नई दिल्ली: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद में नागरिकता संशोधन कानून पास करवा लिया. इसको लेकर अभी भी विरोध खत्म नहीं हुआ है. इस कानून का कई विपक्षी दल पुरजोर विरोध कर रहे हैं. हालांकि कानून में कहा गया है कि इनर लाइन परमिट और छठी अनुसूची प्रावधानों द्वारा संरक्षित उत्तर पूर्व के क्षेत्रों में यह लागू नहीं होंगा. इसमें पूरा अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, अधिकांश नागालैंड, मेघालय और त्रिपुरा और असम के कुछ हिस्से शामिल हैं.अब ऐसे में भारतीय संविधान की छठी अनुसूची क्या है इसको लेकर आपके मन में भी की सवाल उठ रहे होंगे. आइए जानते हैं आखिर क्या है यह छठी अनुसूची और इसमें किस तरह के प्रावधान किए गए हैं.


क्या है छठी अनुसूची


छठी अनुसूची असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के कुछ आदिवासी क्षेत्रों में स्वायत्त विकेंद्रीकृत स्व-शासन प्रदान करती है. इन क्षेत्रों में जो लोग स्थानीय माने जाने वाले समुदाय से नहीं होते उन्हें जमीन खरीदने और व्यवसायों के मालिक होने की पांबदी है.


छठी अनुसूची में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 के अनुसार असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के प्रावधान किए गए हैं.  यह 1949 में संविधान सभा द्वारा यह पारित किया गया था. इसके माध्यम से स्वायत्त जिला परिषदों (एडीसी) का गठन किया गया जिसके माध्यम से आदिवासी आबादी के अधिकारों की रक्षा करने का प्रावधान किया गया है. एडीसी जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले निकाय हैं, जिन्हें संविधान ने राज्य विधानसभा के भीतर स्वायत्तता दी है.


इन राज्यों के राज्यपालों को जनजातीय क्षेत्रों की सीमाओं को पुनर्गठित करने का अधिकार है. सरल शब्दों में, वह किसी भी क्षेत्र को शामिल करने या बाहर करने, सीमाओं को बढ़ाने या घटाने और एक में दो या अधिक स्वायत्त जिलों को एकजुट करने का फैसला कर सकता है. वे एक अलग कानून के बिना स्वायत्त क्षेत्रों के नामों को बदल सकते हैं.


एडीसी के साथ, छठी अनुसूची एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में गठित प्रत्येक क्षेत्र के लिए अलग-अलग क्षेत्रीय परिषदों का प्रावधान करती है. पूर्वोत्तर में 10 क्षेत्र हैं जो स्वायत्त जिलों के रूप में पंजीकृत हैं - तीन असम, मेघालय और मिजोरम में और एक त्रिपुरा में है. इन क्षेत्रों को जिला परिषद (जिले का नाम) और क्षेत्रीय परिषद (क्षेत्र का नाम) के रूप में नामित किया गया है.


किसी भी स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषद में 30 से अधिक सदस्य नहीं हो सकते हैं. जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा नामित किए जाते हैं और बाकी चुनावों के माध्यम से चुने जाते हैं. ये सभी पांच साल के लिए चुने जाते हैं. हालांकि बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद को अपवाद के रूप में मान सकते हैं क्योंकि इसमें अधिकतम 46 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 40 सदस्य चुने जाते हैं. इन 40 सीटों में से 35 अनुसूचित जनजाति और गैर-आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित हैं. पांच अनारक्षित हैं और बाकी छह बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र जिले (BTAD) के राज्यपाल द्वारा नामित होते हैं.


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