Thoraco-Omphalopagus: 20 साल पहले मोना और लीसा जुड़वां बच्चों के रूप में जन्मी थीं. मोना और लीसा पश्चिम बंगाल में रहने वाली दो बहनें हैं, जिनका शरीर 20 साल पहले जन्म से ही एक दूसरे से सटा हुआ था. डॉक्टरों ने दोनों को ऑपरेशन करके अलग-अलग किया था. अब 20 साल के बाद मोना और लीसा खुशहाल जीवन जी रही हैं और दोनों एक साल के बच्चे की मां हैं. 


मोना और लीसा को जब अलग किया गया था तब वह 6 महीने की थीं, दोनों बहनों की 8 घंटे तक जटिल सर्जरी में शामिल रहने वाली नर्सों ने इनका नाम मोना और लीसा रखा था. डॉक्टरों ने दोनों बहनों को याद करते हुए कहा, दोनों बहनें का लीवर और छोटी आंत और डायाफ्राम एक साथ साझा करती थीं. दरअसल, डायाफ्राम एक मुलायम, पतला, गुंबद के आकार का लेटेक्स या सिलिकॉन से बना लचीली रिम वाला कप होता है, जिसका उपयोग महिला गर्भ निरोधक उपाय के रूप में किया जाता है


दुनिया का 27वां सफल ऑपरेशन था
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, बंगाल के सरकारी अस्पताल में सटे हुए जुड़वा बच्चों की पहली सफल सर्जरी थी. ये थोरको-ओम्फालोपैगस जुड़वा बच्चों का दुनिया का 27वां सफल ऑपरेशन था. इस बिमारी में बच्चों की छाती एक दूसरे से जुड़ी होती है. यह बच्चे पसलियों के साथ में कुछ अन्य दूसरे आंतरिक अंगों को एक साथ साझा करते थे. 


1 नवंबर 2002 को मोना और लीसा का मेडिकल कॉलेज में सर्जरी करने वाले डॉक्टर नरेंद्रनाथ मुखर्जी ने कहा, "हालांकि इनके दो फेफड़े और दो दिल थे, जुड़वा बच्चों के प्लूरल इफ्यूजन और पेरिकार्डियल एक थे. जो इनकी हिफाजत करता है." बता दें कि इस जटिल सर्जरी का को बाल रोग सर्जन अशोक कुमार रे और उनके जूनियर नरेंद्रनाथ मुखर्जी के नेतृत्व में 30 डॉक्टरों की एक टीम ने किया था.


ऑपरेशन के बाद गंभीर समस्या हुई
डॉक्टर मुखर्जी ने याद करते हुए बताया, "मोना और लीसा को ऑपरेशन के बाद गंभीर समस्या हुई लेकिन डॉक्टर और पैरामेडिक्ल स्टाफ मेहनत से उन्हें स्वस्थ्य करने में सफलता मिली थी, जिसके बाद 12 दिसंबर, 2002 को इन जुड़वा बच्चों को उनके माता-पिता को सौंप दिया गया था."


डॉक्टर मुखर्जी इसी साल मार्च में बर्दवान मेडिकल कॉलेज में बाल चिकित्सा विभाग के एचओडी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. उनका बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में लंबा करियर रहा है. नरेंद्रनाथ मुखर्जी अपने 40 साल के करियर में मोना और लीसा की सर्जरी को सबसे बड़ी उपलब्धी मानते हैं. 


बाद में पता चला दोनों एक थीं
हालांकि मोना और लीसा को बहुत बाद में अपने मां-बाप से यह पता चला कि दोनों जन्म के समय एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं. डॉक्टरों ने उन्हें चमत्कारिक रूप से नया जीवन दिया है. आज भी दोनों बहनों के पेट पर ऑपरेशन के निशान मौजूद हैं. मोना चक्रवर्ती ने कहा, "शादी से पहले, हमारे मां-बाप ने हमारे ससुराल वालों को सब कुछ बता दिया और उन्होंने हमें सहर्ष स्वीकार कर लिया." मोना की 15 महीने की बेटी है, जबकि मोना की बहन लीजा बनर्जी की एक साल की बेटी है.


दोनों का वजन केवल 3.5 किलोग्राम था- पिता 
मोना-लीसा के पिता शुभंकर भट्टाचार्य ने बताया कि उनकी बेटियों का जन्म 18 जून, 2002 को बर्दवान के एक निजी क्लिनिक में हुआ था. उन्होंने बताया, "दोनों सिर्फ दो हफ्ते की थीं जब डॉ मुखर्जी उन्हें आगे के इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज ले आए थे. दोनों का संयुक्त रूप से वजन केवल 3.5 किलोग्राम था और उस समय वे संक्रमण और डायरिया से पीड़ित थीं." दोनों बहने साढ़े पांच महीने अस्पताल में भर्ती थीं, इस दौरान सर्जिकल वार्ड की नर्सों ने इनकी विशेष देखभाल की थी. इन्हीं नर्सों में से किसी एक ने इनकी नाम मोना और लीसा रखा था. 


बता दें कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सूर्यकांत मिश्रा के हस्तक्षेप के बाद अस्पताल ने 6 लाख रुपये से ज्यादा की इलाज राशि माफ कर दी थी. इसके अलावा कोलकाता में इसी बीमारी से पीड़ित गंगा-जमुना नाम के मरीजों की पहली सफल सर्जरी साल 1986 में हुई थी. प्रोफेसर सुबीर के आर चटर्जी ने एक निजी नर्सिंग होम में यह पहली सर्जरी की थी.


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