2019 के लिए विपक्षी कसरत शुरू, बिहार में बहार लेकिन यूपी अटकाएगा पीएम मोदी की राह में रोड़े
कर्नाटक चुनाव के नतीजों के बाद जिस तेजी से कांग्रेस ने जेडीएस के कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री का ऑफर दिया. उसने एक बात साफ कर दी है कि वो बीजेपी को हराने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.
नई दिल्ली: कर्नाटक में 55 घंटे से भी ज्यादा चले राजनीतिक नाटक के बाद आखिरकार बीएस येदुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. अब कांग्रेस के समर्थन से जेडीएस की सरकार बनेगी और कुमारस्वामी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे. बीजेपी की सरकार गिरने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए राहुल गांधी ने कहा कि 2019 में विपक्ष के साथ मिलकर मोदी को हराएंगे.
कर्नाटक की हार से प्रधानमंत्री मोदी के विजय रथ में थोड़ी सी ब्रेक तो जरूर लगी है लेकिन क्या विपक्ष वाकई 2019 में मोदी को चुनौती देने की ताकत रखता है? ये सवाल इसलिए क्योंकि 2019 में होने वाले सत्ता के महासंग्राम से पहले अपनों और परायों का भेद खत्म हो चुका है. कल तक दुश्मनी का दम भरने वाले राजनीतिक दल अब सहयोगी बन कर राजनीति के नए समीकरण बना रहे हैं.
कर्नाटक के बाद नरेंद्र मोदी के लिए 2019 के मायने कर्नाटक में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि कांग्रेस PPP (पंजाब, पुडुचेरी और परिवार) पार्टी बनकर रह जाएगी. लेकिन कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद हाथ से सत्ता जाने के धक्के ने बीजेपी के थिंक टैंक को सोचने पर मजबूर तो जरूर किया होगा.
एक साल बाद आम चुनाव की अग्नि परीक्षा में जाने वाली बीजेपी के लिए कर्नाटक का नतीजा एक बड़ा संकेत है. कर्नाटक से पहले पीएम मोदी और अमित शाह ऐसे विजय रथ पर सवार थे जिसे रोकना नामुमकिन दिख रहा था. लेकिन कर्नाटक ने अपने चुनाव प्रबंधन के लिए मशहूर बीजेपी की नींद में खलल जरूर डाला होगा.
बीजेपी को अब इस बात का आभास हो जाना चाहिए कि छोटी-छोटी दिक्कतें (क्षेत्रीय पार्टियों का गठबंधन) उसे आगे चलकर बड़ी परेशानी में डाल सकती हैं. विपक्ष ने 2019 के मद्देनजर कसरत भी शुरू कर दी है और इसमें एनडीए के कुछ नाराज सहयोगी भी मदद के लिए आगे आ सकते हैं.
उत्तर प्रदेश में अब राह आसान नहीं देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की बात करें तो बीजेपी को यहां 2014 के मुकाबले अब कड़ी चुनौती मिल सकती है. बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव में 282 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश से ही बीजेपी के 71 सांसद चुने गए थे. बीजेपी का बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुक़बला हुआ था और मोदी मैजिक के आगे जहां साइकिल पंचर हो गई वहीं हाथी छूमंतर हो गया था लेकिन 2019 में यहां मोदी की राह आसान नहीं है.
बंगाल से मोदी को उम्मीद लेकिन ममता अब भी मजबूत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस बात का खूब अहसास है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में असल चुनौती बंगाल से मिलने वाली है. बंगाल में राजनीति तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के बीच ही घूमती रही है लेकिन बीजेपी यहां एक ताकत के तौर पर उभरने की कोशिश में है.
2004 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में जहां बीजेपी का खाता भी नहीं खुल सका था वही 2009 में राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से एक और 2014 के चुनाव में बीजेपी 2 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही थी. हांलाकि यहां हुए पंचायत और नगर निकाय के ताजा चुनाव नतीजों ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से बीजेपी ही नहीं दूसरी पार्टियों को भी काफी पीछे छोड़ दिया है.
नीतीश के साथ से बिहार में बहार की उम्मीद 40 सीटों वाले बिहार में बीजेपी की कहानी थोड़ी अलग है. 2004 में यहां बीजेपी ने 5 लोकसभा सीटें जीती थी. 2009 के चुनाव में एनडीए गठबंधन को 31 सीटें मिली थी जिसमें से 12 बीजेपी ने जीती थी. जबकि 2014 के चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे दिग्गजों के बीच से मोदी 22 सीटें जीतने में कामयाब रहे थे लेकिन नीतीश के एनडीए के पाले में आने के बाद 2019 में बीजेपी को बिहार में बड़ी जीत की उम्मीद है.
बड़ा सवाल क्या 2019 में गुजरात में क्लीन स्वीप होगा? पीएम मोदी के गृहराज्य गुजरात में बीजेपी बेहद मजबूत स्थिति में रही है लेकिन दिसंबर में हुए गुजरात चुनाव में बीजेपी के कमजोर प्रदर्शन के बाद सवाल उठ रहे हैं. क्या 26 सीटों वाले गुजरात में बीजेपी 2014 की तरह ही 2019 में भी क्लीन स्वीप कर सकेगी? याद दिला दें कि 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने गुजरात में बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी और बीजेपी सिर्फ आधी सीटें ही जीत सकी थी. राहुल गांधी ने भी गुजरात चुनाव में अपने अप्रभावी होने के गहरे दाग को हल्का किया था.
2019 में बीजेपी को किन-किन राज्यों से उम्मीद उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं, वहीं मध्य प्रदेश में 29, छत्तीसगढ में 11, राजस्थान में 25, बिहार में 40 और झारखंड में 14 लोकसभा की सीटें हैं. महाराष्ट्र में 48 सीटें हैं जहां शिवसेना के साथ बीजेपी का गठबंधन है. इसके अलावा गुजरात (26), कर्नाटक (28), पंजाब(13), दिल्ली (7) और हिमाचल प्रदेश(4) से भी बीजेपी को ज्यादा सीटें जीतने का भरोसा है.
बीजेपी की इन 321 सीटों पर पैनी नजर रही है. हिंदी बेल्ट के राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में बीजेपी की सरकारें हैं. खास बात ये है कि इन तीनों राज्यों में बीजेपी की सीधी टक्कर कांग्रेस से हैं. ऐसे में बीजेपी को इन राज्यों से सबसे ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद है.
2019 के महामुकाबले की सबसे अहम बात है कि 2014 में जहां पीएम मोदी के सामने बिखरा हुआ विपक्ष था. दस साल से सत्ता पर काबिज कांग्रेस भी सुस्त थी. लेकिन इस बार मजबूर विपक्ष आने वाले चुनाव में शायद उतना ज्यादा एकजुट होगा, जितना कि अब तक कभी नहीं हुआ.
कर्नाटक के बाद राहुल गांधी के लिए 2019 चुनाव के मायने पहले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में बीएसपी और एसपी के गठबंधन ने बीजेपी को हाराया और कर्नाटक में चुनाव बाद हुए गठबंधन के आगे बीजेपी को शिकस्त का सामना करना पड़ा. इन दोनों ही चुनाव के नतीजों ने राहुल गांधी के लिए नई उम्मीद जगा दी है. राहुल गांधी विपक्ष के साथ मिलकर मोदी को हराने की बात कह भी रहे हैं. लेकिन राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी मुश्किल सभी क्षेत्रीय दलों को साथ लाने की है.
आज कर्नाटक में जो हुआ उसके बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने राहुल गांधी को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब नहीं दिया, मायावती ने बधाई भी सिर्फ कांग्रेस को ही दी. यूपी विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी के साथ रोड शो करने वाले अखिलेश यादव भी राहुल गांधी पर कुछ खुलकर नहीं बोलते हैं.
वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी भी कई मुद्दों पर कांग्रेस से कन्नी काटती नजर आई. आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू, उड़ीसा में नवीन पटनायक, तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव और तमिलनाडु में एमके स्टालिन इन सभी को साथ लाना राहुल गांधी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा.
सियासी विश्लेषकों का भी मानना है कि 2019 के नतीजे इस बात से तय होंगे कि विपक्ष मोदी की कैसी घेराबंदी करता है. लेकिन फिलहाल राहुल के लिए राहत की बात ये है कि कर्नाटक ने एक बार फिर आड़े वक्त में गांधी परिवार का साथ दिया है.