Adenovirus: सांस में संक्रमण से पश्चिम बंगाल में 5 बच्चों की गई जान, एडिनोवायरस की आशंका
Adenovirus Spike: पश्चिम बंगाल में 24 घंटे के अंदर 5 बच्चों की मौत की खबर हैं. इन बच्चों का इलाज वहां के अलग-अलग अस्पतालों में चल रहा था. हालांकि इनमें एडिनोवायरस की पुष्टि होनी बाकी है.
Death From Adenovirus In West Bengal: पश्चिम बंगाल में एडिनोवायरस के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और इस बीच पिछले 24 घंटों में शहर के विभिन्न अस्पतालों में सांस में संक्रमण की वजह से 5 बच्चों की मौत हुई. हालांकि डॉक्टर इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि क्या यह मौतें एडिनोवायरस का नतीजा है. स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने मंगलवार (28 फरवरी को) ये जानकारी दी.
दो बच्चों का चल रहा था इलाज
पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक मरने वाले 5 बच्चों में से 2 का इलाज कोलकाता मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (Kolkata Medical College And Hospital) में इलाज चल रहा था. वहीं 3 अन्य का इलाज डॉ बी सी रॉय पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ पीडियाट्रिक साइंसेज (Dr. B C Roy Post Graduate Institute Of Paediatric Sciences) में चल रहा था.
स्वास्थ्य अधिकारी ने पीटीआई भाषा को बताया, "सभी 5 बच्चों की मौत निमोनिया (Pneumonia) की वजह हुई. हम अभी भी मर चुकी 9 महीने की बच्ची की जांच रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं, ताकि यह पुष्टि हो सके कि उसकी मौत एडिनोवायरस की वजह से हुई या नहीं." वहीं एक स्वास्थ्य अधिकारी ने मंगलवार को बताया कि सांस में संक्रमण के कारण कोलकाता के सरकारी अस्पतालों में दो शिशुओं की मौत हो गई.
उन्होंने बताया कि पड़ोसी हुगली जिले के चंद्रनगर (Chandernagore) के 9 महीने के बच्चे की कोलकाता मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में मौत हो गई, जबकि एक अन्य बच्चे की मौत डॉ बी सी रॉय पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ पीडियाट्रिक साइंसेज में हुई.अधिकारी ने कहा कि दोनों मौतों की सूचना सोमवार (27 फरवरी) को दी गई. उन्होंने बताया कि मामले अन्य जिलों के अस्पतालों से रेफर किए गए थे. इस तरह से राज्य में शनिवार (25 फरवरी) से अब तक 3 मौतें हो चुकी हैं, जिनमें से एक एडिनोवायरस संक्रमण की वजह से हुई थी.
एडिनोवायरस के लक्षण क्या हैं?
एडिनोवायरस हल्की से गंभीर बीमारी की वजह बन सकता है, हालांकि गंभीर बीमारी कम आम है. कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, या मौजूदा सांस या हृदय रोग वाले लोगों को इस वायरस संक्रमण से गंभीर बीमारी होने का अधिक खतरा होता है. इसके लक्षणों में सामान्य सर्दी या फ्लू, बुखार, गला खराब होना जैसे लक्षण होते हैं.
इसके अलावा एक्यूट ब्रोंकाइटिस (फेफड़ों के वायुमार्ग की सूजन, जिसे कभी-कभी "सीने में ठंड" कहा जाता है) निमोनिया (फेफड़ों का संक्रमण) पिंक आई (आंखों में दर्द और सूजन) तीव्र आंत्रशोथ (पेट या आंतों की सूजन के कारण दस्त, उल्टी, मतली और पेट दर्द) शामिल हैं. इसके कम सामने आने वाले लक्षणों में मूत्राशय की सूजन या संक्रमण तंत्रिका संबंधी रोग (ऐसे हालात जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर असर डालते हैं) शामिल हैं.
कैसे फैलता है?
अमेरिका रोग के नियंत्रण और रोकथाम सेंटर (Centers For Disease Control And Prevention) के मुताबिक एडिनोवायरस आमतौर पर किसी संक्रमित शख्स के साथ नजदीकी शारीरिक संपर्क जैसे छूने और हाथ मिलाने से फैलता है. इसके साथ ही ये खांसने और छींकने के जरिए भी सेहतमंद शख्स को अपना शिकार बनाता है. ऐसी सतह और चीज जहां ये वायरस हो उसे छूने के बाद अगर बगैर हाथ धोए खुद के मुंह, नाक और आंखों को छू लें तो भी ये वायरस संक्रमित करता है.
इसके साथ ही ये डायपर बदलने के वक्त संक्रमित शख्स के पखाने से भी फैल सकता है. ये स्वीमिंग पूल से भी फैलता है, लेकिन इस तरह से इसके फैलने की संभावना कम होती है. कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले शख्स में ये वायरस उसके ठीक होने के बाद भी बना रह सकता है और दूसरे लोगों को संक्रमित कर सकता है.
संक्रमित होने पर क्या करें?
एडिनोवायरस से ग्रस्त मरीज को घर पर रहना चाहिए. कफ और छींक आने पर हाथों की जगह टिश्यू का इस्तेमाल करें. किसी के साथ अपने इस्तेमाल किए गए बर्तनों को शेयर न करें. किस करने से बचें. अपने हाथ साबुन और पानी से अक्सर 20 सेकंड तक धोए. खासकर बाथरूम का इस्तेमाल करने के बाद हाथ जरूर धोएं.
इलाज क्या है?
मौजूदा वक्त में इस वायरस से संक्रमित होने पर इलाज के लिए कोई स्वीकृत एंटी वायरल दवा और कोई खास ट्रीटमेंट नहीं हैं. अधिकांश इसका संक्रमण हल्का ही होता है और इसके लक्षणों से छुटकारा पाने में मदद के लिए आराम और ओवर-द-काउंटर (बगैर डॉक्टर के नुस्खे के ली जा सकने वाली दवाएं) दर्द दूर करने वाली या बुखार से राहत देने वाली दवाएं ले सकते हैं.
हमेशा दवा का लेबल पढ़कर और निर्देशानुसार दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए. कुछ समझ न आने की हालत में हेल्थ प्रोवाइडर से बात करनी चाहिए. एडिनोवायरस 4 और 7 के टाईप लिए एक वैक्सीन है जिसका इस्तेमाल सैन्य कर्मियों में किया जाता है, क्योंकि इनके इस तरह के वायरस के संक्रमण में आने का अधिक जोखिम होता है.
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