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पश्चिम बंगाल चुनावः उत्तर 24 परगना जिले में अमित शाह की रैली, मतुआ समुदाय के वोटर्स पर है नजर

मतुआ समुदाय के वोटर्स को लुभान के लिए अमित शाह गुरुवार को पश्चिम बंगाल के दौरे पर जाएंगे. अमित शाह मतुआ समुदाय का गढ़ ठाकुरनगर इलाके में जाकर रैली को संबोधित करेंगे.

कोलकाताः केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह गुरुवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा के उत्तर 24 परगना जिले के ठाकुरनगर जाएंगे. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की तैयारियों और कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने को लेकर अमित शाह का यह दौरा काफी अहम माना जा रहा है. विधानसभा चुनाव को देखते हुए ठाकुरनगर इस बार बंगाल की राजनीति में काफी अहम माना जा रहा है. ठाकुरनगर मतुआ समुदाय का गढ़ माना जाता है. यह कस्बा बांग्लादेश की सीमा से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

ठाकुरनगर इतना अहम क्यों है इसपर बात करेंगे, लेकिन उससे पहले हम आपको बता दें कि मतुआ समुदाय का गढ़ माने जाने वाला ठाकुरनगर के लोग चाहते है की नागरिकता कानून (सीएए) बहुत जल्दी लागू हो जाये. इस कानून के लागू होने से हिन्दू शरणार्थी जो बांग्लादेश से यहां आकर सालों से बसे हैं, जिनके पास जमीन की कोई स्थायी पट्टा भी नहीं है उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाएगी.

लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी की ओर से मतुआ समुदाय के लोगों को ये आश्वासन दिया गया था कि नागरिकता कानून के तहत हिन्दू शरणार्थियों को जल्द ही नागरिकता दी जाएगी. प्रचंड बहुमत के साथ लोकसभा में दूसरी बार पहुंची मोदी सरकार ने सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल यानी सीएबी भी सदन से पास कर दिया था.

मतुआ समुदाय के लोगों को लुभाने की कोशिश

लोकसभा और राजसभा की अधीनस्थ कानून समिति ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के नियमों को तैयार करने के लिए 9 जुलाई तक का समय दिया है. समिति ने इस कानून के नियमों को लागू करने की समय सीमा 9 जुलाई 2021 तक बढ़ा दी है. नागरिकता संशोधन कानून 2019 में ही संसद से पारित हो गया था.

मतलब, मामला साफ है कि ठाकुरनगर के लोगों को या फिर मतुआ समुदाय के लोगो को चुनाव से पहले वो नहीं मिलेगी जो उनको चाहिए. ऐसे माहौल में गुरुवार गृहमंत्री अमित शाह यहां चुनावी रैली को संवोधित करेंगे. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अमित शाह आखिर कैसे मतुआ समुदाय के लोगों के दिल जीतने की कोशिश करेंगे. अमित शाह की इस रैली पर सभी की नजर बनी हुई है.

क्यों अहम है मतुआ समुदाय?

अब आपको बताते हैं कि मतुआ समुदाय के लोग क्यों अहम हैं इस चुनाव में? मतुआ समुदाय के लोग सिर्फ ठाकुरनगर में ही नहीं बसे हैं. इनकी जनसंख्या नदिया, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना जिले में भी अच्छी खासी है. बंगाल में करीब 21 सीटों पर इनका वोट निर्णायक है जो कि जीत और हार के बीच अहम भूमिका निभाते हैं.

इन सीटों पर साल 2016 के विधानसभा चुनाव में 48.57 फीसदी वोट मिला तृणमूल कांग्रेस को मिला था जबकि बीजेपी सिर्फ 7.91 फीसदी वोट ही जुटा पायी थी. वही सीपीएम और कांग्रेस गठबंधन को 38.68 फीसदी वोट मिला था. बंगाल की ताजा राजनीतिक माहौल को देखते हुए बीजेपी को ऐसा लगने लगा है कि इस बार इन सीटों पर चुनावी समीकरण बदल चुका है.

जिन 21 सीटों पर मतुआ समुदाय के लोग हैं. वह हैं-

1. कृष्णगंज - 2016 विधानसभा चुनाव में यहां टीएमसी जीत हासिल की थी

2. रानाघाट उत्तर-पूर्वी - यहां भी टीएमसी जीत दर्ज की थी

3. रानाघाट दक्षिण - सीपीएम कांग्रेस गठबंधन यहां जीत दर्ज की थी

4. कल्याणी - लगभग 26 हजार वोटों से यहां टीएमसी ने जीत दर्ज की थी

5. हरिनघाटा - यहां टीएमसी ने जीत हासिल की थी

6. बागदा - सीपीएम - कांग्रेस गंठबंधन को यहां जीत मिली थी

बाकी जो सीटों पर मतुआ वोटर्स का दबदबा है उनमें से- बनगांव उत्तर, बनगांव दक्षिण, गईघाटा, स्वरूपनगर, मिनाखा, हिंगलगंज, गोसाबा, बासंती, कुलतलि, मन्दिरबाज़ार, जयनगर, बारुईपुर पूर्वी, कैनिंग पश्चिम, मगराहाट पूर्वी और विष्णुपुर शामिल है. इन 21 सीटों में से 18 सीट पर टीएमसी ने जीत दर्ज की थी. 2016 विधानसभा चुनाव में 40 लाख से ज़्यादा वोटर ये 21 विधानसभा सीटों पर वोट डाले थे.

कौन हैं मतुआ समुदाय के लोग

मतुआ समुदाय बांग्लादेश में हरिचंद ठाकुर को मानने वाले नामसूद्र लोग हैं. 1947 के बाद से बांग्लादेश से सटे हुए उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और नदिया के अलग अलग जगहों पर मतुआ समुदाय के लोग आने लगे. लेकिन ज़्यादातर लोगों के पास न अपनी जमीन थी और न हीं भारत मे रहने के लिए यहां की नागरिकता.

तत्कालीन सीपीएम सरकार उनको रहने के लिए इजाजत दी, लेकिन बहुत लोगों को इतने साल के बाद भी जमीनों के स्थायी पट्टा नहीं मिल सकी. बहुतों को नागरिकता भी नही मिला. साल 2009 के बाद से ममता बनर्जी मतुआ समुदाय के करीब आने लगे. 2010 में ममता बनर्जी ने "बड़ो मां" को मतुआ समुदाय का मुख्य संरक्षक बनाया गया. इसके कुछ साल के बाद मतुआ वेलफेयर बोर्ड भी बनाई गई.

''बड़ो मां'' का बेटा कपिल कृष्ण ठाकुर 2014 में बनगांव लोकसभा केंद्र से तृणमूल की टिकट पर जीत हासिल किया था. उनकी मौत के बाद पत्नी ममता ठाकुर वहां से जीत हासिल की. लेकिन मतुआ समुदाय जो परिवार से संचालित होते है वही ठाकुर परिवार में दरारें आयी और सुब्रतो, जो कि "बड़ो मां" का पोता है बीजेपी की टिकट में ममता ठाकुर के खिलाफ चुनाव लड़े.

सुब्रतो के पिता मंजूल कृष्ण ठाकुर भी टीएमसी से बीजेपी में शामिल हुए हैं. मंजूल का बेटा शांतनु ठाकुर भी भाजपा से जुड़े , जो कि अभी बनगांव से सांसद हैं. शांतनु ठाकुर कहते हैं कि बीजेपी की सरकार बनने के बाद और सीएए कानून बनने के बाद मतुआ समुदाय के लोगों को लगा बहुत जल्दी उनको नागरिकता मिलने वाला है.

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