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छावला गैंगरेप केस: SC के फैसले पर क्या बोलीं निर्भया की वकील, आखिर कहां हुई पुलिस से चूक?

सीमा कुशवाहा ने कहा कि इस केस की जांच में कमी थी तो हमें न्यायिक व्यवस्था में सुधार की जरूरत है. जिला अदलातों और जजों को ट्रेनिंग दी जाए. उन लोगों पर कार्रवाई की जाए जिन्होंने सही से जांच नहीं की.

देश की राजधानी दिल्ली के इतिहास में साल 2012 की बेहद ही दर्दनाक और भयानक तस्वीर दर्ज है जिसे निर्भया गैंगरेप के नाम से जाना जाता है. निर्भया गैंगरेप मामले में एक लंबी लड़ाई के बाद सभी दोषियों को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया.

लेकिन निर्भया गैंगरेप की घटना के 9 महीने पहले भी दिल्ली के छावला में एक रैप हुआ था. 19 साल की लड़की के साथ उसके ही पड़ोसियों ने उसे अगवा कर उसके साथ गैंगरेप और फिर उसकी हत्या कर दी. मृतक लड़की का शव खेत में पुलिस को  मिला था.

इस घटना के बाद मृतक लड़की पिता ने इस मामले में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई जिसके बाद पुलिस को छानबीन करने पर लड़की का शव बरामद हुआ जिसके बाद आरोपियों की तलाश की गई. गिरफ्तारी के बाद निचली अदालत ने आरोपियों को दोषी पाया और फिर फांसी की सजा सुना दी.

जिसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो वहां भी निचली की अदालत के फैसले को कायम रखते हुए दोषियों की सजा-ए-मौत की सजा बरकरार रखी गई.जिसके बाद मामला साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. यहां  8 सालों तक सुनवाई चली.

सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने इसी साल 6 फरवरी को फैसला अपने पास सुरक्षित रख लिया. फिर बीते 7 नवंबर को तीनों आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने  ये कहते हुए बरी कर दिया कि उसके सामने जो सबूत रखे गए हैं वो जुर्म साबित करने में नाकाम हैं. और केवल शक और नैतिकता के आधार पर अदालत किसी को दोषी करार नहीं दे सकती. 

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी स्वीकार किया कि ये बहुत ही घृणित अपराध है. लेकिन सबूतों के अभाव में कोर्ट के पास आरोपियों को रिहा करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं हैं.  सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय से हर कोई हैरान है.

निर्भया केस की वकील सीमा कुशवाह ने क्या कहा?
वहीं इस मामले को लेकर निर्भया केस में आरोपियों को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने वाली वकील सीमा कुशवाह ने एबीपी न्यूज से बात करते हुए कहा, 'छावला मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है वो निराशाजनक है. इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया जा सकता. यहां ये समझने की जरूरत है कि आखिर कहां पर क्या कमी रह गई? किन कारणों से कोर्ट ने तीनों आरोपियों को मामलें में बरी कर दिया? जबकि सभी सबूत उनके खिलाफ थे. डीएनए सैंपल मैच हो गया था, सभी गवाहों के बयान लिए गए थे. आरोपियों की कॉल डिटेल रिपोर्ट भी थी. लेकिन इन सब सबूतों के बाद भी आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस और निचली अदालतों से इस मामले में सही जांच नहीं की. ऐसे में ये फैसला पूरी कानून व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े करने वाला है. जिस पर सोचने की जरूरत है'. 

वकील सीमा कुशवाह ने कहा कि यदि इस केस में कोर्ट को कोई लूपहोल और किसी की भी जांच में कमी नजर आ रही थी, तो इसमें दोबारा जांच के आदेश भी दिए जा सकते थे. पीड़ित परिवार के लिए ये बहुत दुख की बात है कि जिन लोगों ने उनकी बेटी के साथ बर्बता की, उसका गैंगरेप किया गया, उनकी हत्या कर दी. वो लोग आज जेल से बाहर हैं. ऐसे में पीड़ित परिवार की सुरक्षा का भी मुद्दा खड़ा होता है.

सीमा कुशवाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि इस मामले में पुलिस और निचली अदालत ने सही से सुनवाई नहीं की. जबकि निचली अदालत ने तीनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई. काफी समय तक ट्रायल हुआ. फिर हाईकोर्ट में मामला पहुंचा तो वहां भी लंबी सुनवाई के बाद तीनों को फांसी की सजा दी गई. यदि जांच में कोई कमी थी तो निचली अदालत और हाईकोर्ट इस मामले में सजा-ए-मौत नहीं देती. क्योंकि ये मौत की सजा किसी भी केस में यूं ही नहीं दी जाती.

निर्भया केस की वकील रहीं सीमा कुशवाहा ने कहा कि ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक केस की जांच में कमी थी तो उसे उस दौरान भी जांच ठीक से कराई जा सकती थी. उन्होंने कहा हमें अपनी पूरी न्यायिक व्यवस्था में सुधार की जरूरत है. उन लोगों पर भी कार्रवाई की जाए जिन्होनें सही से जांच नहीं की ताकि गलती दोबारा ना हो.

वहीं एबीपी से बातचीत में निर्भया केस में दोषियों के वकील एपी सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही करार दिया है. एपी सिंह ने का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने छावला मामले में तीनों आरोपियों को बरी कर दिया है इसका मतलब ये तीनों आरोपी इस मामले में आरोपी नहीं थे, उन्हें झूठा फंसाया गया था. तभी कोर्ट ने तीनों आरोपियों को बाइज्ज बरी करने में कोई संकोच नहीं किया.

लेकिन एपी सिंह से सीमा कुशवाहा एकदम अलग राय रखती हैं और कहा कि एपी सिंह निर्भया मामले में भी ऐसी ही बात कर रहे थे.  वहीं एपी सिंह का कहना है कि निर्भया केस का मीडिया ट्रायल किया जा रहा था जिसकी वजह से केस प्रभावित हुआ और दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गयी. लेकिन यदि मीडिया ट्रायल नहीं किया जाता तो निर्भया केस में भी आरोपियों को फांसी की सजा नहीं होती. वकील एपी सिंह ने कहा कि छावला गैंगरेप मामले में मीडिया ट्रायल नहीं किया गया इस कारण से आरोपी बरी हो गए.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने अभियुक्तों से जो डीएनए सैंपल लिए वो बिना किसी सुरक्षा के 11 दिनों तक पुलिस के मालखानें में ही पड़े रहे और इस मामले में 49 गवाहों में से 10 का पुलिस ने क्रॉस एग्जैमिनेशन भी नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक इस मामले में आरोपियों को निष्पक्ष मुकदमे का लाभ नहीं मिला. जिसका उन्हें अधिकार था.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले को लेकर भी सवाल खड़े किए. कोर्ट ने कहा कि दोनों ही अदालतों ने इस मामले में सुनवाई के दौरान इस बात की जांच नहीं की कि इस मामले में डीएनए रिपोर्ट का आधार क्या है. इसकी जांच के लिए सही तकनीक का इस्तेमाल हुआ है या नहीं ?

अब क्या है पीड़ित परिवार के पास विकल्प?
निर्भया केस में पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाह ने कहा कि पीड़ित परिवार के पास अभी भी कई विकल्प हैं उनके पास सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने का विकल्प बचता है. इसके अलावा वो क्यूरेटिव याचिका भी दे सकते हैं. साथ ही सर्वोच्च न्यायालय से आर्थिक मुआवजे की मांग भी कर सकते हैं. सु्प्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद कोर्ट भी इस मामले को लेकर डिस्ट्रिक कोर्ट को दोबारा सुनवाई के लिए  कह सकता है. केस की दोबारा जांच हो सकती है.

दिल्ली पुलिस का क्या कहना है?
वहीं इस पूरे मामले को लेकर अपनी जांच और कार्रवाई को लेकर लगे आरोपो पर दिल्ली पुलिस कुछ खुल कर बात करने को राजी नहीं है. एबीपी न्यूज ने दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से बात करने की कोशिश की तो अधिकारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आर्डर पर किसी तरीके की टिप्पणी नहीं की जा सकती. कोर्ट के निर्णय को लेकर यदि कोई आर्डर आता है तो रिव्यू फाइल करेंगे और मामले में जाचं की जाएगी. क्योंकि केस को 11 साल हो चुके हैं तो पुरानी जांच रिपोर्ट खंगाली जाएगी. जिसके बाद ही पुलिस इस मामले में जांच अधिकारियों से पूछताछ करेगी.

पीड़िता के परिजन हैं निराश
'बेटी तो चली गई अब वो वापस नहीं आ सकती, लेकिन आज तक बस हम इस बात का इंतजार कर रहे थे कि आखिर एक दिन हमें न्याय मिलेगा. उन दरिंदों को फांसी की सजा होगी जिन्होने मेरी बेटी के साथ हैवानियत की, इसी आस में हम जी रहे थे. लेकिन आज वो आस भी टूट गई है...'. ये कहना है दिल्ली के छावला गैंगरेप पीडि़ता की मां का जो बीते 11 सालों से अपनी बेटी की आत्मा को शांति मिलने का इंतजार कर रही थीं.

पीड़िता के पिता ने बताया इस मामले में निचली अदालत और हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए तीनों आरोपियों को साल 2014 में ही फांसी की सजा सुना दी थी. लेकिन हाईकोर्ट के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया था. जहां पर हमले 8 साल तक फैसला आने का इंतजार किया. 8 साल तक सुप्रीम कोर्ट में फैसला लटका रहा, लेकिन हमें उम्मीद थी कि एक दिन सभी आरोपियों को फांसी की सजा जरूर होगी. लेकिन  जब तीनों आरोपियों को बरी कर दिया गया. तो मानों कलेजे पर खंजर चल गया है. ऐसा लग रहा है जैसे आज फिर से अपनी बेटी को खो दिया.

क्या थी पूरी घटना
साल 2012 में 9 फरवरी की रात पश्चिमी दिल्ली के द्वारका, फेस-2, कुतुब विहार की रहने वाली 19 साल की एक लड़की जब घर लौट रही थी, तब पड़ोस में रहने वाले 3 लड़कों ने उसे कीडनैप कर लिया. तीनों आरोपी पीड़िता को एक लाल रंग की इंडिका गाड़ी में अगवा कर हरियाणा ले गए थे. जहां उसके साथ 3 दिनों तक बलात्कार किया और फिर बेहद की दर्दनाक हालत में सरसों के एक खेत में फेंककर चले गए. पीडि़ता का शव जब पुलिस को मिला था तो उसके चेहरे पर तेजाब डाला हुआ था.उसके शरीर पर गहरे घांव के निशान थे.  गर्म लोहे और सिगरेट से शरीर पर निशान बने हुए थे. यहां तक की पीडि़ता के प्राइवेट पार्ट में शराब की बोतल मिली थी.

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