कोलकाता: पश्चिम बंगाल चुनाव में इस बार मतुआ समुदाय के वोट बैंक पर टीएमसी और बीजेपी दोनों ही पार्टियों की नज़र है. मतुआ समुदाय के वोटरों का दिल जीतने के लिए तमाम बेड़ नेताओं ने ठाकुरनगर में रैली भी की है. दरअसल ठाकुरनगर इस बार बंगाल की राजनीति में बहुत अहम है. 


उत्तर 24 परगना जिले का छोटा सा शहर ठाकुरनगर बांग्लादेश की सीमा से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां के ठाकुरबाड़ी के हरिचंद और गुरुचंद ठाकुर के परिवार को ही मतुआ समुदाय के लोग मानते हैं. 


22 अप्रैल को होने वाले छठे चरण के चुनाव में उत्तर 24 परगना ज़िले की ऐसी कई सीटों पर चुनाव होना है, जहां मतुआ समुदाय के लोग भारी संख्या में रहते हैं. 


इन सीटों पर मतुआ समुदाय का है प्रभाव


गाईघाटा
बनगांव उत्तर
बनगांव दक्षिण
स्वरूपनगर
हाबरा
अशोक नगर
आमडांगा
बादुरिया
बागदा


नदिया जिला के कृष्णनगर उत्तर, दक्षिण और नाबाद्विप जैसी सीटों पर भी मतुआ लोगों की संख्या काफी ज्यादा है. 


मतुआ समुदाय के बीच इस बार कौन से मुद्दे हैं अहम


मतुआ समुदाय के लोग चाहते हैं कि नागरिकता कानून यानी सीएए जल्द लागू हो जाये और हिन्दू शरणार्थी जो बांग्लादेश से यहां आकर सालों से बसे हैं, जिनके पास जमीन का कोई स्थायी पट्टा भी नही है, उनको भारत की नागरिकता मिले. 


लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी की तरफ से ठाकुरनगर समेत मतुआ समुदाय के लोगों को ये बात कही गई थी कि नागरिकता कानून के तहत हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी. 


लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के बाद बीजेपी ने सदन से सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल यानी सीएबी भी पास करा लिया था. इसके बाद हालांकि मामला थोड़ा धीरे चलने लगा और अब जुलाई के बाद ही इसपर कुछ किया जाएगा. 


लेकिन गृह मंत्री ने मतुआ समुदाय के गढ़ ठाकुरनगर में एक रैली के दौरान कहा था कि सरकार मतुआ समुदाय के लोगों को नागरिकता देने को अहमियत दे रही है. हालांकि टीएमसी का कहना है कि मतुआ समुदाय इस बार उन्हीं का साथ देने वाला है. 


इन सीटों पर टीएमसी को 2016 विधानसभा चुनाव में 48.57 फीसदी वोट्स मिले थे. बीजेपी सिर्फ 7.91 फीसदी वोट ही जुटा पाई थी. वहीं सीपीएम और कांग्रेस गठबंधन ने 38.68 फीसदी वोट प्राप्त किया था. लेकिन 5 सालों में बंगाल का चुनावी समीकरण पूरी तरह से बदल चुका है और इस बार बीजेपी के नेता कॉंफिडेंट हैं कि मतुआ वोटर्स उन्हीं के साथ रहेंगे.


मतुआ समुदाय बांग्लादेश में हरिचंद ठाकुर को मानने वाले नामसूद्र लोग है. 1947 के बाद से बांग्लादेश से सटे हुए उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और नदिया के अलग अलग जगहों पर मतुआ समुदाय के लोग आने लगे. लेकिन ज़्यादातर लोगों के पास अपनी ज़मीन नहीं थी, ना भारत में रहने के लिए नागरिकता. सीपीएम सरकार ने उनको रहने के लिए इजाजत दी. लेकिन बहुत लोगों को इतने सालों के बाद भी ज़मीनों का स्थायी पट्टा नही मिला. बहुत से लोगों को नागरिकता भी नही मिली. 


साल 2009 के बाद से ममता बनर्जी मतुआ समुदाय के करीब आने लगीं. समुदाय के लोग जिनको मानते थे, यानी "बड़ो मा" उनका आशीर्वाद भी दीदी को मिला. 2010 में बड़ो मा ने ममता बनर्जी को मतुआ समुदाय का मुख्य संरक्षक बनाया और इसके कुछ सालों के बाद ममता सरकार ने मतुआ वेलफेयर बोर्ड भी बनाया.


बड़ो मा के बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने 2014 में बनगांव लोकसभा सीट से तृणमूल के टिकट पर जीत हासिल की. उनके मौत के बाद उनकी पत्नी ममता ठाकुर ने वहां से जीत हासिल की. लेकिन मतुआ समुदाय जो कि परिवार से संचालित होता है, उसी ठाकुर परिवार में दरारे आईं और सुब्रतो, जो कि बड़ो मा के पोते हैं, बीजेपी की टिकट पर ममता ठाकुर के खिलाफ चुनाव लड़े. सुब्रतो के पिता मंजूल कृष्ण ठाकुर भी टीएमसी से बीजेपी में शामिल हुए. मंजूल के बेटे शांतनु ठाकुर भी भाजपा से जुड़े, जो कि अभी बनगांव से सांसद है. 


ममता बनर्जी ने भी सालों से मतुआ वोट बैंक को अहमियत दिया है. लेकिन लोगों को अब नागरिकता को लेकर कोई स्थायी समाधान चाहिए. नागरिकता कानून लागू होने से बांग्लादेश से आए शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी. 


हालांकि तृणमूल कांग्रेस कह रही है कि बीजेपी नागरिकता देने का वादा कभी पूरा नहीं करेगी, ये महज़ जुमला है. 


भाजपा के बड़े नेता आत्मविश्वास से कह रहे हैं कि मतुआ वोटर्स उन्हीं के साथ रहेंगे विधानसभा चुनाव में. गृह मंत्री अमित शाह के हाल ही में इन इलाकों में रोड शो करने से उनको फायदा भी मिलेगा.


22 अप्रैल को जिन सीटों पर मतदान होना है, उसमें से ज़्यादातर सीटें बनगांव लोकसभा सीट के अंदर आती हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव, 15 के उपचुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों का आंकड़ा अगर देखें तो बनगांव में बीजेपी का वोट 2014 से 2019 के बीच 2 लाख के आसपास से 6 लाख के पार हो गया. हालांकि टीएमसी के वोट साढ़े 5 लाख से बढ़कर 5 लाख 80 हज़ार के आसपास थे.


मतलब साफ है कि लेफ्ट के वोटर्स बिजेपी में शिफ्ट हुए थे. इसबार 2021 में क्या होगा ये देखना है. लेकिन इन सीटों पर चुनावी नतीजे बहुत ही अहम होने जा रहे हैं.