नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापम केस में एक और बड़ी खबर सामने आ रही है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब मध्य प्रदेश में उन 150 मेडिकल छात्रों का दाखिला रद्द होने जा रहा है, जिन्हें इंदौर हाईकोर्ट से स्टे मिला हुआ था. हाईकोर्ट ने कल सुप्रीम कोर्ट से इस पर राय मांगी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर हाईकोर्ट से कह दिया है कि फर्जी तरीके से होने वाला कोई भी दाखिला मान्य नहीं होगा. इससे साफ है कि अभी कॉलेजों में पढ़ रहे करीब डेढ़ सौ छात्रों का दाखिला रद्द हो सकता है.



इस मामले में 634 छात्रों की डिग्री पहले ही रद्द हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे 634 छात्रों के दाखिले को रद्द कर दिया था, जिन्होंने 2008-2012 की अवधि में पांच साल के एमबीबीएस कोर्स में नामांकन कराया था. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जगदीश सिंह केहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने छात्रों की तरफ से दायर की गई सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था.

 क्या है व्यापम घोटाला

मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेज और सरकारी नौकरियों की परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा कर भर्ती कराने वाले ये घोटाला साल 2000 से चल रहा था, लेकिन इंदौर पुलिस ने भर्ती कराने वाले दलाल डॉ जगदीश सागर को 2013 में जब गिरफतार किया तब पता चला कि ये घोटाला कितना बड़ा है.

साल 1982 में शुरू हुए मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानि व्यापम का काम था प्रदेश के मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए प्रवेश परीक्षाएं करवाना. साल 2008 से व्यापम के जरिए सरकारी नौकरी के लिए भर्तियां भी होने लगीं.

व्यापम के दफ्तर से मध्य प्रदेश को शिक्षक, पुलिस कॉंस्टेबल, सब इंस्पेक्टर, फूड इंस्पेक्टर, वन रक्षक मिलने शुरु हो गए. लेकिन धीरे-धीरे आरोप लगने लगे कि व्यापम की परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा हो रहा है.

सीबीआई से पहले इस घोटाले की जांच मध्य प्रदेश पुलिस की एसटीएफ कर रही थी, जिसने 200 से ज्यादा केस दर्ज कर ढाई हजार लोगों को आरोपी बनाया था. एसटीएफ की जांच की निगरानी के लिए एसआईटी भी गठित हुई. जांच में पचा चला कि व्यापम से जुडे करीब 40 लोगों की मौत हुई है. इस बीच एक निजी चैनल के पत्रकार अक्षय सिंह की झाबुआ में रहस्यमय मौत के बाद 9 जुलाई 2015 को इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया.