पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के सबसे ताजा ओपिनियन पोल के मुताबिक जहां राज्य की सत्ताधारी टीएमसी 154 से 164 सीट जीतती हुई दिखाई दे रही है तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के खाते में 102 से 112 सीटों के आने का अनुमान है. एबीपी न्यूज-सीएनएक्स सर्वे में हालांकि यह बताया गया है कि मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर अभी भी राज्य की जनता सबसे ज्यादा ममता बनर्जी को ही पसंद कर रहे हैं. 42.65 फीसदी राज्य के लोग जहां ममता बनर्जी को दोबारा सीएम पद पर देखना चाहते हैं तो वहीं बंगाल बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के पक्ष में 24.17 फीसदी लोग हैं.
जाहिर है, पिछले 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में सिर्फ 3 सीट पाने वाले बीजेपी अनुमानों में 100 का आंकड़ा पार करती हुई दिखाई दे रही है जो राज्य की राजनीति के एक बड़े बदलाव की आहट हो सकती है. इसको लेकर आपको बताते हैं क्या मानना है कि राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप सिंह का. इसके साथ ही, पश्चिम बंगाल चुनाव में 'एम' फैक्ट क्यों इतना अहम है? इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दूबे के विचारों से भी आपको रू-ब-रू कराते हैं.
ममता को मुश्किल होगा गद्दी बचाना
राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दूबे का एबीपी न्यूज-सीएनएक्स ओपिनियन पोल को लेकर यह कहना है कि टीएमसी बंगाल चुनाव में बढ़त में जरूर है, लेकिन परिस्थितियां ऐसी नहीं रहेंगी. उन्होंने बताया कि भारतीय जनता पार्टी अभी और बढ़ेगी और हालत ऐसी हो जाएगी कि राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को गद्दी बचाना मुश्किल हो जाएगा. हालांकि, अभय दूबे ने कहा कि आगे चुनाव क्या रुख लेता है यह राज्य में तीन चरणों की वोटिंग के बाद ही पता चल पाएगा.
ओपिनियन पोल सिर्फ डायरेक्शन बताते है
पश्चिम बंगाल के ओपिनियन पोल में बीजेपी के करीब 112 सीटों के आने के अनुमान पर प्रदीप सिंह का यह कहना है कि ये राज्य में बड़े बदलाव की ओर इशारा कर रहा है. उनका कहना है कि जब कोई भी पार्टी पहली बार राज्य की सत्ता में आने के दावेदार हो तो उसे ओपिनियन पोल में पीछे दिखाया गया है, चाहे बात उत्तर प्रदेश की हो, त्रिपुरा की हो या फिर असम की. यहां तक की जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 2015 में जब विधानसभा का चुनाव कराया गया था उस समय में आम आदमी पार्टी को पीछे दिखाया गया था.
लगातार घट रही टीएमसी
प्रदीप सिंह बताते हैं कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जहां आज बीजेपी हर पोल में लगातार बढ़ती जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ अनुमानों में टीएमसी का आंकड़ा नीचे आता जा रहा है. उन्होंने कहा कि ओपिनियन पोल के मुताबिक, टीएमसी जहां एक तरफ 211 से अब 55 सीटें चुनाव में खोने जा रही है तो वहीं बीजेपी 3 से 100 सीट पर जा रही है. यह बीजेपी के लिए एक बड़ी ग्रोथ है.
टीएमसी कर रही सत्ता विरोधी लहर का सामना
प्रदीप सिंह का कहना है कि इस वक्त टीएमसी राज्य में बचाव की मुद्रा में है. उसकी वजह ये है कि जहां एक तरफ आज टीएमसी के विधायक सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ ममता बनर्जी कभी उनके सबसे करीबी रेह शुभेंदु अधिकारी को नंदीग्राम में चैलेंज देने के लिए भवानीपुर विधानसभा सीट छोड़कर वहां चली गई हैं.
ममता बनर्जी का फेस वैल्यू जादा
हालांकि, पश्चिम बंगाल में अभी भी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर सबसे ज्यादा ममता बनर्जी को ही पसंद किया जा रहा है. इस सवाल के जवाब में प्रदीप सिंह बताते हैं कि यह लाजिमी है क्योंकि उनका फेस वैल्यू ज्यादा है. ममता बनर्जी केन्द्रीय मंत्री रहीं, दो बार से राज्य की मुख्यमंत्री हैं. राजनीति में वह लंबे समय से सक्रिय रही हैं. जबकि उनके मुकाबले दिलीप घोष पहली बार प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बने हैं. ऐसे में दिलीप घोष की हालत पहले से और पार्टी में अन्य के मुकाबले कहीं ज्यादा अच्छी है.
ममता बनाम मोदी
प्रदीप सिंह बताते हैं कि इस चुनाव में ममता बनर्जी बनाम मोदी का कंपैरिजन किया जा रहा है, लेकिन मुख्यतौर पर ये राज्य का चुनाव है. ऐसे में लोकसभा चुनाव में समीकरण अलग होता है जबकि विधानसभा चुनाव का सियासी समीकरण अलग है. इस चुनाव में ममता बनर्जी भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का आरोप झेल रही हैं. इस स्थिति में पीएम की रेटिंग ममता से कहीं ज्यादा है. बीजेपी सत्ता में नहीं रही इसलिए उसकी कोई जवाबदेही अभी नहीं है. बीजेपी को यहां के चुनाव में डिफेंसिव होने की जरूरत नहीं है. जाहिर है ये मुकाबला कांटे का होने जा रहा है.
मिथुन फैक्टर का कितना असर
मिथन फैक्टर के बारे में जहां वरिष्ठ पत्रकार अभय दूबे का यह कहना है कि बीजेपी को किसी प्रतिष्ठित चेहरे की तलाश थी. यहां सौरव गांगुली के तौर पर नहीं हो पाया तो बीजेपी ने मिथुन चक्रवर्ती को पार्टी में शामिल कर यह मैसेज दे दिया. जबकि प्रदीप सिंह का यह मानना है कि मिथुन चक्रवर्ती का एक साइकोलॉजिटक फैक्टर है. इसका चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि इस चुनाव पर अगर किसी का सबसे ज्यादा असर पड़ेगा तो वो हैं मोदी और ममता. बीजेपी के पास कोई बड़ा स्टेट लीडर नही है. बीजेपी की रणनीति रही है कि राज्यों में वह मोदी का इस्तेमाल करती है. 2019 के बाद से देश में पीएम मोदी का कद और बढ़ा है. जबकि ममता की पोपुलरिटी घटी है. लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें काफी घटी है.