नई दिल्ली: देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने आज राजधानी दिल्ली स्थित साऊथ ब्लॉक में अपना कार्यभार संभाल लिया. लेकिन उससे पहले उन्होनें ट्राई-सर्विस यानि तीनों सेनाओं (थलसेना, वायुसेना और नौसेना) की साझा टुकड़ियों का गार्ड ऑफ ऑनर लिया और राष्ट्रीय समर स्मारक जाकर देश के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की. इस दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए जनरल रावत ने सीडीएस की कार्यप्रणाली और भूमिका को भी साफ कर दिया.
जनरल रावत के मुताबिक, सीडीएस की कोशिश होगी कि तीनों सेनाओं के बीच में बेहतर सामंजस्य और समन्वय हो ताकि तीनों सेनाओं वन प्लस वन प्लस वन (1+1+1) मिलाकर तीन (03) नहीं पांच या सात बनाएं. साथ ही तीनों सेनाओं के संसधानों और रक्षा बजट का बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सके. लेकिन इस दौरान नियुक्ति को लेकर हुए विवाद पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा कि देश की सेनाएं राजनीति से दूर रहती हैं, लेकिन सेना सरकार के आदेशों का पालन करती हैं. इस सवाल पर कि अब भारत का अगला प्लान पीओके (पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर) है, जनरल रावत ने कहा कि सेनाओं के प्लान को सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं किया जाता.
आपको बता दें कि सीडीएस का मुख्य चार्टर तीनों सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल बनाना तो है ही साथ ही एकीकरण भी है. सरकार ने साफ कर दिया है कि सीडीएस को निकट भविष्य में थियेटर कमांड को तैयार करने में अहम भूमिका निभानी है. अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों में जो थियेटर कमांड है उनमें थलसेना, वायुसेना और नौसेनाएं मिलकर काम करती है. वहां तीनों सेनाओं की अलग-अलग कमांड नहीं होती है, जैसा कि भारत में है.
फिलहाल देश में कुल 19 कमांड हैं- थलसेना की सात, वायुसेना की सात, नौसेना की तीन और दो साझा कमान हैं. जबकि चीन में मात्र पांच साझा कमान हैं. भारत में फिलहाल दो साझा कमान हैं- अंडमान निकोबार कमान और परमाणु हथियारों वाली स्ट्रेटेजिक फोर्स कमान. ये भी देखने में आया है कि अलग-अलग कमान होने से सेनाओं के काम में ओवरलैपिंग होती हैं और संसाधानों के साथ-साथ मैन-पॉवर भी ज्यादा इस्तेमाल होती है. जबकि आधुनिक सेनाएं ज्यादा लीन एंड थीन होती हैं. मार्डन वॉरफेयर में तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल होता है.
जनरल रावत के मुताबिक, जरूरी नहीं है कि भारत भी दूसरे देशों की तर्ज पर थियेटर कमांड तैयार करेगा. एक सवाल के जबाब में उन्होनें कहा कि हो सकता है कि थियेटर कमांड के लिए भारत अपना कोई अलग मॉडल तैयार करे. क्योंकि भारत में वायुसेना की तरफ से थियेटर कमांड बनाने को लेकर कुछ 'रिजर्वेशन' यानि संदेह है. साथ ही भारत की सेनाएं अमेरिका की तरह दुनियाभर में भी नहीं फैली हुई हैं.
तीनों सेनाओं का आधुनिकीकरण सीडीएस के लिए चुनौती
तीनों सेनाओं का आधुनिकीकरण भी सीडीएस के लिए एक बड़ी चुनौती है. तीनों सेनाओं के हथियारों की खरीद और अधिग्रहण के लिए ही सीडीएस के मातहत काम करने वाला नया विभाग, मिलिट्री एफेयर्स डिपार्टमेंट खासतौर से काम करेगा. इसको लेकर जनरल बिपिन रावत ने मीडिया से अपनी भूमिका को साफ कर दिया. अभी तक ये माना जाता था कि भारतीय सेनाओं के हथियारों और दूसरे सैन्य साजो सामान को खरीदने की एक बड़ी और जटिल प्रक्रिया थी. रक्षा मंत्रालय की बाबूशाही के लिए इसके लिए समय-समय पर जिम्मेदार ठहराया जाता है. लेकिन अब एक पूरी तरह से सैन्य विभाग ही सेनाओं की खरीद प्रक्रिया की जिम्मेदारी उठाएगा. साथ ही कई बार हथियारों को लेकर भी 'ओवरलैप' देखने को मिलता है. वो भी अब कम करने की जरूरत है.
हाल ही में सरकार द्वारा बनाई गईं तीन नए इंटीग्रेटेड एजेंसियां भी सीडीएस के अंतर्गत काम करती हैं. पहली है आर्मर्ड फोर्सेंज स्पेशल ऑपरेशन डिवीजन (एएफएसओडी) जो तीनों सेनाओं की स्पेशल फोर्सेज़ के कमांडोज़ को मिलाकर बनाई गई है. ऐसे में भविष्य में जो सर्जिकल स्ट्राइक जैसे बड़े मिशन में एएफएसओडी किस तरह से अपने ऑपरेशन्स करेगी इसकी जिम्मेदारी और जटिलता भी सीडीएस को संभालनी है.
डीआईए को रिवाइव करना जनरल रावत के सामने बड़ी चुनौती
डिफेंस स्पेस साइबर एजेंसी दूसरी डिवीजन है जो सीडीएस के अंतर्गत काम करेगी. हाल के दिनों में जिस तरह से चीन और पाकिस्तान से साईबर वॉरफेयर और इंफो-वॉरफेयर भारत के खिलाफ जारी है उससे प्रभावी ढंग से निपटना जनरल रावत के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. डिफेंस स्पेस एजेंसी भी सीडीएस सचिवालय की कमान में काम करेगी. लेकिन फिलहाल भारत ने मात्र एक ए-सैट यानि एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का टेस्ट किया है. जबकि पड़ोसी देश चीन एसैट तकनीक में काफी आगे निकल चुका है. इसके अलावा करगिल युद्ध के बाद तीनों सेनाओं की साझा इंटेलीजेंस एजेंसी, डीआईए यानि डिफेंस इंटेलीजेंस एजेंसी को रिवाइव करना भी जनरल रावत के सामने एक बड़ी चुनौती है.