अगले साल बंगाल और तमिलनाडु में होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने मेगा प्लान तैयार किया है. इसकी शुरुआत बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह ने इस महीने तीन दिन के तूफानी दौरे से कर दी है. बिसरा मुंडा की धरती बांकुरा से दौरे की शुरुआत करने वाले शाह ने न केवल टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को निशाने पर लिया बल्कि बीजेपी पदाधिकारियों, सांसदों और कोर कमेटी के सदस्यों के साथ अलग अलग बैठकें कर 2019 लोकसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित जीत को जारी रखने का मंत्र दिया. जिसके बाद बीजेपी नेताओं ने मिशन 200 का खाका तैयार किया है. इस मिशन को पूरा करने के लिए बीजेपी बूथ स्तर पर अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुट गई है.
अगले साल की शुरुआत में है पश्चिम बंगाल चुनाव
बिहार चुनाव के बाद देश की निगाहें अगले साल की शुरुआत में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पर टिकी हुई है. पश्चिम बंगाल का चुनाव इसलिए और दिलचस्प हो गया है कि 2019 में लोकसभा की 18 सीटें जीतने वाली बीजेपी और सत्तासीन टीएमसी आमने सामने नजर आ रहे हैं.
राज्य में बीजेपी मजबूती से उभर रही है
2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को भले ही 10.16 फीसदी वोट के साथ महज 3 विधानसभा सीट मिली हो. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में 40.64 फीसदी वोट के साथ बंगाल की 18 सीटें जीतकर बीजेपी ने अपने आपको स्वाभाविक अपोजिशन के रूप में प्रस्तुत कर दिया है. यही नहीं बूथ स्तर पर बीजेपी और टीएमसी के बीच जारी रोजाना की लड़ाई ने ममता सरकार को एक मजबूत चुनौती पेश की है.
बीजेपी को मिला है नया चुनावी हथियार
दरअसल बंगाल हमेशा से देश को दिशा देने वाले महापुरुषों के लिए जाना जाता रहा है. जबकि मौजूदा समय मे बंगाल में लगातार राजनैतिक हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं. माना जा रहा है कि नंदीग्राम आंदोलन, सिंगूर जैसे मामलों से मां, माटी , मानुस का नारा देने वाली ममता बनर्जी ने आंदोलन के रास्ते सत्ता तो हासिल कर लिया. लेकिन जिन वजहों से बंगाल ने ममता को सत्ता सौंपी थी वही माहौल ममता राज में बदस्तूर जारी है. जिसे बीजेपी चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की तैयारी में जुटी है.
यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और दूसरे बड़े नेता जब भी बंगाल के कार्यक्रम को संबोधित करते हैं बंगाल के महापुरुषों को याद करना नहीं भूलते. रविन्द्र नाथ टैगोर, राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद का जिक्र हर कार्यक्रम में किया जाता है. जिसके बाद बंगाल में हो रही हिंसात्मक घटनाओं के जरिये ममता सरकार को घेरने से नहीं चूकते. ममता सरकार की भी यही सबसे बड़ी परेशानी है
मां, माटी, मानुस का नारा देने वाली ममता बनर्जी को बंगाल की जनता ने सत्ता तो सौप दी, लेकिन ममता के सामने उस छवि को बनाये रखने की चुनौती है. और बीजेपी के लिए यही सबसे बड़ा हथियार.
बीजेपी का चुनावी एजेंडा
बीजेपी सूत्रों की मानें तो विधानसभा में बीजेपी भ्रष्टाचार, हिंसा, टोला टैक्स, घुसपैठ और हिन्दू मान्यताओं से जुड़े मसलों को सबसे बड़ा चुनावी एजेंडा बनाने की तैयारी कर रही है. बीजेपी की लगभग सभी रैलियों में ममता सरकार को इन पांच मुद्दों पर सबसे ज्यादा घेरने और हमलावर रहने की योजना बनाई गई है. बीजेपी का मानना है कि आंदोलन के रास्ते सत्ता तक पहुंचने वाली ममता बनर्जी चुनाव जीतने में तो कामयाब रही हैं. लेकिन बंगाल का दिल नहीं जीत पाई.
फोर लेयर में बीजेपी की तैयारी
बीजेपी विधानसभा चुनाव जीतने के लिए फोर लेयर पर तैयारी कर रही है. बूथ स्तर, पंचायत, विधानसभा और जिलास्तरीय कार्यकर्ताओं की एक लंबी चौड़ी टीम गठित की गई है. 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तरह बंगाल में भी एक बूथ 10 यूथ की परिपाटी तैयार की गई है. यानी प्रत्येक बूथ पर 10 युवा कार्यकर्ताओं की टीम खड़ी की जाए. ताकि बूथ स्तर पर वोटरों को बीजेपी के लिए आकर्षित किया जा सके.
यही नहीं बंगाल टीम के अलावा बीजेपी ने बंगाल के 5 सेक्टरों के लिए केंद्रीय नेताओं की एक टीम का भी गठन किया है. जो बंगाल के सभी पांच सेक्टरों में जाकर बूथ स्तर पर कार्यकताओं से सुझाव लेगी और 20 नवम्बर तक इसकी रिपोर्ट जेपी नड्डा और बीएल संतोष को सौंपी जाएगी.
राष्ट्रीय सचिव विनोद सोनकर को राबंगा, सुनील देवधर को हुबली मेदिनी, महासचिव दुष्यंत गौतम को कोलकाता, नबादीप को विनोद तावड़े और उत्तर बंगा की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री शिवप्रकाश सिंह को दी गई है. पांचों सेक्टर में राष्ट्रीय पदाधिकारी बंगाल के सांसदों, विधायक, जिला अध्यक्ष, पूर्व जिलाध्यक्ष, जिला प्रभारी और बूथ अध्यक्षों से करेंगे वन टू वन संवाद करेंगे और उनका फीडबैक लेंगे.
दरअसल बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत उसका सांगठनिक ढांचा और उनके नेता नरेंद्र मोदी के नाम की विश्वसनीयता है. जिसे वो ज्यादा से ज्यादा भुनाने की जुगत में है.
नार्थ बंगाल की 55 सीटों पर बीजेपी की नजर
2019 लोकसभा चुनाव पर नजर दौडाएं तो पता चलता है कि बीजेपी को 40.64 फीसदी वोट शेयर के साथ 18 लोकसभा सीटे मिली जो 2014 के मुकाबले 16 सीटों का इजाफा हुआ था. जबकि टीएमसी को 43.69 फीसदी वोट शेयर के साथ 22 लोकसभा सीटे जीतने में कामयाब रही थी. जो 2014 के मुकाबले 12 सीटों का नुकसान था. असली लड़ाई यहीं से शुरू होती है. दरअसल इस नतीजे के दौरान 122 ऐसी विधानसभा सीटें थी जहां बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. जबकि टीएमसी ने 163 विधानसभा सीटों पर अपनी बढ़त बनाई थी. 2016 विधानसभा चुनाव में महज 3 विधानसभा सीट जितने वाली बीजेपी 122 विधानसभा सीटों में आगे थी. इससे बीजेपी के हौसले और बुलंद हो गए.
इसलिए बीजेपी ने नार्थ बंगाल की उन 55 सीटों पर ध्यान केंद्रित किया हुआ हैं जहां बांग्लादेश से आये हिन्दू शरणार्थियों की संख्या ज्यादा है. और उनके बीच बीजेपी रोजाना अपनी पकड़ मजबूत करती जा रही है. 2019 लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को इसी इलाके से सबसे ज्यादा फायदा मिला था.
साउथ बंगाल में जमीन बचाने की लड़ाई
नार्थ बंगाल की 55 सीटों पर बीजेपी मजबूत होती पकड़ को ध्यान में रखते हुए टीएमसी साउथ बंगाल में अपनी पकड़ ढीली नहीं होने देना चाहती. यही कारण है कि सबसे ज्यादा राजनैतिक हिंसा की घटनाएं साउथ बंगाल में सामने आ रही है. बीजेपी का आरोप है कि बंगाल में अब तक करीब 120 से ज्यादा बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या की गई है. जिनमें करीब 40 से ज्यादा बीजेपी समर्थित लोगों की हत्या दक्षिण बंगाल में हुई है.
दरअसल दक्षिण बंगाल की 85 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं जहां अल्पसंख्यक वोटों की बड़ी संख्या है. जो निर्णायक स्थिति में है. और टीएमसी किसी भी कीमत पर इस इलाके में अपनी पकड़ ढीली नहीं होने देना चाहती है. राजनैतिक हिंसाओं के पीछे भी यही कारण माना जा रहा है. दरसअल बीजेपी बंगाल जीतने के लिए साउथ बंगाल में अपनी जड़ें जमाना चाहती है. जहां पहले से ही टीएमसी का एकाधिकार है. बंगाल में जारी खूनी संघर्ष के पीछे भी यही कारण माना जा रहा है.
ये हैं बंगाल चुनाव के लिए महत्वपूर्ण चेहरे
अमित शाह- पूर्व अध्यक्ष और गृहमंत्री-- अमित शाह अपरोक्ष रूप से बंगाल चुनाव की कमान संभाल चुके हैं. जिसकी शुरुआत इस महीने की 5 तारीख को बांकुरा से कर चुके है. संगठन चलाने के महारथी शाह की अगुआई में ही बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में 42 में से 18 सीटें जीतकर इतिहास रचा था.
कैलाश विजयवर्गीय-जून 2015 में राष्ट्रीय महासचिव बनाये गए. उसके बाद उन्हें पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया. लोकसभा चुनाव में बेहतरीन काम करने की वजह से जेपी नड्डा ने अपनी टीम में भी उनकी भूमिका के साथ कोई बदलाव नहीं किया. बंगाल में गांव गांव तक कार्यकर्ताओं के बीच काफी लोकप्रिय हो चुके हैं.
दिलीप घोष- प्रदेश अध्यक्ष घोष बीजेपी के जुझारू नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं. अध्यक्ष बनने के बाद से अबतक एक अनुमान के मुताबिक उनकी गाड़ी में अब तक 100 से ज्यादा बार हमला हो चुका है.
मुकुल रॉय- कभी टीएमसी के दिग्गज और ममता बनर्जी के खास माने जाते थे. लेकिन अब बीजेपी में हैं. मुकुल रॉय जमीनी कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़ रखने के साथ टीएमसी के लुपोल्स को भली भांति जानते है
शिवप्रकाश सिंह- केंद्रीय सहसंगठन मंत्री-- संघ के प्रचारक और इन दिनों केंद्रीय सह संगठन मंत्री का दायित्त्व संभाल रहे शिवप्रकाश सिंह जमीनी कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोलने के माहिर मने जाते है. रणनीति बनाने में महारत होने के चलते हर उस स्टेट में बीजेपी की कोर टीम का हिस्सा रहते है जहां बीजेपी सरकार से बाहर होती है.
दरअसल बीजेपी 2019 के टेंपो को न सिर्फ बरकरार रखना चाहती है. बल्कि अपने विकास के एजेंडे को जनता के बीच रखकर ममता सरकार को पलटना चाहती है. अब देखना ये दिलचस्प होगा की बंगाल की जनता मोदी के विकास वाले वादे को पसंद करती है या फिर दीदी की सादगी को तरजीह देती है.
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