West Bengal Assembly Elections: पश्चिम बंगाल का सियासी समर दिन पर दिन तीक्ष्ण होता जा रहा है. आरोप-प्रत्यारोप, वार-पलटवार की सियासत तो अब बहुत पीछे छूट चुकी है. पूरे देश में तेज़ी से अपना विस्तार करती बीजेपी पश्चिम बंगाल में भी आज की तारीख़ में अपनी जड़ें मज़बूती से जमा चुकी है. हालांकि, तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बेदख़ल करना बीजेपी के लिए अब तक की सबसे बड़ी परीक्षा है, इससे पार्टी भली भाँति वाकिफ है. उस पर बीजेपी की बढ़ती ताक़त से बेचैन ममता ने घरेलू और बाहरी का ऐसा दांव चल दिया है, जिसकी काट बेहद मुश्किल है. अपनी पहचान, संस्कृति और अस्मिता को लेकर पश्चिम बंगाल के लोग बेहद सजग और संवेदनशील हैं. जानिए ममता के इस बाहरी दांव की काट के लिए बीजेपी क्या कर रही है.
बीजेपी ने ममता के बाहरी के आरोप की नेस्तनाबूद करने के लिए प्रतीकों की सियासत को चरम पर पहुंचाने की तैयारी कर ली है, जिसकी वह माहिर है. साथ ही उसने हर विधानसभा क्षेत्र से ममता के घरेलू होने के दावे को तोड़ने के लिए भी अपनी रणनीति मैदान पर उतार दी है.
29 दिसंबर को एक रैली के दौरान ममता ने कहा था, ‘’जिन्होंने हमारे धर्म को भुला दिया है. ये हिंदू धर्म को नहीं जानते हैं, विवेकानंद की फोटो पर माला चढ़ाने से आप धर्म नहीं जानते, उनको मन से जानना होगा. रामकृष्ण को जानना होगा, शारदा मां को जानना होगा, मां तारा को जानना होगा, बोलपुर को जानना पड़ेगा, बेलुर को जानना पड़ेगा, दक्षिणेश्वर, कालीघाट को जानना होगा. ये इतना आसान नहीं है.’’
प्रतीकों की सियासत पर पहली बात ये है कि वह कांग्रेस पर आजमाए जा चुके फार्मूले से भी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ अपनी बढ़त बनाने की तैयारी कर रही है. इस फार्मूले के तहत बीजेपी पश्चिम बंगाल के गौरव रहे महान व्यक्तित्वों और नेताओं के नाम पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने जा रही है. इस तरह से वह तृणमूल कांग्रेस की ओर से सांस्कृतिक मोर्चे पर उसे घेरने की योजना को विफल करने की उम्मीद कर रही है. अपनी इस रणनीति के तहत पश्चिम बंगाल के दो सबसे बड़े विचारक और आंदोलनकारी स्वामी विवेकानंद और सुभाष चंद्र बोस के नाम पर कई कार्यक्रम आयोजित करने की तैयारी कर रही है.
बड़े पैमाने पर विवेकानंद जयंती मनाएगी बीजेपी
12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती को बीजेपी इस कड़ी में बड़े पैमाने पर बनाने जा रही है. गृह मंत्री अमित शाह का अगला बंगाल दौरा उसी दिन शुरू हो सकता है. इसके साथ ही 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती भी मनाई जाएगी, जिसमें खुद पीएम नरेंद्र मोदी जाएंगे. इनके अलावा लगातार बंगाली अस्मिता के प्रतीक और राष्ट्रीय गौरव रहे ‘भद्रलोक’ के महापुरुषों को बीजेपी इस तरह आत्मसात करेगी कि जैसे वो उनके ही हों.
बताना ज़रूरी है कि सरदार पटेल, अंबेडकर से लेकर महात्मा गांधी तक को बीजेपी ने कांग्रेस की विरासत से निकालकर अपने से जोड़ने में सफलता पाई है. इसी तरह पश्चिम बंगाल में बंगाली महानुभावों पर होने वाले कार्यक्रमों में बीजेपी के बड़े राष्ट्रीय नेता भी हिस्सा लेंगे. वहीं, तृणमूल कांग्रेस की ओर से बाहरी होने के आरोपों से निपटने के लिए बीजेपी ने अपने संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की याद तृणमूल कांग्रेस को दिलाई.
सांस्कृतिक मोर्चे पर बीजेपी को घेर रही है टीएमसी
बीजेपी बार-बार बंगाल की जनता को याद दिला रही है कि इस पार्टी की स्थापना एक भद्र जन बंगाली याना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की है. पश्चिम बंगाल में मुखर्जी पर लगातार कार्यक्रम भी हो रहे हैं. ऐसे में वह पश्चिम बंगाल के लिए बाहरी पार्टी कैसे हो सकती है. दरअसल, बीजेपी के लगातार आक्रमक होते प्रचार अभियान को देखते हुए तृणमूल कांग्रेस ने केसरिया पार्टी को सांस्कृतिक मोर्चे पर घेरने का प्रयास शुरू किया है.
इसी के तहत ममता बनर्जी की बोलपुर पदयात्रा के दौरान लगातार सांस्कृतिक कार्यक्रम भी चलते रहे. यहां जहां बां ग्ला गीतों और नृत्य नाटिकाओं का मंचन किया गया.. वहीं राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी पर यह आरोप लगाया कि वह राज्य की सांस्कृतिक विरासत और सौर्हाद्र को बिगाड़ना चाहती है. इसकी वजह यह है कि उन्हें पश्चिम बंगाल की सभ्यता की जानकारी नहीं है. ममता का आरोप है कि बीजेपी बाहरी लोगों को लाकर पश्चिम बंगाल को जीतने का सपना देख रही है.
तृणमूल कांग्रेस के इस आरोप के बाद बीजेपी ने सांस्कृतिक मोर्चे पर भी तृणमूल कांग्रेस को घेरने का प्रयास करते हुए राज्य के प्रमुख विचारक और प्रसिद्ध नेताओं के जन्मदिवस और शहादत दिवस पर कार्यक्रम ज्यादा शिद्दत के साथ आयोजित करने की रणनीति बनाई है.
रवींद्र नाथ टैगोर पर लगातार कार्यक्रम कर रही है बीजेपी
राष्ट्रगान के रचयिता और कालजयी कवि और बंगाली अस्मिता के शिखर पुरुष गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर पर भी बीजेपी लगातार कार्यक्रम कर रही है. इतना ही नहीं, किन्हीं भी कारणों से पीएम नरेंद्र मोदी की बढ़ती दाढ़ी के बाद टैगोर की छवि भी उनके व्यक्तित्व में आ रही है. मोदी का क्रेज़ पश्चिम बंगाल में खूब है. ये लोकसभा चुनाव के नतीजे ही नहीं, बल्कि उनके कार्यक्रमों में उमड़ने वाली भीड़ देखकर भी समझा जा सकता है.
दूसरी बात ये है कि प्रतीकों पर अपना दावा ठोकने और आत्मसात करने के साथ ही विधानसभा स्तर पर ही ममता को जवाब दिया जा रहा है. मुकुल राय या शुभेंदु अधिकारी जैसे बड़े नेताओं को छोड़ दें तो भी तृणमूल से बड़े पैमाने पर लोगों बीजेपी अपनी पार्टी में शामिल कर रही है. राज की बात ये कि हर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी तृणमूल के सबसे प्रभावशाली लोगों को तोड़ने का मिशन भी चला रही है. हर विधानसभा क्षेत्र से कम से कम एक बड़ा ऐसा नाम जिसका तृणमूल कांग्रेस से अलग भी अपना नाम हो और थोड़ा असंतुष्ट हो, उन्हें भी बीजेपी शामिल कर ममता के बाहरी के दावे को धोने में जुट गई है.