लोकसभा की 42 सीटों वाली पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस पूरी तरह गायब है. आपको जानकार हैरानी होगी कि राज्य में विधानसभा चुनाव के 20 महीने हो चुके हैं. करारी हार के बाद कांग्रेस में फेरबदल की बात कही गई थी, जो अब तक अमल में नहीं आ पाया. 


राज्य की बागडोर विधानसभा चुनाव से पहले अधीर रंजन चौधरी को सौंपी गई थी. चुनाव में हार के बाद अधीर ने हाईकमान से इस्तीफा लेने के लिए कहा. हालांकि, उनका इस्तीफा होल्ड कर दिया. 


2021 में हार के बाद कई नेता पार्टी छोड़ गए. जिला स्तर पर भी कई नेता निष्क्रिय हो गए, लेकिन राज्य में संगठन का विस्तार नहीं हो पाया.


अध्यक्ष और प्रभारी ही फुलटाइम नहीं
कांग्रेस ने दिसंबर 2021 में ए चेल्लाकुमार को अंतरिम प्रभारी नियुक्त किया. उनके पास पहले से ही दो राज्य थे. वहीं अधीर रंजन के पास भी लोकसभा में कांग्रेस नेता का पद है. ऐसे में राज्य संगठन के विस्तार नहीं होने की बड़ी वजह फुलटाइम अध्यक्ष और प्रभारी का नहीं होना है.


उदयपुर में संगठन में सर्जरी की बातें



  • कांग्रेस प्रदेश इकाई में राजनीतिक, चुनावी और कॉर्डिशेन कमेटी बनाई जाएगी. 

  • जिलाध्यक्षों का टर्म फिक्स्ड किया जाएगा. सभी जिला में प्रदेश की तरह इकाई बनाई जाएगी. 


बंगाल में सुस्त क्यों, 2 वजह...
1. अधीर के अलावा बड़ा चेहरा नहीं- कांग्रेस के पास पश्चिम बंगाल में अधीर रंजन चौधरी के अलावा अब कोई बड़ा चेहरा नहीं है. 2020 में सोमेन मित्रा के निधन के बाद सोनिया गांधी ने अधीर को बंगाल भेजा था, लेकिन 2021 के चुनाव में अधीर भी फेल रहे. 


2016 में 42 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2021 में एक भी सीट नहीं जीत पाई. बंगाल में कांग्रेस के गढ़ मालदा-मुर्शिदाबाद में भी पार्टी की करारी हार हुई.


2. बीजेपी का उदय और ममता मजबूत- 2019 से पहले बंगाल की पॉलिटिक्स में तृणमूल कांग्रेस की लड़ाई कांग्रेस और वाममोर्चा का गठबंधन से था, लेकिन इसके बाद हालात बदल गए. 2019 और 2021 में बीजेपी वहां मजबूती से लड़ी और कांग्रेस से विपक्ष क दर्जा छीन ली. 


मुस्लिम बहुल इलाके में ममता की पार्टी ने कांग्रेस का स्थान ले लिया और अब्दुल मन्नान जैसे दिग्गज नेता हार गए. पिछले दिनों अधीर ने पार्टी में जान फूंकने के लिए गंगासार से दार्जिलिंग तक भारत जोड़ो यात्रा की शुरूआत की. हालांकि, इस यात्रा में न तो राहुल गांधी शामिल हो रहे हैं न ही कांग्रेस इसे अपने आधिकारिक हैंडल पर प्रमोट कर रही है.


लोकसभा की 42 सीटें, केंद्र में दखल रखते थे कांग्रेसी
लोकसभा सीटों के हिसाब से पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद तीसरा सबसे बड़ा राज्य है. 2004 और 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने 6-6 सीटें यहां जीती थी. 2019 में पार्टी को सिर्फ 2 सीटों पर जीत मिली. 


मनमोहन सिंह की सरकार में बंगाल से आने वाले कांग्रेसी नेताओं की मजबूत दखल थी. इनमें प्रणब मुखर्जी, प्रियरंजन दासमुंशी और अधीर रंजन चौधरी का नाम शामिल हैं.


लेकिन 2014 और 2019 में कांग्रेस इन दिग्गज नेताओं की सीट भी नहीं बचा पाई. वहीं राज्य की सत्ता से भी कांग्रेस पिछले 45 सालों से बाहर है. 1977 में ज्योति बसु के नेतृत्व में सीपीएम ने कांग्रेस को चुनाव हराया था.


अध्यक्ष पद को लेकर अधीर ने क्या कहा था?
इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में अधीर ने कहा- मैं बंगाल कांग्रेस की कमान लेने को तैयार नहीं था. सोनिया गांधी ने मुझे आदेश किया तो मैं मना नहीं कर पाया. कांग्रेस हाईकमान जब चाहे ये पद ले सकती है. बंगाल में कांग्रेस को सोशल मीडिया छोड़ सड़कों पर उतरना होगा.


फिर सड़को पर क्यों नहीं उतर पा रहे कांग्रेसी?


1. ममता फैक्टर ने कांग्रेसियों को घर बिठाया- इसे दो उदाहरण से समझिए. पहला, 2021 के बंगाल में चुनाव प्रचार का अभियान जोरों पर था. कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में राहुल की कई रैलियां प्रस्तावित थी, लेकिन ऐन वक्त पर राहुल ने प्रचार करने से मना कर दिया. 


इसकी सबसे बड़ी वजह ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस थी. दरअसल, चुनाव में बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी, जिसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने फैसला किया कि ममता का सपोर्ट किया जाए. इस वजह से राहुल की रैली रोक दी गई. चुनाव परिणाम के बाद उस वक्त के प्रदेश प्रभारी रहे जितिन प्रसाद ने कहा- कन्फ्यूज पॉलिटिक्स की वजह से हम हारे हैं. 


और दूसरा, 2022 में कांग्रेस हाईकमान ने एक आंतरिक संदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि पार्टी के नेता ममता बनर्जी के खिलाफ बयान नहीं देंगे. संदेश में कहा गया कि हमारा लक्ष्य 2024 में बीजेपी से लड़ाई है ना कि क्षेत्रीय पार्टियों से. हाईकमान का यह संदेश सीधे अधीर रंजन चौधरी पर नकेल कसने के रूप में देखा गया. अधीर ममता के विरोधी नेता माने जाते हैं. 


2. सत्ता से दूर कांग्रेस का खजाना खाली- बंगाल में कांग्रेस पिछले 45 सालों से सत्ता से बाहर है. 2014 में केंद्र में भी पार्टी की सरकार चली गई, ऐसे में राज्य कांग्रेस का खजाना भी बिल्कुल खाली है. संगठन में फेरबदल नहीं होने और खजाना खाली होने की वजह से कांग्रेस कार्यकर्ता भी निष्क्रिय पड़ गए हैं.


3.  कई दिग्गज पार्टी छोड़ गए- पिछले 2 साल में कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ कर चले गए हैं. इनमें 5 बार के विधायक रहे मोइनुल हक और प्रदेश महासचिव रोहन मित्रा का नाम भी है. कांग्रेस छोड़ने के बाद दोनों नेताओं ने तृणमूल ज्वॉइन कर लिया. दिलचस्प बात है कि दोनों ने पार्टी छोड़ते वक्त एक ही इलजाम लगाया. दोनों ने पार्टी के निष्क्रिय होने की बात कही.


आगे 3 बड़ी चुनौती पर पार पाना आसान नहीं...
बंगाल में इस साल पंचायत के चुनाव होने हैं. झाल्दाह नगरपालिका में चुनाव जीतने के बाद भी कांग्रेस बोर्ड नहीं बन पाई थी. ऐसे में पंचायत चुनाव में जीत हासिल करना आसान नहीं है.


2024 में बंगाल में चुनाव हैं. कांग्रेस हाईकमान की कोशिश ममता बनर्जी के साथ गठबंधन करने की है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस इसे तवज्जो नहीं दे रही है. ऐसे में 2024 का चुनाव भी आसान नहीं है.


बंगाल में हार के बाद पार्टी ने अब तक फुल टाइम प्रभारी नियुक्त नहीं किया है. ऐसे में प्रभारी नियुक्त करना भी चुनौती होगा, जो प्रदेश और हाईकमान के बीच आसानी से संतुलन बना सके.