असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार चुनाव में सारी चुनावी गणित और समीकरण को बदलकर रख दिया था. ओवैसी ने 4 सीटों में जीतकर और 8/9 सीटों में काफी संख्या में आरजेडी की वोट काटकर बीजेपी को फायदा पोहुंचाया था. बंगाल चयनव में ओवैसी फैक्टर तो पहले से ही तृणमूल कांग्रेस के लिए थोड़ा बहुत चिंता का विषय बना हुआ है.
साथ में अब चिंता है नई पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट की. दरअसल, पिछले सोमवार को नई पार्टी का लॉन्च किया गया है. फुरफुरा शरीफ दरगाह को बंगाल समेत पूरे देश में मुस्लिमों के लिए बहुत ही पवित्र स्थल माना जाता है, और इसी फुरफुरा शरीफ के पीरज़ादा अब्बास सिद्दिकी ने इस पार्टी की शुरुआत की है. अब्बास सिद्दिकी ने तो कहा है कि ये पार्टी मुस्लिमों के साथ-साथ आदिवासी और दलितों के लिए काम करेगी. यानी पिछड़े वर्ग के लिए काम करना चाहती है इंडियन सेक्युलर फ्रंट. लेकिन कही ना कही टीएमसी का प्रेशर बढ़ेगा मुस्लिम वोट के काटने की संभावना को लेकर.
बंगाल में लगभग 125 सीटें ऐसी है जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या करीब-करीब 25 फीसदी या फिर उससे भी ज्यादा है. ऐसी सीटों की तरफ जरूर निशाना करने वाली है असदुद्दीन आवैसी की पार्टी और इंडियन सेक्युलर फ्रंट. अब्बास सिद्दीकी ने कहा है कि ओवैसी या फिर सीपीएम या कांग्रेस के साथ उनके गठबंधन की संभावना भी बरकरार है. हालांकि आपको बता दें कि त्वहा सिद्दीकी, जो कि अब्बास सिद्दीकी के चाचा है वो अभी भी टीएमसी के साथ ही है. यानी फुरफुरा शरीफ भी राजनीतिक रूप से हो हिस्सों में बंट गई है.
चलिए अब आपको समझाते है कि बिहार चुनाव में हुई क्या थी?
बंगाल से सटे हुए 2 जिलों के 4 सीटों पर मिली थी ओवैसी को जीत, इसी बात पर ब्लड प्रेशर तृणमूल कांग्रेस की कैम्प में बढ़ रहा था. बंगाल के यह दो जिलों में उर्दू भाषा बोलने वाले मुस्लिम वोटर की संख्या काफी ज्यादा है और तृणमूल की थिंक टैंक का मानना था कि यही पॉपुलेशन पर ओवैसी का प्रभाव काफी ज्यादा है. बिहार चुनाव में 5 सीट जीतकर सिर्फ तेजस्वी यादव की नुकसान ही नहीं किया था असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ए आईएमआईएम ने बल्कि अब बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का ब्लड प्रेशर भी बढ़ा दिया है.
चलिए आपको समझाते है कि मामला क्या है. दरहसल बिहार में जो सीटें ओवैसी को मिली हैं उसमें लगभग सभी बंगाल से सटे हुए जिलों है. ओवैसी की पार्टी मज़लिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन बिहार में 20 सीटों में चुनाव लड़कर 5 सीटों पर कब्ज़ा की थी. इसमें से 4 ही सीट पश्चिम बंगाल से सटे हुए जिलों में है. बाकी जो सीटों में एआईएमआईएम ने वोट काटकर बीजेपी या जेडीयू को फायदा दिया है उसमें से भी ज्यादातर सीटें पश्चिम बंगाल के दो जिला मालदह और उत्तर दिनाजपुर से सटे हुए है. तृणमूल कांग्रेस की थिंक टैंक मानते है कि बंगाली बोलने वाले मुस्लिम वोट बैंक पर ओवैसी की उतनी कंट्रोल नहीं है जितना प्रभाव है उर्दू में बात करने वाले मुस्लिम वोटरों पर हैं.
लेकिन बिहार से सटे हुए जिलों में कई सीटों पर जो मुस्लिम वोटर हैं उसमें से बहुत लोग उर्दू में ही बात करते हैं ना कि बंगला में. पश्चिम बंगाल से बिल्कुल सटा हुआ बिहार की 8 विधानसभा केंद्र है. किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार जिलों के इस 8 सीट जैसे कि हम पहले भी बताए हैं कि मालदह और उत्तर दिनाजपुर से सटा हुआ है.
एआईएमआईएम को जहां-जहां जीत मिली है उसमें से किशनगंज के कोचाधामन, पूर्णिया के अमौर और वैसी पश्चिमबंगाल के उत्तर दिनाजपुर से सटा हुआ है. कटिहार के बहादुरगंज मालदह के पास है. यहां भी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को जीत मिली है. सिर्फ यही नहीं असदुद्दीन ओवैसी ने ठाकुरगंज जैसे जगह पर भी मुस्लिम वोट कटुआ पार्टी बनकर महागठबंधन के मामला खराब किया है. ये केंद्र भी उत्तर दिनाजपुर के पास है. बिहार में देखा जाए तो 5 सीट जीतने के साथ-साथ कम से कम 8 से 9 सीटों की नतीजों पर डायरेक्ट इम्पैक्ट रहा है असदुद्दीन ओवैसी का.
बंगाल में इसीलिए टेंशन बढ़ रहा है तृणमूल कांग्रेस कैम्प में क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक टीएमसी के लिए काफी अहम है. आपको बता देते है कि मालदह में हिन्दू वोटर हैं लगभग 48 फीसदी और मुस्लिम वोटर हैं लगभग 52 फीसदी. वही उत्तर दिनाजपुर में भी मुस्लिम वोटरों की संख्या लगभग 51 फीसदी है. साल 2016 विधानसभा चुनाव में टीएमसी को उत्तर दिनाजपुर की 9 सीटों में से 4 में जीत मिली थी. वही लेफ्ट कांग्रेस गठबंधन को 5 सीटों पर जीत मिली थी. मालदह में लेफ्ट और कांग्रेस गठबंधन के खाते में 12 में से 11 सीटें गई थी. हालांकि ये इतिहास है और जानकारों का मानना है कि इस बार लड़ाई टीएमसी और बीजेपी के अंदर ही होने वाली है इस दो जिलों में और वोट में पोलराइजेशन इफ़ेक्ट काफी ज्यादा होने वाला है.
बंगाल चुनाव में एआईएमआईएम फैक्टर काफी अहम होने वाला है
ऐसे में अगर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी मुस्लिम वोटरों से 8 से 10 फीसदी तक भी वोट काट लेते है तो मामला बिगड़ सकता है तृणमूल कांग्रेस के लिए. कोलकाता शहर में भी 2-3 ऐसी सीट है जहां उर्दू बोलने वाले मुस्लिम वोटरों की संख्या काफी ज्यादा है. उस सीटों पर भी नज़र है असदुद्दीन ओवैसी की, सूत्रों का यही मानना है. इसीलिए इस बार बंगाल चुनाव में एआईएमआईएम फैक्टर काफी अहम होने वाला है कई सीटों पर.
ये तो हुई उर्दू में बात करने वाले मुस्लिम वोटरों पर ओवैसी कंट्रोल की. लेकिन बंगला में बात करने वाले मुस्लिमों पर तो ओवैसी की कंट्रोल नहीं है. कुछ हफ्ते पहले ओवैसी से मुलाकात भी किया था अब्बास ने. अब दोनों एक साथ हो जाते है तो टीएमसी के लिए चिंता और बढ़ने वाली है क्योंकि जितना चुनाव जीतना भारी पड़ रहा है बंगाल में उतना ही चुनावी समीकरण और बदलती जा रही है.
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