हिजाब पर बहस के बीच जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की छात्राओं की राय भी जानिए
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां हर नागरिक को अपना धर्म चुनने की स्वतंत्रता दी गई है. अपने विश्वास का पालन करना व्यक्ति की पसंद होनी चाहिए.
पिछले कुछ दिनों से भारत से लेकर ईरान तक हर तरफ़ 'हिजाब-ए-इख़्तियारी' का नारा सुनाई दे रहा है. इस शब्द का मतलब है एक महिला का हिजाब को चुनने की आजादी. एक तरफ जहां ईरान में महिलाएं सड़कों पर उतरकर सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना अनिवार्य करने वाले कानून का विरोध कर रहीं हैं. तो वहीं दूसरी तरफ भारत के कर्नाटक की कॉलेज छात्राएं मांग कर रही हैं कि उन्हें हिजाब पहनने का अधिकार दिया जाए.
इन दो देशों की महिलाओं की मांग एक दूसरे से अलग जरूर हैं लेकिन इनका तर्क एक ही है. ये महिलाएं चाहती हैं कि उन्हें कहां हिजाब पहनना है कहां नहीं ये तय करने का अधिकार उनके पास हो.
शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध रहे या नहीं? सुप्रीम कोर्ट में 13 अक्टूबर को सुनवाई हुई और पीठ के दोनों जजों की राय अलग-अलग थी. दोनों जजों से बीच बनी असहमति के कारण अब ये मामला बड़ी बेंच के पास चला गया है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि हिजाब इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है.
कुरान की जानकारी रखने वाले प्रोफेसर आलिम कहते हैं कि इस्लाम में सूरा-ए-नूर में आए शालीनता के निर्देश को ध्यान में रखते हुए महिलाओं को अपना चेहरा, हाथ और पैर खुले रखते हुए शरीर के बाकी हिस्सों को ढकना चाहिए. उन्होंने कहा कि पूरे बदन को ढकने वाले यूनिफॉर्म के साथ एक दुपट्टा लेना ही काफी है. बुर्का ही पहना जाए ये जरूरी नहीं है. अगर सर को दुपट्टे या चुन्नी से ढका जाता है तो इस्लाम के निर्देश को पूरा करने के लिए काफी है.
दुनियाभर में हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन पर मुस्लिम महिलाएं क्या सोचती हैं? इस सवाल के जवाब में पत्रकार और थियेटर आर्टिस्ट इफ्फत खान कहतीं हैं कि नहीं, इस्लाम में हिजाब एक च्वाइस है और इसे निजी चुनाव का मामला ही रहने दिया जाना चाहिए.
ईरान में हो रहे हिजाब विवाद पर पत्रकार इफ्फत खान कहतीं हैं, 'महिलाएं आज हर जगह शिक्षित हैं और अपना बेहतर समझती हैं. उनका अधिकार है कि वह चुनाव कर सकें कि उन्हें क्या पहनना है क्या नहीं. ईरान हो या भारत ये अधिकार महिलाओं से कोई नहीं छीन सकता. अगर मुस्लिम महिलाएं आज अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं तो मैं उनके साथ हमेशा हूं. बात फिर ईरान की हो या दुनिया के किसी और कोने की.
धार्मिक मुद्दा है हिजाब
वहीं अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही सहीफा खान ने कहा कि जब मैं 13 साल की थी तब अपने शौक से ज़िद कर हिजाब पहनना शुरू किया था और आज तक मैं किसी ऐसी लड़की से नहीं मिली जिसे घर में मजबूर किया जाता हो. दरअसल पर्दा इस्लाम का मूल कर्तव्य है तो जिसे भी इस्लाम की थोड़ी जानकारी होती है वह पर्दा करना शुरू कर देता है.
उन्होंने कहा कि जिस तरह दूसरे कपड़ों के लिए कोई रोक टोक नहीं होती उसी प्रकार हिजाब के लिए भी नहीं होनी चाहिए. सहीफा ने कहा कि दुनिया भर में दो तरह के प्रदर्शन चल रहे हैं, एक हिजाब पहनने की आजादी को लेकर तो दूसरा हिजाब पहनने के विरोध में. हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले नारीवादी लोग हिजाब के लिए प्रदर्शन को अनदेखा कर देते है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए.
स्कूल-कॉलेज में हिजाब से वाकई माहौल खराब होता है? इस सवाल के जवाब में सहीफा खान कहती हैं कि इससे कोई माहौल खराब नहीं होता बल्कि हिजाब शालीनता का संदेश देता है. एक मुस्लिम परिवार में पैदा होने के नाते हिजाब हमारे लिए धर्म और परंपरा दोनों है. बल्कि धर्म और परंपरा के साथ यह हमारी पहचान भी है.
क़ुरान में हिजाब पहनने का दिया गया है हुक़्म
छात्रा खान शाहीन कहतीं हैं कि मैं और मेरे ख़्याल से जितनी भी मुस्लिम लड़कियां हैं वो अपनी मर्ज़ी से हिजाब पहनती है. हिजाब इसलिए किया जाता है क्योंकि ईश्वर ने क़ुरान में इसका हुक़्म दिया है. इसलिए जो मुस्लिम है वो ईश्वर की आज्ञा का पालन करते है. उन्होंने कहा कि जिस तरह और धर्मो के कपड़ो पर रोक टोक नहीं है उसी तरह हिजाब पर भी नही होनी चाहिए और खासतौर से शिक्षा के क्षेत्र में तो इसे आड़ नहीं बनाना चाहिए.
उन्होंने ईरान में हो रहे हिजाब के कानून के खिलाउ प्रदर्शन पर कहा कि मुझे लगता है कि हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन करना एक बेतुकी मांग है. क्योंकि हिजाब एक सभ्य औरत की पहचान है और नग्नता असभ्य औरत की.
स्कूल-कॉलेज में हिजाब से वाकई माहौल खराब होता है? इस सवाल के जवाब में खान शाहीन कहती हैं कि हिजाब न तो सामाजिक व्यवस्था और न ही नैतिकता के खिलाफ है तो कैसे हिजाब से स्कूल और कॉलेज का माहौल खराब हो सकता है. मेरे लिए हिजाब धर्म है, क्योंकि परम्परा के तो खिलाफ भी जाया जा सकता है लेकिन अपने धर्म के खिलाफ मैं कभीं नही जा सकती.
हमेशा चर्चा का विषय क्यों बन जाता है हिजाब?
मुस्लिम एक्टिविस्ट सुमैय्या रोशन ने कहा, ' हिजाब पूरे विश्व में फैली हुई प्रथा है, दुनिया भर की मुस्लिम महिलाएं सदियों से हिजाब पहनती आ रहीं हैं. इसका संबंध आस्था और अल्लाह के प्रति उनके समर्पण से है. हालांकि, इस्लाम में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए हिजाब निर्धारित है, लेकिन महिलाओं के हिजाब पहनने का मामला हमेशा बहस और चर्चा का विषय बना रहता है. अगर क्या मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने पर मजबूर किया जाता है? इस सवाल का जवाब अभी भी देने की जरूरत है तो मैं कहूंगी "नहीं, हमें हिजाब पहनने पर मजबूर नहीं किया जाता" हम इसे अपनी आस्था से पहनते हैं.
हिजाब पर क्या कानून होना चाहिए? इसके जवाब में सुमैय्या कहतीं हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां हर नागरिक को अपना धर्म चुनने की स्वतंत्रता दी गई है. अपने विश्वास का पालन करना व्यक्ति की पसंद होनी चाहिए. जब हिजाब पहनने से किसी को कोई नुकसान नहीं होता है तो मुझसे इस अधिकार को छीनने का किसी को भी हक नहीं है.
उन्होंने कहा कि हिजाब पहनना चाहिये या नहीं ये सवाल ही अपने आप में बेतुका है और समय समय पर इसपर बहस भी होती रहती है. मैं फिर कहती हूं कि हिजाब के प्रति इस जुनून को रोकने की जरूरत है. यह एक हानिरहित प्रथा है. अगर समाज को महिलाओं के लिए कुछ करना ही है तो उनकी शिक्षा, काम के अवसरों पर ध्यान देना चाहिये .
कट्टरपंथी सोच किसी भी धर्म में ठीक नहीं
हिजाब पहनने के लिए क्या मुस्लिम महिलाओं को मजबूर किया जाता है? इस सवाल पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा आयशा सिद्दीकी अपना निजी अनुभव बताते हुए कहती हैं, 'नहीं, मेरे साथ तो ऐसा नहीं है. मैं जिस परिवार से हूं, वहां लड़कियों को हिजाब पहनने के लिए कभी मजबूर नहीं किया गया है. हिजाब पहनना किसी भी लड़की की पर्सनल चॉइस होनी चाहिए. इसे पहनने के लिए न तो जबरदस्ती होनी चाहिए और न ही मना किया जाना चाहिए.
दुनियाभर में हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन पर आयशा कहती हैं, 'कट्टरपंथी सोच किसी भी धर्म में ठीक नहीं होता है. अगर हम ईरान के प्रोटेस्ट की बात करें तो महिलाओं का प्रदर्शन करना ठीक है. एक स्त्री को कब क्या पहनना है इस बारे में पूरी दुनिया को सोचने की जरूरत नहीं है. ईरान से लेकर भारत तक पर्दा के पक्षधर मर्दों की सोच एक जैसी लगती है.
स्कूल-कॉलेज में हिजाब से वाकई माहौल खराब होता है? इस सवाल के जवाब में आयशा ने कहा कि इंसान अपने अनुभव पर बात करता है. मेरा अनुभव कहता है नहीं. मैं जिस स्कूल में या यूनिवर्सिटी में पढ़ रही हूं, वहां कई लड़कियां हिजाब में आती थी. इससे कोई माहौल खराब नहीं होता. लेकिन इस मामले को इतना ज्यादा हाइलाइट कर दिया गया है कि कभी कभी मैं हिजाब पहनने में सहज महसूस नहीं करती. स्कूल शिक्षा लेने के लिए है. किसी के कपड़ों पर उसे जज करने के लिए नहीं. बेहतर है इस सबसे से ऊपर उठकर हम बेहतर शिक्षा की ओर ध्यान दें.
वहीं जामिया से पासआउट सबा नासीब कहती हैं कि हिजाब पहनना पूरी तरह किसी भी महिला या लड़की की व्यक्तिगत पसंद है. मेरे परिवार की सभी महिलाएं हिजाब नहीं पहनती लेकिन जिन्हें पहनना है उन्हें पहनने दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस्लाम में औरतों को पर्दे में रहने के लिए कहा गया है इस बात से तो इनकार नहीं किया जाता लेकिन फिर भी ये चुनाव पूरी तरह व्यक्तिगत है.
क्या है पूरा मामला?
कर्नाटक में हिजाब विवाद पिछले साल 31 दिसंबर से शुरू हुआ. उस वक्त उडुपी के सरकारी पीयू कॉलेज में हिजाब पहनकर आने वाली 6 छात्राओं को क्लास में आने से रोक दिया गया था. कक्षा में प्रवेश से रोकने के बाद इन छात्राओं ने कॉलेज प्रशासन से हिजाब पहनने की अनुमति मांगी.
उडुपी ज़िले में सरकारी जूनियर कॉलेजों के ड्रेसकोड कॉलेज डेवलपमेंट समिति तय करती है और स्थानीय विधायक इसके प्रमुख होते हैं. छात्राओं के अनुमति को बीजेपी विधायक रघुवीर भट्ट ने खारिज कर दिया और उन्हें क्लास के भीतर हिजाब पहनने की अनुमति नहीं मिली.
जिसके बाद इन छात्राओं ने दिसंबर 2021 में में हिजाब पहनकर कैंपस में घुसने की कोशिश की और कॉलेज प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू कर दिया था और जनवरी 2022 में उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ याचिका दायर कर दी थी.
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