क्या है AQI, प्रदूषण नापने का ये फॉर्मूला आपके इलाके में कैसे करता है काम?
वातावरण में बढ़ता AQI सेहत के लिए खतरा हो सकता है. एक्यूआई के बढ़ने से गले, आंख और फेफड़े की तकलीफ बढ़ने का खतरा होता है.
वायु प्रदूषण ने एक बार फिर दिल्ली-एनसीआर का हाल बेहाल कर दिया है. दिवाली के बाद राजधानी की हवा में एक बार फिर जहर घुलता नजर आने लगा है. दिल्ली का एक्यूआई आज (सोमवार), 7 नवंबर की सुबह 326 दर्ज किया गया, जो बीते दिनों की तुलना में कम हैं. पिछले तीन दिनों से यहां का एक्यूआई 339 रिकॉर्ड किया गया था. आज के एक्यूआई को देखते हुए ऐसा कहा जा सकता है की यहां के हवा की गुणवत्ता में थोड़ा सा सुधार हुआ है.
प्रदूषण के इस स्तर से सेहत को भी कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं. आइये जानते हैं आखिर एक्यूआई कैसे काम करता है और आप अपने शहर का एक्यूआई कैसे देख सकते हैं.
क्या होता है एक्यूआई
एक्यूआई को गुणवत्ता सूचकांक कहते हैं, दरअसल ये एक नंबर होता है जिसके जरिये हवा की गुणवत्ता कितनी खराब है या कितनी बेहतर इसका पता लगाया जाता है. साथ ही इसके जरिए भविष्य में किस शहर में प्रदूषण स्तर कितना होने वाले है इसका भी पता लगाया जाता है. भारत में एक्यूआई को मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरनमेंट, फॉरेस्ट और क्लाइमेट चेंज ने लॉन्च किया. इसे 'एक संख्या, एक रंग, एक विवरण' के आधार पर लॉन्च किया गया था. दरअसल देश में अभी बहुत बड़ी आबादी है जो शिक्षित नहीं है, इसलिए उन्हें प्रदूषण की गंभीरता को समझाने के लिए इसमें रंगों को भी शामिल किया गया है.
कब हुई इसकी शुरुआत
एक्यूआई अब दुनिया के हर देश में मापा जाने लगा है. हालांकि हर देश में हवा के गुणवत्ता का मापने का तरीका अलग है. भारत में AQI को मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरमेंट, फॉरेस्ट और क्लाइमेट चेंज ने लांच किया था.
कितनी कैटेगरी में बांटी गई है AQI
एक्यूआई को इसकी रीडिंग के आधार पर छह कैटेगरी में बांटा गया है. एक्यूआई जितना अधिक होगा, हवा उतनी ही खराब होगी. अगर एक्यूआई 0 से 50 के बीच रहे तो इसे अच्छी श्रेणी में रखा जाता है. 51 और 100 के बीच 'संतोषजनक', 101 और 200 के बीच 'मध्यम', 201 और 300 के बीच 'खराब', 301 और 400 के बीच 'बेहद खराब' और 401 से 500 के बीच 'गंभीर' श्रेणी में माना जाता है.
द इंवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (EPA) पांच मुख्य वायु प्रदूषकों के आधार पर एयर क्वालिटी इंडेक्स को मापती है. जिसमें पहला कारक है ग्राउंड लेवल ओजोन. दूसरा है पार्टिकल पॉल्यूशन/ पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5/PM 10). तीसरा है कार्बन मोनो-ऑक्साइड. चौथा कारण है सल्फर-डाइऑक्साइड और पांचवां नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड
इन कारकों मात्रा के आधार पर ही पिछले 24 घंटे की हवा की गुणवत्ता को तय किया जाता है. हवा की गुणवत्ता की जानकारी के लिए शहर के अलग-अलग जगहों पर इसे लगाया जाता है. इसकी रीडिंग के आधार पर लोगों को स्वास्थ्य संबंधी दिशा निर्देश भी जारी किए जाते हैं.
वायु प्रदूषण का असर शरीर पर सीधे क्या होता है?
वातावरण में बढ़ता AQI सेहत के लिए खतरा हो सकता है. एक्यूआई के बढ़ने से गले, आंख और फेफड़े की तकलीफ बढ़ने का खतरा होता है. सांस लेने के दौरान पीएम 2.5 इंसान के फेफड़ों के भीतर पहुंचता है जो इंसानी शरीर के लिए खतरनाक हो सकता है. दरअसल हमारे शरीर में सांस लेने के दौरान इन कणों को रोकने का कोई सिस्टम नहीं है. इन कणों के कारण खांसी और सांस लेने में भी तकलीफ होती है. लगातार संपर्क में रहने पर फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है.
किन चीजों से प्रदूषण होता है?
केंद्र सरकार के अनुसार प्रदूषण के लिए जिम्मेदार पीएम 2.5 के कणों में सर्दियों में धूल से होने वाले प्रदूषण में सबसे बड़ा हिस्सा इंडस्ट्री का है, जो 30 प्रतिशत है. इसके बाद दिल्ली के प्रदूषण का लगभग 28 प्रतिशत हिस्सा ट्रांसपोर्ट के कारण होता है. वहीं 17 प्रतिशत काऱण इंडस्ट्री है और 10 फीसदी प्रदूषण रेसिडेंशियल और 4 फीसदी हिस्सा पराली जलाने के कारण होता है. इसके अलावा अन्य 11 फीसदी हिस्सा अन्य कारकों का है.
वहीं, वातावरण में पीएम 10 कणों फैसले में लगभग 27 प्रतिशत हिस्सा इंडस्ट्री 25 फीसदी हिस्सा धूल का और 24 फीसदी हिस्सा ट्रांसपोर्ट का है. वहीं 9 फीसदी प्रदूषण रेसिडेंशियल के कारण, 4 फीसदी पराली जलाने से और 10 फीसदी अन्य कारणों की वजह से होता है.
पटाखों के चलते कैसे होता है प्रदूषण?
हर साल दिवाली के बाद देश में प्रदूषण बढ़ जाता है. हवा की गुणवत्ता भी खराब हो जाती है. इसका एक पटाखे और आतिशबाजी भी है. दरअसल पटाखे और आतिशबाजी से काफी ज्यादा धुआं पैदा होता हैं. इससे कार्बन ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड प्रचुर मात्रा में पैदा होते हैं, ये हवा को ना केवल जहरीला करते हैं बल्कि प्रदूषित भी.
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