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पश्चिम बंगाल में कैसे हुई 'मां, माटी, मानुष' की जीत, किस तरह लगाई ममता बनर्जी ने जीत की हैट्रिक

ममता के मैदान में उतरने के साथ ही पूर्वी मेदिनापुर जिले की नंदीग्राम विधानसभा सीट पश्चिम बंगाल चुनाव का एपीसेंटर बन चुकी थी. 10 मार्च को ममता ने नंदीग्राम से अपना नामांकन दाखिल किया था और इसी दिन बंगाल चुनाव में वो टर्निंग प्वाइंट आया.

बीजेपी को इस बात का खूब अहसास था कि उसे असली चुनौती तो पश्चिम बंगाल में ही मिलने वाली है, जहां ममता बनर्जी लंबे समय से पीएम मोदी और बीजेपी के खिलाफ तलवार भांज रही है. यही वजह है कि बंगाल के चुनाव में बीजेपी ने पूरा दम लगा दिया. लेकिन चुनाव के दौरान एक समय ऐसा भी आया जहां से बाजी एक तरफा हो गई.

 

2019 के लोकसभा चुनाव में 42 में से 18 सीटें जीतकर बीजेपी पश्चिम बंगाल में एक ताकत बनकर उभरी थी. यही वजह थी कि बंगाल में की सत्ता पर 10 साल से काबिज ममता बनर्जी को मात देने के लिए उसने बंगाल के चुनाव में पूरा दम लगा दिया था. 19 में हाफ और 21 में साफ के नारे के साथ बीजेपी ने बंगाल में 200 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था. लेकिन बंगाल चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि बीजेपी दोहरा शतक तो दूर शतक भी नहीं लगा सकी है.

बंगाल के सहारे राजनीति पर मजबूत पकड़ की कोशिश

ये अलग बात है कि पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत बीजेपी के तमाम क्षेत्रीय और राष्ट्रीय नेताओं ने बंगाल के चुनाव में खुद को झोंक दिया था.

बिहार में जीत के बाद से ही बंगाल में बीजेपी ने अपना चुनावी प्लान सेट कर दिया था. दरअसल पश्चिम बंगाल का चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री मोदी देश की राजनीति में अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहते थे और यही वजह थी कि बंगाल की चुनावी रणनीति बनाने में कोई चूक न रहे इसीलिए खुद गृहमंत्री अमित शाह काफी पहले से तैयारी में जुट गए थे.

ममता के तीर ने किया घायल

अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने लंबे समय तक बंगाल में खुद ही चुनावी मोर्चा संभाले रखा और हर महीने बंगाल दौरा करने की उनकी रणनीति ने कुछ असर भी दिखाया है. लेकिन बंगाल में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा इसका जवाब बीजेपी के पास नहीं था और शायद यहीं वो बात थी जिसने चुनावी पलड़ा ममता के पक्ष में झुका रखा था.

बीजेपी के खिलाफ बंगाल के सेंटीमेंट को पकड़ने के लिए ममता ने बांग्ला गौरव का तीर भी चलाया जो निशाने पर बैठा है. बीजेपी ने भी चुनाव के दौरान ममता के करीबियों पर निशाना साधा. ममता का चुनाव प्रबंधन देखने वाले मुकुल रॉय को जहां बीजेपी अपने खेमे में ले आई वहीं टीएमसी के कई विधायक और नेता एक के बाद एक बीजेपी में शामिल हो गए यहां तक कि ममता के राइट हैंड रहे सुभेंदु अधिकारी ने भी उनका साथ छोड़ दिया.

ममता ने चला तुरूप का पत्ता

और फिर यही से बंगाल चुनाव में पहला टर्निंग प्वाइंट आया जब ममता बनर्जी ने पार्टी छोड़ने वाले नेताओं को गद्दार बताकर सहानुभूति का कार्ड खेला. औऱ ममता के शुभेंदु के खिलाफ नंदीग्राम से मैदान में उतरने के साथ ही यहां जबरदस्त घमासान छिड़ गया.

ममता के मैदान में उतरने के साथ ही पूर्वी मेदिनापुर जिले की नंदीग्राम विधानसभा सीट पश्चिम बंगाल चुनाव का एपीसेंटर बन चुकी थी. 10 मार्च को ममता ने नंदीग्राम से अपना नामांकन दाखिल किया था और इसी दिन बंगाल चुनाव में वो टर्निंग प्वाइंट आया जिसने अभी तक चुनाव प्रचार में आक्रामक रही बीजेपी को ना सिर्फ बैकफुट पर ढकेल दिया बल्कि ममता के लिए वोटरों के दिल में सहानुभूति की लहर भी पैदा कर दी.

सहानुभूति का चुनाव पर दिखा असर

दरअसल चुनाव का नामंकन पत्र दाखिल करने के बाद शाम को जब ममता एक मंदिर से वापस लौट रही थीं तब अचानक कार का दरवाजा बंद होने की वजह से उनके बाएं पैर, कंधे और गले में चोट आ गई थी. उस समय खुद ममता ने आरोप लगाया था कि एक साजिश के तहत चार-पांच बाहरी लोगों ने उनकी कार के दरवाजे को जबरन बंद कर दिया था जिससे वे घायल हो गई हैं. इस चोट के बाद पैर में प्लास्टर बांधकर ममता ने व्हील चेयर से ही अपना चुनाव प्रचार शुरु कर दिया.

व्हीलचेयर पर प्रचार की उनकी इन तस्वीरों ने बंगाल चुनाव में कितना असर दिखाया ये कहना मुश्किल है. लेकिन इस घटना के बाद से बीजेपी और उसके नेताओं की ममता पर घेराबंदी कमजोर पडती जरुर नजर आई थी. चुनाव नतीजों के बाद भी ममता की चोट की वजह एक रहस्य है लेकिन इस घटना ने पश्चिम बंगाल में चुनावी तस्वीर का रुख जरुर बदल दिया और इसका असर चुनाव नतीजों में भी साफ दिखाई दे रहा है.

ये भी पढ़ें: करूणानिधि और जयललिता के बाद तमिलनाडु में अब स्टालिन युग की शुरुआत

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