नई दिल्लीः संसद का मानसून सत्र जारी है. सरकार को घेरने के लिए जहां विपक्ष हर संभव चक्रव्यूह रचने में जुटा हुआ है वहीं विपक्ष के तरकस में सजे हर तीर को निशाने से भटकाने के लिए सरकार की ओर से कई मंत्रियों की फौज तैयार है. विपक्ष की कोशिश है कि किसी भी तरह सरकार को संसद में घेरा जाए तो वहीं सत्ता पक्ष की कोशिश है कि विपक्ष के हर चाल की काट तैयार कर लिया जाए.


सत्र चलने के दौरान विपक्षी दल सरकार को घेरने और किसी भी मुद्दे पर सत्ता पक्ष की किरकिरी करवाने के लिए संसद में कभी स्थगन प्रस्ताव लेकर आते हैं तो कभी ध्यानाकर्षण प्रस्ताव. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि स्थगन प्रस्ताव और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में क्या अंतर है?


क्या होता है स्थगन प्रस्ताव


स्थगन प्रस्ताव लोकसभा में किसी लोक मामले में यानि सार्वजनिक महत्व के मामले पर सदन का ध्यान आकर्षित करने के लिए पेश किया जाता है. इसमें सरकार के खिलाफ निंदा का तत्व शामिल होता है. इसलिए इसे राज्यसभा में लाने के बजाय लोकसभा में लाया जाता है. यह एक तरीके का टुल है जो कि सदन की सामान्य कार्यवाही को बाधित करता है. इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए 50 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है. यहां ये भी जानन जरूरी है कि सदन में स्थगन प्रस्ताव के तहत चर्चा करने के लिए किसी विषय को स्वीकर करने या अस्वीकार करने का पूरा अधिकार सदन के पीठासीन अधिकारी के पास होता है. अगर वह किसी मामले को अस्वीकृत करता है तो पीठासीन अधिकारी उसका कारण बताने के लिए बाध्य नहीं होता है. 


स्थगन प्रस्ताव का अर्थ?


स्थगन प्रस्ताव का उद्देश्य यह होता है कि हाल ही में घटित लोक महत्त्व की ऐसी घटना के बारे में सदन का ध्यान आकर्षित करवाना जिसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हों.


इस प्रस्ताव को सदन में अनुमति तभी मिलती है जब विषय काफी महत्वपूर्ण होता है. इस प्रस्ताव को मंजूरी देते वक्त यह भी ध्यान रखा जाता है कि सदस्य की ओर से जो भी मामला उठाया जा रहा है वह इतना गंभीर हो कि उसका असर समूचे देश या देश के बड़े भू-भाग पड़ता हो. ऐसे में अगर स्थगन प्रस्ताव को अगर मंजूरी दी जाती है तो सभी मामलों को रोककर इस पर चर्चा होती है.


किस दिन नहीं लाया जा सकता है स्थगन प्रस्ताव


संसदीय परंपरा के मुताबिक राष्ट्रपति के अभिभाषण के दिन स्थगन प्रस्ताव को नहीं लाया जा सकता है. उस दिन मिली जानकारी को अगली बैठक के लिये प्राप्त सूचना माना जाता है.


विशेष घटना पर लाया जा सकता है स्थगन प्रस्ताव


स्थगन प्रस्ताव के तहत किसी ऐसे मसलों पर चर्चा नहीं की जा सकती है जो कि सदन में पहले से चला आ रहा हो. इसका मतलब यह हुआ कि वह मामला हाल के दिनों का हो और किसी विशेष घटना से संबधित हो.


किन विषयों पर लाया जा सकता है स्थगन प्रस्ताव


स्थगन प्रस्ताव उन्हीं विषयों पर लाया जा सकता है जिसका संबंध विशेषाधिकार से जुड़ा नहीं हो. इसके तहत कोर्ट में विचाराधीन किसी मामले पर स्थगन प्रस्ताव के तहत चर्चा नहीं की जा सकती है. साथ ही मामला ऐसा हो हो जिसके लिये प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भारत सरकार जिम्मेदार हो.


राज्य सरकार के अधिकार में आने वाले मामलों पर संसद में स्थगन प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं मिलती है. हालांकि अगर किसी राज्य के संवैधानिक घटनाक्रमों और राज्यों के संवेदनशील वर्गों जैसे (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) आदि से संबंधित मसलों पर इस प्रस्ताव के तहत संसद में विचार किया जा सकता है.


संसद की कार्यवाही को स्थगित करने की शक्ति


स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा शुरू होने के बाद सदन के लिए बिना किसी रुकावट के उस प्रस्ताव के निष्कर्ष तक पहुंचना जरूरी होता है. ऐसे में हम कह सकते हैं कि स्थगन प्रस्ताव में संसद की कार्यवाही को स्थगित करने की शक्ति होती है. 


अब ऐसे में हर किसी के मन में सवाल उठ सकता है कि सदन का ध्यान आकर्षण के लिए स्थगन प्रस्ताव को पेश किया जाता है तो फिर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव क्या होता है और इसे क्यों पेश किया जाता है.


ध्यानाकर्षण प्रस्ताव क्या होता है?


ध्यान आकर्षण प्रस्ताव संसद का कोई भी सदस्य किसी एक मंत्री का ध्यान आकर्षित करने के लिए इस प्रस्ताव को लेकर आता है. उस मंत्री से संबंधित मुद्दे पर बयान की मांग करता है. जबकि स्थगन प्रस्ताव पूरे सदन का ध्यानाकर्षित करने के लिए पेश किया जाता है. 


मंत्री सुविधानुसार उसी समय अपना जवाब दे सकते हैं या फिर बाद में किसी अन्य दिनों के लिए समय की मांग कर सकते हैं. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर न तो किसी तरह की चर्चा होती है और न ही इसमें मतदान होता है. ऐसे में प्रश्न पूछने वाले सदस्य को एक पूरक प्रश्न पूछने की अनुमति दी जाती है.


ध्यानाकर्षण प्रस्ताव को राज्यसभा में भी लाया जा सकता है और लोकसभा में भी पेश किया जा सकता है जबकि स्थगन प्रस्ताव सिर्फ लोकसभा में पेश किया जा सकता है.