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अपने क्षेत्र से बाहर रह रहे वोटर को भी मिल सकता है मतदान का मौका

वर्तमान समय में देशभर में बड़ी संख्या में लोग रोजगार, शिक्षा की वजह से अपने शहर या गांव से दूर रहते हैं. जिसके कारण वह चुनाव के समय पर अपने स्थान पर नहीं होने के कारण वोट नहीं दे पाते हैं. इससे जुड़ी एक याचिका पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट अब तैयार हो गया है.

नई दिल्लीः मतदान के दिन अपने क्षेत्र में नहीं रहने वाले सभी मतदाताओं को वोटिंग का मौका देने पर विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है. कोर्ट ने आज केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी इस मसले पर जवाब मांगा. याचिका में कहा गया है कि अभी सिर्फ कुछ सरकारी कर्मचारियों को पोस्टल बैलट के जरिए मतदान का मौका मिलता है. जबकि, मौजूदा दौर में बड़ी संख्या में लोग पढ़ाई, नौकरी या दूसरी वजह से अपने गांव या शहर से दूर रहते हैं.

'करोड़ों लोग नहीं डाल पाते वोट'

केरल के रहने वाले के सत्यन ने अपनी याचिका में 2011 में हुई जनगणना के आंकड़ों का हवाला दिया है. याचिकाकर्ता के वकील कलीश्वरम राज ने कोर्ट को बताया कि उस समय करीब 45 करोड़ लोग अपने मूल निवास क्षेत्र से दूर रहते थे. यह संख्या अब और भी बढ़ चुकी होगी. ऐसे में साफ है कि करोडों मतदाता वोट डालने से वंचित रह जाते हैं.

'कानून में हल्के बदलाव की ज़रूरत'

वकील ने बताया कि 1951 के जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 60 (c) में चुनाव आयोग को ज़रूरी लोगों को पोस्टल बैलट के माध्यम से मतदान की सुविधा देने का अधिकार दिया गया है. इसमें 2 तरह के सुधार की ज़रूरत है. एक, सिर्फ चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को ज़रूरी लोग न माना जाए. सभी वोटर को इसमें गिना जाए. तकनीक के दौर में दूर रहने वाले लोगों के लिए सिर्फ पोस्टल बैलट से मतदान की बाध्यता खत्म हो. चुनाव आयोग से आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने को कहा जाए.

जजों की शुरुआती असहमति

3 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने शुरू में चुनाव सुधार से जुड़े इस मसले पर विचार करने से असहमति जताई. याचिकाकर्ता को सरकार से मांग रखने के लिए कहा. जजों ने यह भी कहा कि मतदान मौलिक अधिकार नहीं है, जिसकी रक्षा के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई जाए. जजों ने यह भी कहा कि अगर कोई मतदान के दिन अपने इलाके में नहीं रहता तो यह उसका अपना मामला है. इसमें उसकी कोई मदद नहीं की जा सकती.

वकील ने मतदान को मौलिक अधिकार कहा

वकील ने अपनी ठोस दलीलों से जजों को मामले पर विचार के लिए सहमत कर लिया. उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट खुद अपने कुछ फैसलों में यह मान चुका है कि मतदाता वोट देकर अपनी पसंद-नापसंद को अभिव्यक्त करता है. इस तरह मतदान अनुच्छेद 19 1(a) के तहत मिले अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के दायरे में आता है. अनुच्छेद 19 1(d) देश में कहीं आने-जाने और 19 1(g) अपनी पसंद का व्यवसाय या नौकरी करने को मौलिक अधिकार घोषित करता है.

ऐसे में वोटिंग के दिन किसी को अपना रोजगार छोड़ कर मतदान क्षेत्र में जाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. कुछ सरकारी कर्मचारियों को पोस्टल बैलट से मतदान का मौका देना और बाकी नागरिकों को इससे वंचित करना अनुच्छेद 14 यानी कानून की नज़र में समानता के मौलिक अधिकार का भी हनन है.

विचार को तैयार हुआ कोर्ट

करीब 5 मिनट चली सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस ने अपने साथ बैठे जस्टिस ए एस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम से मंत्रणा की. इसके बाद कोर्टने मामले को विचार के लिए स्वीकार करते हुए नोटिस जारी कर दिया.

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देशद्रोह कानून पर कोर्ट की टिप्पणी- सरकार और पुलिस बहुत संभलकर इस्तेमाल की करने की जरूरत

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