पश्चिम बंगाल का महासंग्राम दिन पर दिन भीषण होता जा रहा है. नेता जी सुभाषचंद्र बोस की जयंती के साथ ही पीएम मोदी के प्रवेश और ममता के सड़कों पर दिखे आवेग के बाद लड़ाई का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं. एक दूसरे को झटका देने में जुटी बीजेपी और तृणमूल के बीच सबसे भीषण महासमर का मैदान अब पूरी तरह सज चुका है. इसमें एक बात तो साफ हो गई है कि पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री अब राज्य की सबसे चर्चित सीट नंदीग्राम से तय होगा. जब यह तय हो गया है तो बीजेपी ने भी अपने ट्रंपकार्ड यानी मोदी को उसी हिसाब से यहां खेलने का फ़ैसला कर लिया है. इस राज की परत हम आगे खोलेंगे, लेकिन पहले बाद इस सबसे अहम सीट की.
आज बात सबसे हॉट सीट नंदीग्राम की
राज की बात में बात आज बंगाल की सबसे हाट सीट नंदीग्राम की. ये नंदीग्राम ही है, जहां से परिवर्तन का नारा देकर तृणमूल कांग्रेस ऐसे चक्रवात की तरह आई कि साढ़े तीन दशकों से अडिग वामपंथ के पेड़ को जड़ों समेत उखाड़ ले गई. अब बीजेपी ने भी परिवर्तन का नारा भी यहीं से दिया है. ममता के दाहिने हाथ रहे और बंगाल में फ़िलहाल नंदीग्राम से विधायक और इस इलाक़े के सबसे क़द्दावर नेता रहे शुभेंदु अधिकारी को बीजेपी अपने साथ ले गई है. शुभेंदु के यहां से जाने का मतलब ममता भी जानती हैं. वैसे भी मुकुल राय के बाद शुभेंदु को बीजेपी में जाने को ममता के नीचे से ज़मीन ग़ायब होने की तरह देखा जा रहा था.
संघर्ष और मेहनत की पराकाष्ठा से सत्ता तक पहुंची ममता भी ठहरीं योद्धा. उन्होंने शुभेंदु को उनके ही गढ़ नंदीग्राम में सीमित कर देने के लिए खुद ही वहां से ताल ठोक दी. वैसे ममता के अलावा और कोई नेता ऐसा था भी नहीं कि शुभेंदु के प्रभाव को वहां पर कमजोर कर सकता. नंदीग्राम में क़रीब पौने तीन लाख वोटर हैं. इनमें से 62000 मुसलिम हैं और बाक़ी 2.13 लाख वोटर हिंदू समुदाय के विभिन्न वर्गों से. अल्पसंख्यक वोट पूरी तरह से ममता अपने साथ मानकर चल रही है और अब तक का ट्रैक रिकॉर्ड भी यही रहा है. ममता जैसी नेता जो शुभेंदु अधिकारी की भी नेता रही हैं, उनके आने का असर ज़ाहिर तौर पर यहां है.
बीजेपी सबसे पहले पीएम नरेंद्र मोदी को नंदीग्राम ही उतारेगी
हालांकि तथ्य यह भी है कि नंदीग्राम सिर्फ अब एक सीट नहीं. बल्कि पूर्व और पश्चिम मिदनापुर के दो जिलों की तीस सीटों पर इसका सीधा असर पड़ेगा. यहां पर शुभेंदु का ख़ासा प्रभाव है. यहां तक कि नंदीग्राम फ़ायरिंग में मारे गए 14 लोगों को शहीद का दर्जा दिया गया था, उनमें ज़्यादातर मुसलिम हैं. उन सभी परिवारों की देखरेख अब तक तृणमूल के झंडे के तले शुभेंदु करते चले आ रहे थे. शुभेंदु अपने इलाक़े में सर्वसुलभ नेता भी हैं. मुस्लिमों के बीच उनकी अपनी पकड़ भी है. ऐसे में ममता के सीधे उतरने के मायने समझना मुश्किल नहीं. अब ममता ने जब अपने को झोंक कर ट्रंपकार्ड चल दिया है तो बीजेपी अब उस पर अपना तुरुप का पत्ता चलने की रणनीति बना चुकी है.
राज की बात ये कि चुनावी समर शुरू होते ही बीजेपी सबसे पहले पीएम नरेंद्र मोदी को नंदीग्राम ही उतारेगी. मतलब शुभेंदु पर ममता ने जो अपना वजन डालकर दबाने की कोशिश की है, उसे मोदी लहर पर सवार होकर बीजेपी तहस-नहस करने की कोशिश करेगी. मोदी का बंगाल में कैसा जादू है यह 2011 के नतीजे बता चुके हैं. मगर 2014 में मोदी की व्यक्तिगत अपील का जो असर हुआ था, उसे याद दिलाना ज़रूरी है.
शुभेंदु के पीछे मोदी अपना पूरा वजन झोंकेंगे
उस समय तक बीजेपी सिर्फ किसी तरह से बंगाल में दार्जिलिंग की सीट जीत पाती थी. मगर बंगाल की मूल ज़मीन पर जब आसनसोल 2014 में मोदी गए और अपील की कि उन्हें केंद्र में यहां से बाबुल सुप्रीयो चाहिये. गायक बाबुल को यहां की जनता ने सांसद बना दिया था. उसी तरह अब शुभेंदु के पीछे मोदी अपना पूरा वजन झोंकेंगे. इसके साथ ही ममता बनर्जी का क़िला ढहाने के लिए बीजेपी पांच रथ यात्रायें भी निकाल रही है. इनमें से तीन खुद गृहमंत्री अमित शाह निकालेंगे, जबकि दो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा.
क्या नंदीग्राम से होगा अगला सीएम
भले ही बीजेपी बंगाल में अपना सीएम पद का प्रत्याशी नहीं घोषित कर रही है, लेकिन अगर नंदीग्राम शुभेंदु जीतते हैं और बीजेपी सरकार बनाने की स्थिति में आती है तो चेहरा कौन होगा यह समझना मुश्किल नहीं होगा. ज़ाहिर है कि जब शुभेंदु पर पार्टी ने पूरा दांव लगा दिया है और ममता भी वहीं से हैं तो नंदीग्राम ही बंगाल को अगला सीएम देने जा रहा है.
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