भारतीय रिजर्व बैंक ने बीते शुक्रवार यानी 19 मई को एक चौंकाने वाला फैसला लेते हुए 2,000 रुपये के नोटों को चलन से वापस लेने की घोषणा की. इसका मतलब है कि अब 2000 रुपये के नोट की छपाई भी नहीं होगी और कोई भी बैंक आपको यह नोट नहीं देगा. हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि यह नोट बंद हो गया है.
आरबीआई ने ऐलान किया है कि 23 मई से लेकर 30 सितंबर तक 2 हजार रुपये के नोटों को खातों में जमा कराएं जा सकेंगे या बैंकों में जाकर बदले जा सकेंगे.
आरबीआई के इस फैसले ने एक बार फिर से देश को साल 2016 में हुए नोटबंदी की याद दिला दी है. दरअसल बाजार में 2000 रुपये के नोट आने के 78 महीने बाद ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसे चलन से बाहर करने का ऐलान कर दिया. आरबीआई के इस फैसले के बाद अब सवाल उठता है कि 2000 हजार के नोट को वापस लेने के फैसले से भारत की अर्थव्यवस्था को कितना बड़ा नुकसान पहुंच सकता है?
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
1. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों ने कहा, 'सरकार और केंद्रीय बैंक ने इस कदम को उठाने का सही कारण तो अब तक नहीं बताया है. लेकिन आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले इस तरह का निर्णय लेना बुद्धिमानी भरा फैसला है, क्योंकि चुनाव के दौरान जनता को लुभाने और प्रचार में आमतौर पर नकदी का उपयोग बढ़ जाता है.
2. वहीं एलएंडटी फाइनेंस होल्डिंग्स के समूह मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेगे नित्सुरे ने रॉयटर्स को बताया, ' 2,000 रुपये का नोट वापस लिए जाना 'बहुत बड़ी घटना' नहीं है और इससे अर्थव्यवस्था या मौद्रिक नीति पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा. क्योंकि पिछले 6-7 सालों में देश में डिजिटल लेन-देन और ई-कॉमर्स का दायरा काफी बढ़ गया है."
3. हालांकि क्वांटिको रिसर्च की एक अर्थशास्त्री युविका सिंघल ने मिंट को बताया को बताया कि इस फैसले का असर कृषि और निर्माण जैसे छोटे व्यवसायों पर पड़ सकता है. इसके अलावा वैसे क्षेत्र जहां आज भी डिजिटल ट्रांजेक्शन के मुकाबले ज्यादा लोग नकदी का इस्तेमाल करते हैं उन्हें असुविधा का सामना करना पड़ सकता है.
4. अर्थशास्त्र के प्रोफेसर वरुण सिंह ने एबीपी को बताया कि 2000 रुपये के वापस लेने के फैसले के बाद रियल एस्टेट और सोने जैसी महंगी चीज़ों की मांग बढ़ने लगेगी. लोग अपने 2000 के नोट को गहनों और जमीन में इन्वेस्ट करना चाहेंगे. इसके अलावा छोटे नोटों की मांग भी बढ़ जाएगी. ऐसा ही कुछ साल 2016 में हुई नोटबंदी के बाद भी देखा गया था. लोग ज्यादा से ज्यादा पैसा रियल स्टेट और सोने चांदी जैसी चीजों में लगाने लगे थे.
बाजार पर पड़ेगा असर
'द हिंदू' अखबार के रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल भारत में 3.7 लाख करोड़ रुपये के मूल्य के 2000 रुपये के नोट मौजूद हैं. अगर उसका एक तिहाई नोट भी बैंकों के पास वापस जाता है तो बाजार में नकदी बढ़कर 40 हज़ार करोड़ रुपये से लेकर 1.1 लाख करोड़ रुपये के बीच पहुंच सकती है.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अघोषित आय पर टैक्स बचाने के लिए जिन लोगों ने 2000 रुपये के नोटों को जमा कर के रखा था, उन्हें अब गहने खरीदने और रियल एस्टेट सेक्टर में लगा दिया जाएगा.
2019 के बाद से ही छपना बंद हो चुका है 2000 का नोट
आरबीआई के आंकड़ों की मानें तो 2000 रुपये के नोट को साल 2019 के बाद से ही छापना बंद कर दिया था. यही कारण है कि 2023 मार्च तक बाजार में 2000 रुपये का नोट सिर्फ 10.8 प्रतिशत रह गया है. ऐसे में अगर आरबीआई ने यह फैसला नहीं भी लिया होता तो कुछ सालों में यह नोट बाजार में दिखना बंद हो जाता.
दरअसल वर्तमान में भारत में 31 लाख 33 हजार करोड़ रुपये की करेंसी सर्कुलेशन में हैं. इनमें केवल 3 लाख 13 हजार करोड़ रुपये की 2 हजार रुपये की करेंसी चलन में है. आरबीआई के अनुसार मार्च 2017 से पहले ही 2000 रुपये के लगभग 89 प्रतिशत नोट जारी कर दिए गए थे.
साल 2018 के मार्च महीने में 6.73 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 2,000 रुपये के नोट चलन में मौजूद थे, लेकिन साल 2023 के मार्च महीने तक इनकी संख्या घटकर 3.62 लाख करोड़ रुपये रह गई. इसी तरह वर्तमान में मौजूद कुल नोट का सिर्फ 10.8 प्रतिशत ही 2,000 रुपये के नोट रह गए हैं जो मार्च, 2018 में 37.3 प्रतिशत थे.
क्यों की गई नोट की छपाई बंद
साल 2016 में यानी आज से लगभग साढ़े छह साल पहले नोटबंदी के बाद केंद्र सरकार ने 2000 रुपये के नए नोट की छपाई शुरू की थी. ये नोट आईबीआई एक्ट की धारा 24(1) के तहत आरबीआई द्वारा जारी किए गए थे.
वहीं बीते शुक्रवार को 2000 रुपये के नोट के चलन को बंद करने के फैसला के बाद आरबीआई ने अपने बयान में कहा है कि ये फैसला नोटबंदी के बाद पैदा हुई ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया गया था.
आरबीआई ने कहा, "ये उद्देश्य बाजार में अन्य नोट पर्याप्त मात्रा में आ जाने के बाद पूरा हो गया था और इसलिए साल 2018-19 में दो हज़ार रुपये के नोट छापने बंद कर दिए गए थे." रिज़र्व बैंक ने दो हज़ार रुपये के नोटों को वापस लेते हुए कहा है कि ये बैंक की क्लीन नोट पॉलिसी के तहत किया जा रहा है.
क्या है क्लीन नोट पॉलिसी
क्लीन नोट पॉलिसी ये सुनिश्चित करता है कि लोगों के बीच अच्छे क्वालिटी के बैंक नोट पहुंचे. इस पॉलिसी का उद्देश्य भारतीय करेंसी के डैमेज, नकली और गंदे नोटों को हटाकर भारतीय मुद्रा की अखंडता को बनाए रखना है.
इस पॉलिसी के तहत क्या होता है
यह पॉलिसी अनफिट या डैमेज नोटों को बैंक और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट सर्कुलेशन से बाहर करता है. इस पॉलिसी के तहत पुराने नोटों को नए नोटों के साथ बदलना होता है. आरबीआई की इस नीति के तहत सर्कुलेशन में नोटों की क्वालिटी को मॉनिटर किया जाता है.
इस फैसले पर कांग्रेस समेत विपक्ष के नेताओं ने साधा निशाना
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, 'आरबीआई और तथाकथित स्वयंसेवी विश्वगुरु, पहले करते हैं फिर सोचते हैं. 8 नवंबर 2016 को तुगलकी फरमान के बाद इतने शोर शराबे से पेश किए गए 2000 रुपये के नोट अब वापस लिए जा रहे हैं.
वहीं अलका लांबा ने इस फैसले पर कहा, 'इस मामले में जांच होती है तो नोटबंदी इस सदी का सबसे बड़ा घोटाला साबित होगा. काले धन पर हमले के नाम पर 1000 रुपये का नोट बंद कर 2000 रुपये का नोट जारी कर प्रधानमंत्री मोदी ने मात्र अपने भगोड़े पूंजीपति मित्रों का ही काम आसान किया.
आप नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा पीएम ने नोटबंदी कर नए नोट शुरू करने का चलन शुरू किया था. जब उन्होंने ऐसा किया था तो लोगों की जान चली गई थी, व्यवसाय चौपट हो गए थे. मुझे आशा है कि यह फैसला विशेषज्ञों की सिफारिश पर लिया गया है.
आप नेता और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि सरकार पहले कहती थी कि 2000 का नोट लाने से भ्रष्टाचार बंद होगा. अब बोल रहे हैं 2000 का नोट बंद करने से भ्रष्टाचार खत्म होगा. इसीलिए हम कहते हैं, PM पढ़ा लिखा होना चाहिए. एक अनपढ़ पीएम को कोई कुछ भी बोल जाता है. उन्हें समझ आता नहीं है. भुगतना जनता को पड़ता है.
2000 के नोट के वापस लेने के फैसले पर जनता क्या सोचती है
एबीपी न्यूज ने इसे लेकर एक सर्वे किया है. इस सर्वे में पूछा गया कि क्या 2000 के नोट बंद करने का असर वोटिंग के फैसले पर पड़ेगा. इस पर 22 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि हां इसका असर पड़ेगा, लेकिन बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो ये मानते हैं कि इसका कोई असर नहीं होगा.
सर्वे में 58 प्रतिशत लोगों ने माना है कि वोटिंग के फैसले पर दो हजार के नोट बंद करने का कोई प्रभाव नहीं होगा. इस सर्वे में 20 फीसदी लोगों ने कहा कि वह इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं और कह नहीं सकते कि असर होगा या नहीं.
मोदी सरकार ने नोटबंदी क्यों की थी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी को ऐलान किया था. उस वक्त 500-1000 के नोट को चलन से बाहर कर दिया गया था. सरकार ने बताया कि इस फैसले को भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए लिया गया है. बाद में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी हलफनामा दाखिल कर नोटबंदी का कारण बताया.
साल 2022 के नवंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने बताया कि नोटबंदी को गलत निर्णय नहीं कहा जा सकता है. केंद्र ने कहा कि प्रधानमंत्री ने आरबीआई के सुझाव पर ही इसकी घोषणा की थी. नोटबंदी की तैयारी 6 महीने पहले से आरबीआई कर रही थी.
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में कहा- नोटबंदी करना फेक करेंसी, टेरर फंडिंग, काले धन और टैक्स चोरी की समस्याओं से निपटने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा और एक प्रभावी उपाय था. मोदी सरकार ने नोटबंदी को नीतिगत निर्णय बताया था.