देशभर में समान नागरिक संहिता (UCC) एक बार फिर चर्चा में है. इसकी वजह है पहाड़ी राज्य उत्तराखंड. उत्तराखंड में धामी सरकार ने मंगलवार को बहुप्रतीक्षित यूसीसी विधेयक पेश कर दिया. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 'समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024’ विधेयक को विधानसभा के पटल पर रखा. विधेयक पेश किए जाने के दौरान सत्तापक्ष के विधायकों ने मेजें थपथपाकर इसका स्वागत किया और भारत माता की जय, वंदे मातरम और जय श्रीराम के नारे लगाए. वहीं विपक्षी कांग्रेस ने इस पर विस्तृत चर्चा की मांग की है. देशभर के तमाम मुस्लिम संगठनों ने इस विधेयक का विरोध किया है. विधेयक पर चर्चा अभी बाकी है, इसके बाद इसे पारित किया जाएगा. आइए जानते हैं कि आखिर ये समान नागरिक संहिता क्या है और किस धर्म पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
बीजेपी देशभर में समान नागरिक संहिता की पक्षधर रही है. 1967 के आम चुनाव में बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में पहली बार 'समान नागरिक संहिता' का उल्लेख किया था. तब पार्टी ने वादा किया था कि अगर जनसंघ सत्ता में आती है तो देश में UCC लागू किया जाएगा. राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता... 1980 में बीजेपी की स्थापना के बाद से ये तीन वादे पार्टी के घोषणापत्र के प्रमुख बिंदू रहे हैं.
बीजेपी के दो वादे राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 पूरे हो चुके हैं. हालांकि, अभी तक मोदी सरकार द्वारा UCC की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. हालांकि, इसे लेकर बयानबाजी जरूर होती रही है. पिछले साल जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचे थे. तब उन्होंने समान नागरिक संहिता (UCC) को देश के लिए जरूरी बताया.लेकिन अब बीजेपी शासित उत्तराखंड में UCC को लागू करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है. अगर ये विधेयक पास होता है तो उत्तराखंड देश में पहला राज्य होगा, जहां आजादी के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होगा. गोवा में पुर्तगाली शासन के दिनों से ही यूसीसी लागू है.
क्या है UCC, संविधान में भी जिक्र
UCC का मतलब- भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना है, चाहे वह नागरिक किसी धर्म या जाति का हो. अगर ये लागू होता है तो शादी, तलाक, बच्चा गोद लेना और उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में सभी भारतीयों के लिए एक जैसे नियम होंगे.
- समान नागरिक संहिता का भारत के संविधान में भी जिक्र है. यह संविधान के अनुच्छेद 44 का हिस्सा है. संविधान में इसे नीति निदेशक तत्व में शामिल किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है. अनुच्छेद 44 का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है.
- हालांकि, भारत में अलग अलग धर्मों के अपने अपने कानून हैं. जैसे- मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदुओं के लिए हिंदू पर्सनल लॉ.ऐसे में अगर उत्तराखंड में अगर UCC लागू हो जाता है, तो इसका उद्देश्य इन व्यक्तिगत कानूनों को खत्म कर एक सामान्य कानून लाना है.
उत्तराखंड में UCC में क्या प्रावधान?
- उत्तराखंड में पेश किए गए UCC विधेयक में धर्म और समुदाय से परे सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति जैसे विषयों पर एक समान कानून प्रस्तावित है. विधेयक में गोद लेने के अधिकार को सभी के लिए समान बनाने के लिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के तहत मौजूदा कानूनों का समान रूप से पालन करने का प्रावधान है.
बहुविवाह और हलाला बैन
इस विधेयक में बहुविवाह पर रोक का प्रावधान है. विधेयक में कहा गया है कि एक पति या पत्नी के जीवित रहते कोई नागरिक दूसरा विवाह नहीं कर सकता. बिल में प्रावधान है कि असाधारण कष्ट की स्थिति को छोड़कर कोर्ट में तलाक की कोई भी अर्जी तब तक पेश नहीं की जा सकेगी, जब तक शादी की एक साल की अवधि पूरी न हुई हो.
- इस विधेयक में 'हलाला' जैसी प्रथाओं को प्रतिबंधित करने के साथ साथ आपराधिक कृत्य बनाते हुए दंड का प्रावधान है. विधेयक में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए शादी की कानूनी उम्र को सभी धर्मों में एक समान बनाने का प्रावधान है.
लिव इन को लेकर सख्त प्रावधान
लिव-इन में रह रहे जोड़ों के लिए रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है. साथ ही लिव इन रिलेशन में रहने वाले जोड़ों के बच्चों को जैविक बच्चों की तरह उत्तराधिकार दिए जाने का प्रावधान है. इसे लेकर गलत सूचना देने पर भी दंड का प्रावधान किया गया है. लिव-इन में रहने वाली महिला को अगर उसका पुरूष साथी छोड़ देता है तो वह उससे गुजारा-भत्ता पाने का दावा कर सकती है.
किस धर्म में क्या बदलेगा?
हिंदू: उत्तराखंड में अगर UCC लागू होता है तो हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) जैसे मौजूदा कानूनों में संसोधन करना पड़ेगा. इसके अलावा हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) पर भी असर पड़ सकता है. हिंदू पर्सनल लॉ के मुताबिक, एक परिवार के सदस्य HUF बना सकते हैं. आयकर अधिनियम के तहत HUF को एक अलग इकाई माना जाता है. इसके तहत टैक्ट में कुछ छूट मिलती है. हालांकि, अभी यह साफ नहीं है कि उत्तराखंड के विधेयक में इन सबको लेकर क्या प्रावधान है.
मुस्लिम: अभी मुस्लिमों पर मुस्लिम पर्सनल (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 लागू होता है. इसी के तहत शादी, तलाक और भरण पोषण के नियम लागू होते हैं. हालांकि, UCC आने पर बहुविवाह, हलाला जैसी प्रथाओं पर असर पड़ेगा. 2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य में मुस्लिमों की आबादी 13.95% थी.
सिख: 2011 की जनगणना के मुताबिक, उत्तराखंड में सिखों की आबादी 2.34% है. सिखों में शादी के लिए आनंद विवाह अधिनियम 1909 लागू है. हालांकि, इसमें तलाक का प्रावधान नहीं है. ऐसे में सिखों पर तलाक के लिए हिंदू विवाह अधिनियम लागू होता है. लेकिन UCC लागू होने के बाद सभी समुदाय पर एक कानून लागू होने की संभावना है. ऐसे में आनंद विवाह अधिनियम भी खत्म हो सकता है.
ईसाई: उत्तराखंड में ईसाई समुदाय के भी लोग रहते हैं. अभी ईसाई तलाक अधिनियम 1869 की धारा 10A(1) के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन देने से पहले पति-पत्नी को कम से कम दो साल तक अलग रहना अनिवार्य है. इसके अलावा 1925 का उत्तराधिकार अधिनियम ईसाई माताओं को उनके मृत बच्चों की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं देता है.लेकिन UCC के बाद ये प्रावधान खत्म होने की संभावना है.
आदिवासी समुदाय: उत्तराखंड में आदिवासियों पर UCC का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. उत्तराखंड समान नागरिक संहिता विधेयक में आदिवासी आबादी को इसके प्रावधानों से छूट की पेशकश की गई है. उत्तराखंड में आदिवासियों की आबादी 2.9 प्रतिशत है.