राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पिछले दो महीने से किसान शांतिपूर्ण तरीके से नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन 26 जनवरी 2021 को किसानों के इस शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन ने उस वक्त हिंसक रूप ले लिया जब ट्रैक्टर मार्च ने पूर्व में तय किए गए रुट्स का उल्लंघन किया. इस दौरान गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में किसानों और पुलिस के बीच हुए टकराव की तस्वीरों ने हर किसी को हैरान कर दिया . प्रदर्शनकारी किसान पुलिस से भिड़ गए, बैरिकेड तोड़ दिए गए और लाल किला परिसर में प्रवेश करने से पहले पुलिस वाहनों पर हमला भी किया गया. लिहाजा पुलिस को भी लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले दागने पड़े. इस हिंसा की देशभर में निंदा हुई तो वहीं किसान संगठनों में भी अब गहरी दरार पैदा हो गई है. इस बीच दो किसान यूनियन, बीकेयू (भानु) और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन, दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन से पीछे भी हट गए.
गौरतलब है पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान, 25 नवंबर 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा जमाए हुए हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य और केंद्र के तीन कृषि कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने की मांग पर अड़े हुए हैं. इस दौरान केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच 11 दौर की बातचीत भी हो चुकी है जो बेनतीजा रही है. सुप्रीम कोर्ट कृषि कानूनों पर दो साल की रोक लगा चुका है.
आइए एक नजर डालते हैं किसान आंदोलन कब शुरू और अब तक क्या-क्या हुआ?
26 नवंबर 2020- 26 नवबंर को किसान आंदोलन शुरू हुआ था. दरअसल 5 नवंबर को देश भर में किसानों द्वारा “ चक्का जाम” किए जाने के बाद पंजाब और हरियाणा में किसान संगठनों द्वारा “ दिल्ली चलो” का आह्वान किया गया. इसके बाद किसान आंदोलन तेज होता गया. हरियाणा पुलिस द्वारा रोकने की भरसक कोशिश के बावजूद किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा जमा लिया.
28 नवंबर 2020 -गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली की सीमाओं को खाली करने और बरारी में नामित विरोध स्थल पर जाते ही किसानों के साथ बातचीत करने की पेशकश की. हालांकि, किसानों ने जंतर-मंतर पर धरना देने की मांग करते हुए उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.
3 दिसंबर 2020. सरकार ने किसानों के प्रतिनिधियों के साथ पहले दौर की बातचीत की, लेकिन बैठक बेनतीजा ही रही. किसान तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग पर ही अड़े रहे.
5 दिसंबर 2020- किसानों और केंद्र के बीच दूसरे दौर की वार्ता भी अनिर्णायक रही. इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा 9 दिसंबर को फिर से बैठक का प्रस्ताव रखा गया.
8 दिसंबर 2020- किसान संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया. इसका व्यापक असर पंजाब और हरियाणा में देखने को मिला. किसानों के इस भारत बंद को विपक्षी दलों का पूरा सपोर्ट मिला.
9 दिसंबर 2020- किसान नेताओं ने तीन विवादास्पद कानूनों में संशोधन करने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया और कानूनों को निरस्त होने तक अपने आंदोलन को और तेज करने की कसम खाई.
11 दिसंबर 2020- भारतीय किसान यूनियन ने तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
13 दिसंबर 2020- केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने किसान विरोध प्रदर्शन में ‘टुकडे-टुकडे’ गैंग का हाथ होने का आरोप लगाया और कहा कि सरकार किसानों के साथ बातचीत के लिए तैयार है.
16 दिसंबर 2020- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादास्पद कृषि कानूनों पर गतिरोध को समाप्त करने के लिए सरकार और किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों वाला एक पैनल गठित कर सकता है.
21 दिसंबर 2020- किसानों ने सभी विरोध स्थलों पर एक दिन की भूख हड़ताल की. इसके अलावा 25 से 27 दिसंबर तक हरियाणा में राजमार्गों पर टोल वसूली को रोकने का भी ऐलान किया.
30 दिसंबर 2020- सरकार और किसान नेताओं के बीच छठे दौर की बातचीत कुछ हद तक देखने को मिली क्योंकि केंद्र ने किसानों को पराली जलाने से संबंधित अध्यादेश में उनके खिलाफ कार्रवाई न लेने और प्रस्तावित बिजली संशोधन कानून को लागू न करने पर सहमति जताई.
4 जनवरी 2021- सरकार और किसान नेताओं के बीच सातवें दौर की बातचीत भी केंद्र के साथ बेनतीजा रही, क्योंकि कृषि कानूनों को रद्द करने पर सहमति नहीं बन सकी.
7 जनवरी 2021- सुप्रीम कोर्ट नए कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं और 11 जनवरी को विरोध प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ सुनवाई के लिए सहमत हो गया. यह तब हुआ जब अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने अदालत से कहा कि किसानों और केंद्र के बीच बातचीत "काम कर सकती है".
8 जनवरी 2021- किसान यूनियनों और केंद्र के बीच आठवें दौर की बातचीत भी गतिरोध को तोड़ने में नाकाम रही. किसान यूनियनें कानून को पूरी तरह से निरस्त करने पर अड़ी रहीं. वहीं सरकार का कहना था कि देश के अन्य राज्यों में किसानों के एक बड़े वर्ग द्वारा कृषि कानूनों का स्वागत किया गया है और यूनियनों को राष्ट्र के हित में सोचना चाहिए.
12 जनवरी 2021- सर्वोच्च न्यायालय ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगाई और सभी हितधारकों को सुनने के बाद विधानों पर सिफारिशें करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया. कोर्ट ने समिति से दो महीने के भीतर रिपोर्ट देने के लिए भी कहा.
15 जनवरी 2021- नौवें दौर की वार्ता भी अनिर्णायक रही क्योंकि सरकार ने किसानों को लचीलापन दिखाने के लिए कहा और आवश्यक संशोधन की इच्छा व्यक्त की लेकिन बात नहीं बनी.
18 जनवरी 2021- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह गणतंत्र दिवस पर किसानों द्वारा ट्रैक्टर रैली की अनुमति देने का कोई आदेश नहीं दे सकता है. दिल्ली पुलिस को इसे देखने के लिए कहा गया.
19 जनवरी 2021- एनआईए ने किसान विरोध पर "भारत के खिलाफ अभियान और प्रचार प्रसार" के लिए गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से विदेशी धन भेजने के लिए एसएफजे के खिलाफ कई मामले दायर किए.
20 जनवरी 2021- सरकार ने किसानों के साथ बातचीत के दसवें दौर के दौरान 18 महीने के लिए कृषि कानूनों को लागू करने की पेशकश की. हालांकि, प्रारंभिक चर्चा के बाद, संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया.
24 जनवरी 2021- दिल्ली पुलिस ने किसानों को 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली आयोजित करने की अनुमति दी. साथ ही ट्रैक्टर मार्च के लिए तीन मार्गों को तय किया.
26 जनवरी 2021- प्रदर्शनकारी किसानों ने गणतंत्र दिवस के मौके पर राजधानी दिल्ली में टैक्टर परेड का आयोजन किया. लेकिन तय रूट पर पर न जानें को लेकर किसानों और दिल्ली पुलिस में टकराव हो गया. प्रदर्शनकारी किसानों ने पुलिस पर हमला किया, बैरिकेड तोड़ दिए और लालकिला परिसर में प्रवेश कर धार्मिक झंडा भी फहरा दिया. लिहाजा पुलिस को भी भीड़ को तीतर-बितर करने के लिए लाठी चार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े.
27 जनवरी 2021- दिल्ली पुलिस ने कम से कम 25 एफआईआर दर्ज कीं, जिनमें किसान नेता राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया. इस बीच दो किसान यूनियन, बीकेयू (भानु) और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन, दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन से पीछे हट गए.
29 जनवरी 2020- किसान संगठनों के नेताओं ने प्रदर्शनकारियों के बीच एकता की भावना मजबूत करने के लिए सिंघू बॉर्डर से ‘‘सदभावना रैली ’’ निकाली. सदभावना रैली का नेतृत्व कई किसान नेताओं ने किया, जिनमें बलबीर सिंह राजेवाला, दलजीत सिंह दल्लेवाल, दर्शन पाल और गुरनाम सिंह चढूनी शामिल रहे. उन्होंने कहा कि 'धार्मिक आधार पर और राज्यों के आधार पर प्रदर्शनकारी किसानों को बांटने की कोशिश कर रही ताकतों का मुकाबला करने के लिए यह मार्च निकाला गया है. साथ ही, मार्च का उद्देश्य यह प्रदर्शित करना है कि वे तिरंगे (राष्ट्र ध्वज) का सम्मान करते हैं.'
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