Tribal Family Rescued: केरल के वायनाड जिले में भूस्खलन प्रभावित आदिवासी समुदाय से जुड़े 4 बच्चों और उनके माता-पिता को बचाने के 8 घंटे तक चलाए गए साहसिक अभियान के लिए वन अधिकारियों ने जो किया, वो एक मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है. एक जंगल में फंसे चार बच्चों सहित एक आदिवासी परिवार को वन अधिकारियों ने दिलेरी दिखाते हुए सुरक्षित निकाला है.
इस साहसिक अभियान के सफल होने पर केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने प्रशंसा की. दरअसल, इस हफ्ते की शुरुआत में वायनाड में हुए भूस्खलन में 218 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और 206 लोग अभी भी लापता हैं. जिनमें 90 महिलाएं, 98 पुरुष और 30 बच्चे शामिल हैं. हालांकि, 67 लोगों के शवों की पहचान नहीं हो पाई है.
साढ़े 4 घंटे ट्रैक कर पहुंची फॉरेस्ट टीम
कलपेट्टा रेंज के वन अधिकारी के. हशीस के लीडरशिप में 4 लोगों की टीम गुरुवार (1 अगस्त) को एक आदिवासी परिवार को बचाने के लिए जंगल के भीतर खतरनाक रास्तों पर ट्रैक करते हुए निकल पड़े. वायनाड के पनिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाला यह परिवार पहाड़ी पर स्थित एक गुफा में फंस गया था, जिससे लगी एक गहरी खाई थी. उस परिवार में 1 से 4 साल तक की उम्र के 4 बच्चे भी मौजूद थे. इस टीम को गुफा तक पहुंचने में साढ़े 4 घंटे से ज्यादा का समय लग गया.
पनिया समुदाय से ताल्लुक रखता है आदिवासी परिवार
वन अधिकारी के. हशीस का कहना है कि वायनाड के पनिया समुदाय के परिवार की एक महिला और 4 साल का बच्चा घने जंगले के इलाकों के पास से मिला. जब उनसे पूछताछ की गई तो पता चला कि उनके 3 बच्चे और उनके पति एक गुफा में फंसे हुए हैं. जहां पर उन लोगों के पास खाने पीने के लिए कुछ नहीं है.
बाहरी लोगों से घुलना-मिलना नहीं करते पसंद
हशीस ने बताया कि पनिया समुदाय के ये परिवार जनजातीय समुदाय के एक विशेष वर्ग से आता है, जो आमततौर पर बाहरी लोगों से घुलना-मिलना पसंद नहीं करते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘वे आम तौर पर जंगली खाने पर ही निर्भर रहते हैं. इसके साथ ही उन सामानों को लोकल मार्केट में बेचकर उससे चावल खरीदते हैं. मगर, वायनाड में आए भीषण भूस्खलन और भारी बारिश के कारण उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा था."
पहाड़ी पर पहुंचना आसान नहीं था
वन रेंज अधिकारी ने बताया कि पहाड़ी की गुफा तक पहुंचने के लिए हमें ट्रैक करना था लेकिन, लगातार हो रही बारिश के चलते चट्टानों पर काई थी और फिसलन के कारण चढ़ना बहुत कठिन था. किसी तरह हम धीरे-धीरे सावधानी पूर्वक चढाई करके बच्चों तक पहुंचे. इसमें बहुत खतरा भी था, अगर हम लोगों का पांव फिसलता तो हम सीधे खाई में गिरते.
बिना खाने के पस्त पड़ गए थे बच्चे
हशीस ने कहा, ‘‘जब टीम गुफा में पहुंची तो बच्चे काफी सहमे और थके हुए थे. खाना न मिलने के कारण वे पस्त पड़ गए थे. ऐसे में हम जो कुछ भी साथ ले गए थे उन्हें खाने के लिए दिया. काफी समझाने-बुझाने के बाद उनके पिता हमारे साथ आने के लिए तैयार हो गए. इस दौरान हमने बच्चों को अपने शरीर से बांध लिया और ट्रैकिंग करते हुए अपनी वापसी शुरू कर दी."
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