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जानिए, ऐसे ही नहीं कहा जाता कि बलिया की मिट्टी में क्रांति है

बलिया की मिट्टी से समय समय पर ऐसे लोग निकले हैं जिन्होंने इतिहास की धारा मोड़ी भी और इतिहास बनाया भी.

नई दिल्ली:  आज जब हरिवंश नारायण सिंह राज्यसभा के उपसभापति बने तो मौका और दस्तूर के हिसाब से सदन में मौजूद सभी पार्टियों के नेताओं ने उन्हें बधाई दी, जमकर तारीफों के पुल बांधे, लेकिन जब पीएम मोदी की बारी आई तो उन्होंने न सिर्फ हरिवंश की तारीफ की, उनके पत्रकारिता धर्म को सराहा, बल्कि उनकी जन्मभूमि बलिया की मिट्टी का जिक्र भी छेड़ा. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलनकारी चित्तू पांडे, मंगल पांडे से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर तक का जिक्र किया. और अगस्त का महीना चल रहा है ऐसे में अगस्त क्रांति का जिक्र तो लाजमी ही था.

कहते हैं कि बलिया की मिट्टी में क्रांति है. ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि बलिया की मिट्टी से समय समय पर ऐसे लोग निकले हैं जिन्होंने इतिहास की धारा मोड़ दी और इतिहास रचा भी.

सबसे पहले बात उस शख्स की जिसने देश की राजनीति में वो कारनामा किया, कि अपने दौर की सबसे क्रूर और शक्तिशाली सत्ता को न सिर्फ घुटने टेकने पर मजबूर किया, बल्कि लोकतंत्र में भगवान समझे जाने वाली जनता की आंखों से गिरा दिया. उस शख्स ने इंदिरा गांधी के सिंहासन को हिला दिया. देश में 'संपूर्ण क्रांति' का आह्वान किया. जी हां! हम बात कर रहे हैं लोकनायक जयप्रकाश नारायण की.

जयप्रकाश नारायण ने भूख, गरीबी, भ्रष्टाचार से बेहाल जनता से पटना के गांधी मैदान में 'संपूर्ण क्रांति' का आह्वान किया. ये जेपी का जादू ही था कि पूरा देश उनके साथ इस क्रांति के लिए उठ खड़ा हुआ. जेपी की बढ़ती लोकप्रियता ने इंदिरा की नींद हराम कर दी. खौफ ऐसा कि उन्हें इमरजेंसी लगानी पड़ी. जेपी को रोकने के लिए इंदिरा को सिर्फ एक उपाय नजर आया- उन्हें जेल भेजना. 'जेपी आंदोलन' स्वतंत्रता आंदोलन के बाद देश का सबसे बड़ा समाजवादी, अहिंसक आंदोलन था. जेपी आंदोलन से लालू, नीतिश जैसे बड़े समाजवादी नेताओं का उदय हुआ.

अब हम बात करेंगे उस शख्स की जो देश की राजनीति के इतिहास में हमेशा अपने विद्रोही तेवर के लिए याद किया जाएगा. हम बात कर रहे युवा तुर्क चन्द्रशेखर की. चन्द्रशेखर को बलिया का बाबू साहब कहा जाता था. चन्द्रशेखर अपने राजनैतिक जीवन में कुछ वक्त कांग्रेस के साथ रहे. मगर जैसे ही उन्हें कांग्रेस के अंदर की गलतियां नजर आईं उन्होंने उस पार्टी का साथ छोड़ दिया. यही कारण था कि इमरजेंसी के दौरान विपक्ष के नेताओं के साथ साथ चन्द्रशेखर को भी जेल जाना पड़ा.

चन्द्रशेखर ने अपने जीवन में कभी लाल बत्ती नहीं ली. बार बार प्रस्ताव आने के बावजूद कभी मंत्री पद स्वीकार नहीं किया. चन्द्रशेखर पर ये लोगों का विश्वास ही था कि पद के लोभ से दूर रहने वाले चन्द्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने.

बलिया ने देश को सिर्फ राजनेता ही नहीं, साहित्यकार भी दिए

ललित निबंध को एक विधा के रूप में पहचान दिलाने वाले निबंधकार, आलोचक और उपन्यासकार पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म बलिया में हुआ था. यूं तो ललित निबंध की थोड़ी बहुत झांकी भारतेंदु हरिश्चन्द्र और चन्द्रधर शर्मा गुलेरी के निबंधों में दिखने लगी थी. मगर इस विधा को नया आयाम देने का काम आचार्य द्विवेदी ने किया. कुटज और कल्पलता जैसे निबंधों ने हिंदी साहित्य में एक उदाहरण स्थापित किया. आचार्य ने कबीर पर शोध किया. 'कबीर' साहित्य की दुनिया में मानक शोधग्रंथ है.

हिंदी कविता के आधुनिक कवि केदारनाथ का संबंध भी बलिया ही था. केदारनाथ सिंह हिंदी साहित्य के आसमान में एक ऐसे सितारे बन कर उभरे जिसने कविता को नई उंचाई पर पहुंचाया. केदारनाथ सिंह को उनके कविता संग्रह अकाल में सारस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.

दूधनाथ सिंह हिंदी साहित्य में एक खास जगह रखते हैं. वो ना सिर्फ लेखक बल्कि विचारक भी थे. उन्होंने उपन्यास, कविता, कहानी, आलेचना हर माध्यम से लोगों के विचारों को झिंझोड़ा. निराला, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के प्रिय दूधनाथ सिंह ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक ढांचे पर सवाल खड़े किए.

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