ था. जिसमें कांग्रेस पार्टी को 232 सीटें मिलीं थीं. ये सीटें बहुमत को आंकड़े 272 को छू नहीं पा रहीं थीं. आर्थिक संकट, राजीव गांधी की हत्या और राम मंदिर आंदोलन समेत कई मुद्दों को लेकर देश उस समय काफी परेशानियों से जूझ रहा था. इसी समय प्रधानमंत्री पद के पीवी नरसिम्हा राव के नाम ने सभी को चौंका दिया.
1993 में राव सरकार के खिलाफ आया अविश्वास प्रस्ताव
1991 में आर्थिक उदारीकरण और 1992 में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरना ये दो मुद्दे ऐसे रहे जिसकी वजह से राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया गया. जुलाई 1993 में मॉनसून सत्र के दौरान ये प्रस्ताव सीपीआईएम के सांसद लेकर आए. जब इसका मतदान हुआ तो सरकार के पक्ष में 251 वोट पड़े और सरकार बच गई. इसके तीन साल बाद वोट के बदले नोट का मामला सामने आया.
क्या था वो मामला?
दरअसल, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और जनला दल के 10 सांसदों पर आरोप लगा कि इन लोगों ने प्रस्ताव को हराने के लिए वोट किया. सीबीआई ने जेएमएम के अध्यक्ष शिबू सोरेन, सूरज मंडल, साइमन मरांडी और शल्लेंद्र महतो समेत जेएमएम के सांसदों पर केस कर्ज किए. इन आरोप लगा कि इन सांसदों ने रिश्वत लेकर वोटिंग की.
1998 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?
इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक पहुंचा और पांच जजों की बेंच ने फैसला दिया कि संविधान के अनुच्छेद 105 (2) के तहत, किसी भी सांसद को संसद में दिए गए किसी भी वोट को लेकर देश की किसी भी अदालत में कार्रवाई के लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने इन सांसदों के खिलाफ सभी मामलों को खारिज कर दिया था.
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