एक नौकरी से भारतीयों को क्या चाहिए? किन चीजों को देख सेलेक्ट करते हैं जॉब, जानें जवाब
अलग-अलग लोगों के लिए नौकरी सेलेक्शन के अलग-अलग पैमाने होते हैं. अब एक ताजा सर्वे में नौकरी के सेलेक्शन को लेकर कुछ नई बातें सामने आई हैं. जिसमें सैलेरी, वर्किंग कल्चर, ऑफिस का माहौल वगैरह शामिल है.
संपत्ति सलाहकार सीबीआरई इंडिया ने हाल ही में ‘भारत की आवाज: भविष्य में लोग कैसे रहेंगे, किस तरह काम और खरीदारी करेंगे’ शीर्षक से एक सर्वे रिपोर्ट जारी की है. इस सर्वे के जरिए यह जानने की कोशिश की गई है कि आखिर अलग-अलग जनरेशन के लोगों के लिए अपनी नौकरी का चयन करते वक्त सबसे अहम फैक्टर क्या होता है.
इस सर्वे में 20 हजार लोगों को शामिल किया गया था जिसमें से 1,500 लोग भारतीय थे. सर्वे में शामिल भारतीय जनरेशन जेड (18-25 वर्ष), लेट मिलेनियल (26-33 वर्ष), अर्ली मिलेनियल (34-41 वर्ष), जनरेशन एक्स (42-57 वर्ष) और बेबी बूमर्स (58 वर्ष से अधिक) आयु वर्ग से थे. सर्वे में पाया गया कि भारतीय प्रतिभागियों में से करीब 70 प्रतिशत ने कहा कि वे कम से कम तीन दिन ऑफिस आकर काम करना चाहते हैं.
नियमित रूप से ऑफिस आने को प्रेरित
इसी रिपोर्ट के अनुसार अलग-अलग उम्र के 60 प्रतिशत से ज्यादा कर्मचारियों जो ऑफिस और हाइब्रिड दोनों तरह से काम कर रहे हैं, ने कहा कि नौकरी सेलेक्ट करते वक्त उनके लिए सबसे जरूरी सैलरी है.
इसके अलावा एक दूसरे से बातचीत और कंपनी के प्रबंधन में भरोसा भी नौकरी सेलेक्ट करने के जरूरी फैक्टर के रूप में सामने आया है. रिपोर्ट के मुताबिक, जहां आप काम कर रहे हैं वहां सुरक्षा के बेहतर उपाय और अन्य सुविधाओं का होने को लगभग 80 प्रतिशत प्रतिभागियों नौकरी चयन करने का अहम फैक्टर बताया है. आसान भाषा में समझे तो सैलरी के अलावा ऑफिस का माहौल भी लोगों के लिए किसी भी नौकरी के चयन का एक बड़ा कारण बनता है.
कभी ऑफिस तो कभी घर से काम करना सबकी पसंद
प्रतिभागियों से ऑफिस में नियमित आने पर जब विचार करने को कहा गया तो सर्वे बताता है कि ज्यादातर लोग तो कार्यस्थल की गुणवत्ता और काम करने के निजी स्थान को तवज्जो देते हैं. कोरोना महामारी के बाद लोगों में हेल्थ को लेकर भी जागरूकता आई है. लोग अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता में रखते हुए घर से काम करना पसंद कर रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार हाइब्रिड तरीके से काम करना भारत में व्यापक रूप से अपनाया गया है. 78 फीसदी लोग कामकाज के इस तरीके को प्राथमिकता देते हैं.
क्या हाइब्रिड वर्क मॉडल भविष्य में काम करने का तरीका होगा?
कोरोना महामारी के बाद लगे पैंडेमिक में कई कंपनियों ने घर से काम करने को पूरी तरह से लागू कर दिया था. धीरे धीरे कोरोना के मामले कम होने के बाद वर्क फ्रॉम होम हटाया जाने लगा और इसकी जगह हाइब्रिड वर्क मॉडल ने ले ली. पिछले कुछ महीनों में पाया गया कि अब कई कंपनी और एंप्लॉई दोनों हाइब्रिड वर्क मॉडल को तरजीह दे रहे हैं.
एक हाइब्रिड वर्कप्लेस मॉडल कर्मचारियों को सहायता प्रदान करने के लिए इन-ऑफिस और रिमोट वर्क को मिलाता है. इस वर्क मॉडल में कर्मचारी कभी कभी घर से काम करते हैं तो कभी ऑफिस आकर.
इन कारणों से ऑफिस जाते हैं लोग
इस सर्वे में के अनुसार लोगों का कहना है कि ऑफिस जाने से काम करने की दक्षता बढ़ती है. इसके अलावा कार्यस्थल पर दो कर्मचारी आपस में बातें कर सकते हैं और सहकर्मियों के साथ बेहतर संपर्क स्थापित होता है. ऑफिस जाकर काम करने की यही मुख्य कारण हैं.
अब समझते हैं कि आखिर सर्वे में किस किस जनरेशन के लोगों को शामिल किया गया है
जनरेशन जेड (जेन जी): एक अमेरिकी संस्थान के अनुसार साल 1995 से लेकर 2012 के बीच पैदा हुए बच्चों को 'Generation Z' कहा जाता है. उन्हें जेन जी कहे जाने का कारण है कि वे एडवांस स्मार्टफोन और इंटरनेट के दौर में पैदा हुए है.
देखा जाए तो साल 1995 के बाद ही तकनीक तेजी से बढ़ता चला गया. 1995 से 2012 के बीच पैदा हुए बच्चे स्मार्टफोन और हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्शन के बीच पैदा हुए. इतना ही नहीं जेन जी पिछले जनरेशन की तुलना में ज्यादा घुलने- मिलने वाले होते है और उनका दुनिया को देखने का नजरिया बिल्कुल अलग होता है.
मिलेनियल: ‘मिलेनियल्स’ में साल 1981 से लेकर साल 1996 के बीच जन्म लेने वाले लोगों को शामिल हैं. ये जनरेशन जेन जी से एक जेनरेशन पहले की है.
बेबी बूमर्स: साल 1946 और 1964 के बीच पैदा हुए लोगों बेबी बूमर कैटेगरी में रखा गया है. यह पीढ़ी दुनिया की आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से को कवर करती है, खासकर उन देशों में जो विकसित हुए हैं. बेबी बूमर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सुर्खियों में आए. उस वक्त पूरी दुनिया में जन्म दर में तेजी आई थी. इतने ज्यादा बच्चे पैदा हुए कि इस विस्फोट को बेबी बूम के रूप में जाना जाता था.
रहने की जगह घर खरीदना चाहते हैं युवा
इस सर्व के अनुसार लगभग 50 फीसदी युवा आने वाले दो सालों में अपना घर खरीदकर शिफ्ट होना चाहते हैं. सीबीआरई के इस सर्वे में 18-41 साल के 45 फीसदी युवाओं का कहना है कि उनकी पहली पसंद शहर के किसी नए घर में शिफ्ट होना है. वहीं 26-41 साल के 70 प्रतिशत युवाओं का कहना है कि वह किराये के मकान में रह रहे हैं लेकिन उन्हें खुद का घर खरीदना है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि पिछले सर्वे में लोगों का रुझान इसके बिल्कुल उलट आया था.
बेहतर जिंदगी चाहते हैं भारतीय
52 प्रतिशत भारतीयों ने सर्वे में कहा कि वे बेहतर जिंदगी चाहते हैं. उन्हें क्वालिटी की प्रॉपर्टी और माहौल चाहिए. जबकि 72 प्रतिशत का कहना है कि अगले दो साल वो कहीं और शिफ्ट हो जाएंगे. वहीं 69 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि वे हफ्ते में तीन दिन ऑफिस से काम करना चाहते हैं.
ऑफलाइन से ज्यादा ऑनलाइन शॉपिंग करना पसंद कर रहे हैं लोग
इसी रिपोर्ट के अनुसार अब ज्यादातर लोग मॉल या दुकान में जाकर शॉपिंग करने से ज्यादा आसान ऑनलाइन शॉपिंग को मान रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार 74 प्रतिशत लोग ग्रॉसरी की शॉपिंग ऑनलाइन करते हैं. जबकि 62 प्रतिशत लोगों को घर का सामान ऑनलाइन खरीदना ही पसंद है कपड़े की बात की जाए तो रिपोर्ट कहता है कि 58 प्रतिशत लोग ऑनलाइन शॉपिंग करना पसंद करते हैं तो वहीं 58 प्रतिशत लोगों ने ऑफलाइन को सेलेक्ट किया है.
इसी रिपोर्ट में देखा गया कि मिलेनियल्स की तुलना में जेन जी कैटेगरी के लोगों को ऑनलाइन शॉपिंग करना पसंद है. इसका एक बड़ा कारण उनके पास बचपन से ही स्मार्टफोन होना हो सकता है. जेन जी जेनरेशन भी ज्यादात्तर घर का सामान ऑनलाइन ही खरीदना पसंद करती है लेकिन कपड़े 50 प्रतिशत ऑनलाइन तो 50 प्रतिशत ऑफलाइन ले रही हैं.