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कायदा-कानून: भारत में तलाक लेने के क्या हैं नियम, जानें पूरी प्रक्रिया

वैसे तो तलाक को हर समाज में बुरी निगाह से देखा जाता है, लेकिन कई बार ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं कि पति-पत्नी का साथ रहना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में वे तलाक का विकल्प चुनते हैं. आज हम आपको बताएंगे हमारे देश में तलाक लेने के क्या नियम हैं.

नई दिल्ली: हम अक्सर सुनते हैं कि पति-पत्नी में मामूली सी बात को लेकर कहासुनी हो गई या फिर झगड़ा हो गया. कई बार तो नौबत तलाक तक आ जाती है. भारत में तलाक मानो जैसे आम सी बात हो गई है. वैसे तो शादी के पवित्र बंधन को तोड़ने वाला ये काम नहीं करना चाहिए लेकिन अगर पति में किसी बात को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है और घर में आए दिन झगड़े होते हैं तो वे इस विकल्प को तलाशते हैं.

भारत में तलाक दो तरीकों से लिया जाता है. पहला आपसी सहमति से और दूसरे तरीके में पति या पत्नी से में से सिर्फ एक ही तलाक लेना चाहता है, दूसरा नहीं. आपसी सहमति से तलाक लेना देश में बहुत आसान है. तलाक की बात आते ही गुजारा भत्ता और चाइल्ड कस्टडी की बात आती है. गुजारे भत्ते की लिमिट फिक्स नहीं होती है. इसको पति- पत्नी बैठकर तय कर सकते हैं. इस मामले में कोर्ट पति की आर्थिक हालत को देखकर गुजारे भत्ते का फैसला करती है. अगर कोर्ट को लगता है कि पति की आर्थिक स्थिती अच्छी है तो पत्नी को ज्यादा भत्ता मिलता है.

वहीं चाइल्ड कस्टडी तलाक में एक बहुत बड़ा पेंच साबित होता है. तलाक के बाद अगर पति पत्नी की सहमति है तो दोनों ही बच्चों की देखभाल कर सकते हैं. भारत में ये कानून है कि अगर बच्चे की उम्र सात साल से कम है तो बच्चा मां को सौंपा जाता है वहीं अगर बच्चे की उम्र सात साल से ज्यादा है तो उसे पिता को सौंपा जाता है. हालांकि इसमें ये भी प्रावधान है कि अगर पिता कोर्ट में ये साबित कर दे कि वे मां से ज्यादा अच्छी देखभाल कर सकता है तो कोर्ट सात साल से कम उम्र वाले बच्चों की कस्टडी भी मां को सौंप देती है.

आपसी सहमति से तलाक

अगर पती-पत्नि आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं तो इसके लिए शर्त है कि वे दोनों एक साल से अलग रहे हैं हों. इसके अलावा इन दोनों को कोर्ट में पीआईएल दाखिल करनी होगी कि हम आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं. साथ ही कोर्ट अपने सामने दोनों के बयाद दर्ज करती है और साइन कराती है. इसके बाद कोर्ट दोनों को रिश्ता बचाने को लेकर विचार करने के लिए छह महीने का वक्त देती है. जब छह महीने पूरे हो जाते हैं और दोनों में सहमति नहीं बन पाती तो कोर्ट अपना आखिरी फैसला सुनाती है.

आपसी सहमति के अलावा एक और तरीके से तलाक ली जा सकती है. इसमें अगर पति या फिर पत्नी दोनों में से एक तलाक लेना चाहता है तो उसे ये साबित करना होगा कि वो तलाक क्यों लेना चाहते है. इसके पीछे कई स्थितियां हो सकती हैं, जैसे दोनों में से कोई एक पार्टनर शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना, धोखा देना, पार्टनर द्वारा छोड़ देना, पार्टनर की दिमागी हालत ठीक ना होना और नपुंसकता जैसी गंभीर मामले में ही तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है. इसके बाद पार्टनर को बताया हुआ कारण कोर्ट में साबित भी करना होगा.

केस लड़कर कैसे लें तलाक

इस मामले में पार्टनर को ये तय करना होगा कि वह किस आधार पर तलाक लेना चाहता है. जिस आधार पर तलाक लेनी है उसके पुख्ता सबूत होने बहुत जरूरी हैं. इसके बाद कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सारे सबूत पेश करने होंगे. अर्जी के बाद कोर्ट दूसरे पार्टनर को नोटिस भेजेगी. नोटिस के बाद अगर पार्टनर कोर्ट नहीं पहुंचता है तो तलाक लेने वाले पार्टनर को कागजों के हिसाब से उसके हक में फैसला सुना दिया जाता है.

वहीं अगर नोटिस के बाद पार्टनर कोर्ट पहुंचता है तो दोनों की सुनवाई होती है और ये कोशिश की जाती है कि मामला बातचीत से सुलझ जाए. अगर बातचीत से मामला नहीं सुलझता है तो केस करने वाला पार्टनर दूसरे पार्टनर के खिलाफ कोर्ट में याचिका दाखिल करता है. लिखित बयान 30 से 90 दिन के अंदर होना चाहिए. बयान के बाद कोर्ट आगे के प्रक्रिया पर विचार करती है. इसके बाद कोर्ट दोनों पक्षों की सुनवाई के साथ-साथ उनके द्वारा पेश किए गए सबूतों और दस्तावेजों को दोबारा से देखने के बाद अपना फैसला सुनाती है और ये काफी लंबी प्रक्रिया है.

तलाक के लिए आधार का होना जरूरी

हमारे देश में पति पत्नी के रिश्तों में तकरार की बिनाह पर तलाक के नियम नहीं है. तलाक के लिए दोनों को आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन करना होता है. या फिर हिंदू मैरिज एक्ट में जो आधार दिए गए उनमें से किसी एक को साबित करके तलाक के लिए अप्लाई कर सकते हैं. फिलहाल संसद में एक बिल लंबित है अगर ये संसद में पास हो जाता है तो पति- पत्नी को तलाक लेने के लिए किसी आधार की जरूरत नहीं पड़ेगी.

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