संसद की स्थायी समितियों के पुनर्गठन पर बवाल शुरू हो गया है. दरअसल संसद की स्थायी समितियों का पुनर्गठन किया गया. इसके बाद कांग्रेस ने गृह विभाग और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की अध्यक्षता गंवा दी. आमतौर पर नई लोकसभा के गठन के समय समितियों का गठन होता है और सत्ता पक्ष व विपक्षी पार्टियों के संख्या बल के हिसाब से संसदीय समितियों की अध्यक्षता का बंटवारा होता है. 


लेकिन इस बार लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के डेढ़ साल बाद संसद की स्थायी समितियों का नए सिरे से बंटवारा किया गया है. इस बंटवारे में शीर्ष चार मंत्रालयों- विदेश, वित्त, गृह और रक्षा मंत्रालय से जुड़ी स्थायी समितियों की अध्यक्षता अब बाजेपी के पास है. यह समितियां पहले कांग्रेस के पास थी. 


क्या होती हैं संसदीय समितियां


मुख्य रूप से संसद दो काम करता है पहला काम है कानून बनाना और दूसरा काम है सरकार की कार्यात्मक शाखा का देखरेख करना. संसद के अंदर इन्हीं कामों को बेहतर तरीके से पूरा करने के लिए संसदीय समितियों को एक माध्यम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. 


संसदीय स्थायी समितियों में छोटे-छोटे समूह होते हैं ये समूह अलग-अलग दलों के सांसदों के होते हैं, इन ग्रुप में शामिल होने वाले सांसदों को उनकी व्यक्तिगत रुचि और विशेषता के आधार पर बांटा जाता है, ताकि वे किसी भी विषय पर विचार-विमर्श कर सकें. भारतीय संसद प्रणाली की ज्यादातर नियम या प्रथाएं ब्रिटिश संसद से ली हुई है.  संसदीय समिति बनाने का विचार भी ब्रिटिश संसद से ही लिया गया है. 


विश्व की पहली संसदीय समिति का गठन साल 1571 में ब्रिटेन में हुआ था. वहीं अप्रैल 1950 में हमारे देश भारत में पहली लोक लेखा समिति का गठन किया गया था.




मिनी संसद हैं संसदीय समितियां


मंत्रालय संबंधी स्थायी समितियों को मिनी संसद कहा जाता है. इन समितियों के पास बहुत ताकत होता है. इनका आरंभ 1993 में हुआ था. संसदीय समितियां जनता और संसद के बीच की अहम कड़ी है, क्योंकि ये समिति जनता से ये सुझाव भी मांगती हैं और पेशेवरों की सलाह भी लेती हैं और खुद अहम विषयों का चयन करती हैं. ये समितियां हमेशा एक्टिव रहती है. संसद के नहीं चलने पर भी ये समितियां काम करती हैं. 


संसद है तो समितियों की जरूरत क्यों?


संसद को समितियों की जरूरत इसलिए होती है क्योंकि उनके पास बहुत सारा काम होता है. इतने कामों के बीच अगर समिति नहीं बनी तो इसे निपटाने के लिए संसद के पास समय कम पड़ सकता है. आसान भाषा में समझे तो संसद के पास जब कोई मामला आता है तो वो उस पर गहराई से विचार नहीं कर पाती. ऐसे में बहुत सारे मामलों को गहराई से देखने के लिए समितियां बनाई जाती है और उससे संबंधित मामले वही निपटाती हैं, जिन्हें संसदीय समितियां कहा जाता है.


इस समिति का गठन संसद ही करती है. ये समितियां संसद के अध्यक्ष के निर्देश पर करती हैं और अपने काम की रिपोर्ट संसद या अध्यक्ष को देती है. इन समितियों को दो प्रकार में बांटा गया है. पहला स्थायी समितियां और दूसरा तदर्थ समितियां. स्थायी समिति का कार्यकाल हर एक साल में बदल जाता है. इन समितियों में वित्तीय समितियां, विभाग संबंधित समितियां और कुछ दूसरी तरह की समितियां शामिल हैं. वहीं, तदर्थ समितियों कुछ खास मामले हैंडल करती है. जब वो मामला निपट जाता है तो इन समितियों का अस्तित्व भी खत्म हो जाता है. 


स्थायी समितियां कितने तरह की होती है


स्थायी समितियां तीन तरह की होती हैं. जिसमें वित्तीय, विभागों से संबंधित समिति और दूसरी तरह की स्थायी समितियां शामिल है. वित्तीय समितियों में तीन समिति होती है. पहली समिति का नाम प्राक्कलन समिति है. वहीं दूसरी और तीसरी लोक लेखा समिति और सरकार उपक्रमों से संबंधित समिति है. इन समितियों में 22 से 30 सदस्य होते हैं. प्राक्कलन समिति में सिर्फ लोकसभा सदस्य होते हैं. वहीं लोक लेखा और सरकारी उपक्रमों से संबंधित समितियों में लोकसभा के 15 और राज्यसभा के 7 सदस्य होते हैं.


विभागों से संबंधित 24 समितियां है जिसमें केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय और विभाग आते हैं. इन समितियों में 31 सदस्य होते हैं जिसमें 10 राज्यसभा के सदस्य और 21 लोकसभा के सदस्य होते हैं. इन विभागों में गृह, उद्योग, कृषि, रक्षा,  विदेश मामलों, रेल, शहरी विकास, ग्रामीण विकास जैसे विभागों की समितियां होती हैं.


इनका काम क्या होता है?


स्थायी समितियों का काम संसद के काम को कम करने का होता है. आसान भाषा में यह स्थायी समिति सरकार के काम में हाथ बंटाती है. इसके अलावा ये समितियां सरकार के कामकाज पर भी निगरानी भी करती हैं. उदाहरण के तौर पर वित्तीय समिति का काम लेते हैं. ये समिति सरकार के खर्च पर निगरानी रखती है. उनका काम ये देखना होता है कि सरकार ने समय रहते खर्च किया या नहीं. या फिर खर्च करने में कोई अनियमितता या लापरवाही तो नहीं बरती गई? 




क्या होती हैं इनकी शक्तियां 


संसदीय समितियों के पास ताकत है कि वो किसी भी मामले से जुड़े दस्तावेज मांग सकती है, या किसी को भी बुला सकती है. इसके अलावा ये समितियां किसी को भी विशेषाधिकार हनन की रिपोर्ट दे सकती है और कार्रवाई कर सकती है. इन समिति के अंदर संसद के सदस्यों से जुड़े विशेषाधिकार या सुविधाओं के दुरुपयोग के मामले भी सामने आते हैं. जिसके बाद ये समितियां मामलों की जांच करती है और कार्रवाई की सिफारिश करती है. 


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