कोलकाता: पश्चिम बंगाल विधानसभा में राज्य विधान परिषद बनाने का प्रस्ताव पेश किया, जिससे विधानसभा ने मंजूरी दे दी है. तृणमूल कांग्रेस के संसदीय मंत्री पार्थ चटर्जी ने विधान परिषद गठन का प्रस्ताव पेश किया. हालांकि प्रस्ताव पर हुई बहस के दौरान सीएम ममता बनर्जी सदन में उपस्थित नहीं थीं, लेकिन प्रस्ताव 69 के मुकाबले 196 मतों से पारित हो गया. बीजेपी ने विधान परिषद के गठन के सरकार के प्रस्ताव का विरोध किया और सीएम की अनुपस्थिति को लेकर हो-हल्ला मचाया.


इसी पर विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा, 'विधानसभा के बाद अब विधान परिषद को बनाना एक गलत कदम है. वित्तीय मामले से भी देखें तो यह ठीक नहीं है. देश के 23 राज्यों में यह नहीं है. स्मार्ट गवर्नेन्स के लिए यह ठीक नहीं है. TMC अपने बहुत नेता को यहां लाना चाहती है. खुद ममता बनर्जी 1956 वोट से हारी थी, वो खुद ही पीछे के दरवाजे से विधानसभा में आना चाहती हैं. अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए ऐसा करना पड़ रहा है. ममता यह जानती है की यह संसद में पारित नहीं होगा. इसलिए वो खुद मौजूद नहीं थी. बीजेपी एक राष्ट्रीय पार्टी है और हम सब जगह एक ही बात कर रहे है और हम विरोध कर रहे है.'


18 मई को तीसरी बार पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बमुश्किल 12 दिन बाद ममता बनर्जी ने विधान परिषद बनाने के कैबिनेट के फैसले को मंजूरी दे दी थी. जिसका उन्होंने चुनाव के दौरान वादा किया था. बनर्जी ने घोषणा की कि जिन प्रतिष्ठित लोगों और दिग्गज नेताओं को विधानसभा चुनाव के लिए नामांकित नहीं किया था, उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया जाएगा.


सीएम ने 2011 के विधानसभा चुनावों के बाद नंदीग्राम और सिंगूर में उनके अभियान का हिस्सा रहने वालों को सीट देने की कसम खाई है. राज्य के परिवहन मंत्री फिरहाद हकीम ने TMC पर लगे आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि ममता बनर्जी जीतेंगी और बहुत वोटो से जीतेंगी. अगर आपमें हिम्मत हैं थो चुनाव करवाइए और हारकर देखिए.


वहीं बीजेपी सांसद सौमित्र खान ने CM ममता पर निशाना साधते हुए ममता बनर्जी के विधान परिषद के कदम को 'नौटंकी' करार दिया है. उन्होंने कहा है कि उच्च न्यायालय ने 2011 में सचिव परिषद के ममता के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. यह ममता बनर्जी के लिए नामांकित किसी भी व्यक्ति के प्रवेश के अलावा कुछ भी नहीं है. यह पश्चिम बंगाल में सिर्फ एक नौटंकी है और किसी काम का नहीं है.


बता दें कि भारत में केवल 6 राज्यों में विधान परिषद है. इनमें बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक शामिल है. पश्चिम बंगाल में 294 विधानसभा सीटें हैं. चूंकि एक विधान परिषद की संख्या विधानसभा या विधान सभा के एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है, बंगाल में विधान परिषद में 98 सदस्य हो सकते हैं.


राष्ट्रपति की लेनी होती है सहमति


स्वतंत्रता के बाद बंगाल के पहले मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय ने 1952 में विधान परिषद का गठन किया और यह 1969 तक जारी रहा तब दूसरी संयुक्त मोर्चा सरकार ने एक विधेयक पारित करके उच्च सदन को समाप्त कर दिया. यदि आवश्यक संवैधानिक संशोधन के साथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 का पालन किया जाए तो एक विधान परिषद का गठन किया जा सकता है. विधान परिषद के निर्माण के लिए विधेयक को संसद के समक्ष पेश करने की आवश्यकता होती है और इसके लिए राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता होती है.


वहीं विधान परिषद के पास विधानसभा की कुल सीटों के 1/3 से अधिक नहीं होना चाहिए. ऐसे में बंगाल में परिषद के पास अधिकतम 98 सीटें हो सकती हैं. सदस्यों में से 1/3 सदस्य विधायकों द्वारा चुने जाएंगे, जबकि अन्य 1/3 सदस्य नगर निकायों, जिला परिषद और अन्य स्थानीय निकायों द्वारा चुने जाएंगे. सरकार द्वारा परिषद में सदस्यों को मनोनीत करने का भी प्रावधान होगा. राज्यसभा की तरह ही एक सभापति और एक उपाध्यक्ष का वर्चस्व होगा. सदस्यों की आयु कम से कम 30 वर्ष होनी चाहिए और उनका कार्यकाल 6 वर्ष का होगा.


विधान परिषद के सदस्य नागरिक निकाय के सदस्यों और निर्वाचित विधायकों द्वारा चुने जाते हैं. राज्यपाल कुछ सदस्यों को मनोनीत भी कर सकता है. बंगाल की अंतिम विधान परिषद में 75 सदस्य थे, जिनमें से नौ को राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया गया था. भारतीय जनता पार्टी, जिसके पास टीएमसी के 213 के खिलाफ बंगाल विधानसभा में केवल 75 विधायक हैं, ने विकास पर प्रतिक्रिया नहीं दी. वाम दल, जिन्होंने कांग्रेस की तरह एक भी सीट नहीं जीती, ने इस विचार का विरोध किया.


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