नई दिल्ली: एलएसी पर भारत से चल रहे लंबे टकराव के बीच ये सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या ‘विंटर-वॉरफेयर’  के लिए चीनी सेना एक लंबे समय से साजिश रच रही थी. इसके लिए कनाडा जैसा देश ड्रैगन की मदद कर रहा था.


दरअसल, इस बात का खुलासा कनाडा की मीडिया ने किया है कि वर्ष 2013 से चीनी सैनिक कनाडा में हाई-आल्टिट्यूड और भारी बर्फबारी में लड़ने की ट्रेनिंग ले रहे थे. आपको बता दें कि भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल (एलएसी) की उंचाई 14 से 18-19 हजार फीट की है और सर्दियों के मौसम में यहां जबदरस्त बर्फबारी होती है.


कनाडा के रेबेल-न्यूज ने ‘चायना-फाइल्स’ के नाम से कनाडाई सरकार के कुछ सीक्रेट दस्तावेजों का खुलासा किया है. जिसमें कहा गया है कि चीनी सेना का एक पूरा दल जिसमें (वन और टू स्टार) जनरल्स (कमांडर्स) भी उन्होनें कनाडाई सेना के टोरंटो कॉलेज, किंगस्टन स्थित मिलिट्री-ठिकानों और ऑनटेरियो के करीब पेटवावा-गैरिसन में ‘कोल्ड-वैदर मिलिट्री टैकटिक्स’ में ट्रेनिंग ली थी.


कनाडा भारत को अपना दुश्मन मानता है इसीलिए चीन की मदद कर रहा है


रिपोर्ट में ये तक कहा गया है कि जब चीन ने बदले की भावना से कनाडा के दो नागरिकों का अपहरण कर लिया तो कनाडाई आर्म्ड फोर्सेंज ने इसके विरोध में चीन के साथ ट्रेनिंग बंद कर दी थी. लेकिन चीन के साथ मिलिट्री-ट्रेनिंग रद्द करने से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो नाराज हो गए थे. कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन ने इस रिपोर्ट पर अपने देश की संसद में सफाई देते हुए बताया कि वर्ष 2013 में कनाडा और चीन के बीच ‘विंटर-वॉरफेयर’ की ट्रेनिंग के लिए एक करार हुआ था. इस करार के तहत कनाडा की सेना ठंडे जलवायु में लड़ने के लिए चीनी सैनिकों को ट्रेनिंग देती आ रही थी. लेकिन सज्जन ने ये साफ किया कि ये सब कुछ कनाडा की पुरानी सरकार के करार के चलते हुआ था और फिलहाल ये ट्रेनिंग बंद कर दी गई है.


कनाडा में दरअसल, एक बड़ा इलाका ऐसा है जहां कड़ाके की ठंड पड़ती है और भारी बर्फबारी भी होती है. जबकि एलएसी पर चीन की तरफ कम बर्फ पड़ती है और भारत की तरह उंचाई वाले इलाके नहीं है. तिब्बत का इलाका पठारी है. ऐसे में माना जा रहा है कि चीनी सैनिकों ने कनाडा के साथ विंटर-मिलिट्री टैक्टिस के लिए करार था. कनाडा ने चीनी सैनिकों को विंटर-वॉरफेयर में ट्रेनिंग देने पर भारत के एक रक्षा जानकार, ‘दुश्मन का दुश्मन, दोस्त’ होता है, और क्योंकि कनाडा भारत को अपना दुश्मन मानता है इसीलिए कनाडा, चीन की (विंटर-वॉरफेयर) में मदद कर रहा है. गौरतलब है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को खालिस्तान समर्थक माना जाता है. उनके द्वारा भारत में चल रहे किसान-आंदोलन को लेकर की गई कड़ी टिप्पणी पर भारत के विदेश मंत्रालय ने ऐतराज जताते हुए कहा था कि वे गंभीर मसलों के बारे मे ‘इल-इंफोर्मड’(नावाकिफ या अंजान) हैं.


हाई-ऑल्टिट्यूड में सैनिकों को तैनात करना एक बड़ी चुनौती साबित होता है


चीन के कनाडा में विंटर-वॉरफेयर की तैयारी का खुलासा ऐसे समय में हुआ है जब 11 दिसंबर यानि शुक्रवार को भारतीय सेना का हाई-ऑल्टिट्यूड वॉरफेयर स्कूल अपना 72वां स्थापना दिवस मना रहा है. कश्मीर के गुलमर्ग स्थित हाई-ऑल्टिट्यूड वॉरफेयर स्कूल भारतीय सैनिकों को उंचाई वाले इलाकों और भारी बर्फबारी वाले इलाकों में तैनाती और ऑपरेशन्स के लिए ट्रेनिंग देता है.


‘हॉज़’ के नाम से प्रचलित हाई-आल्टिट्यूड वॉरफेयर स्कूल का आर्दश-वाक्य है, ‘युद्धस्य जेवासि रणें’ यानि हम युद्ध जीतने के लिए सीखाते हैं. क्योंकि भारत का अपने दो पड़ोसी (और चिरपरिचित दुश्मन देश), चीन और पाकिस्तान से सटी सीमा का करीब दो-तिहाई हिस्सा 9 हजार फीट से लेकर 24 हजार फीट तक का है और इन इलाकों में साल के अधिकतर वक्त बेहद ठंड और बर्फ रहती है. सर्दी के मौसम में यहां तापमान माइनस (-) 10 से माइनस (-) 50 डिग्री तक चला जाता है. ऐसे में सैनिकों को तो हाई-ऑल्टिट्यूड में तैनात करना एक बड़ी चुनौती तो है ही मिलिट्री-कमांडर्स के लिए ऐसे क्षेत्रों में लड़ने की रणनीति भी तैयार करनी होती है. ये सभी जिम्मेदारी भारतीय सेना के लिए हॉज उठाता है.


करगिल युद्ध हो या फिर डोकलम विवाद या फिर सियाचिन में मेघदूत ऑपरेशन, सभी मे गुलमर्ग स्थित हॉज के सैन्य-अधिकारी और इंस्ट्रेक्टर्स ने एक अहम भूमिका निभाई है.


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