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Article 371: क्या है आर्टिकल 371, जिसे लद्दाख में लागू करेगी मोदी सरकार? आखिर इससे क्या बदलेगा

Ladakh Article 371: आर्टिकल 371 संविधान के भाग 21 का हिस्सा है. इसके तहत देश के कुल 12 राज्यों को विशेष दर्जा प्राप्त है. इसके लागू होने के बाद केंद्र सरकार यहां के लिए अलग से फंड जारी कर सकती है.

Article 371: जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हट चुका है. जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन भी हो चुका है. अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो नये केंद्र शासित प्रदेश भी बन चुके है,. लेकिन अब मोदी सरकार चाहती है कि लद्दाख में संविधान के आर्टिकल 371 को लागू किया जाए. इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद सक्रिय हो गए हैं.

आखिर आर्टिकल 371 के लागू होने से लद्दाख में क्या बदलेगा? क्या जिस तरह से आर्टिकल 370 ने जम्मू-कश्मीर को विशेष प्रावधान दिए थे, अब 371 के जरिए वैसे ही प्रावधान लद्दाख में लागू हो जाएंगे? क्या इस आर्टिकल से लद्दाख को देश के बाकी केंद्र शासित प्रदेशों की तुलना में विशेष व्यवस्था मिलने लगेगी?

जम्मू-कश्मीर से अलग होकर बना नया केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख ऐसा राज्य है, जहां विधानसभा नहीं है. यह जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के जरिए तय हुआ है, लेकिन जब से लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना है, वहां के लोग आंदोलन कर रहे हैं.

इस आंदोलन के जरिए वो चाहते हैं कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए और अगर ये नहीं हो सकता है तो लद्दाख में सिक्स्थ शेड्यूल यानी कि छठी अनुसूचि लागू की जाए. पहले ये समझना जरूरी है कि छठी अनसूचि क्या है?
क्या है संविधान की छठी अनुसूचि?

संविधान की छठी अनुसूचि क्या है?

भारतीय संविधान की छठी अनुसूचि में कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं. संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिले बनाने का प्रावधान है. छठी अनुसूचि ये प्रावधान देती है कि राज्यों के अंदर बने इन जिलों को विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्‍वायत्‍ता मिले.

राज्य के राज्यपाल को ये भी अधिकार मिलता है कि वो जिलों की सीमाओं को बदल सकते हैं, यानी कि किसी जिले की सीमा को घटा-बढ़ा सकते हैं. इतना ही नहीं अगर किसी जिले में अलग-अलग जनजातियां हैं तो कई अलग-अलग जिले भी बनाए जा सकते हैं. इन जिलों का प्रशासन चलाने के लिए हर जिले में एक ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल यानी कि स्वायत्त जिला परिषद बनाने का भी प्रावधान है, जिसका कार्यकाल 5 साल का होता है.

इस ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल में ज्यादा से ज्यादा 30 सदस्य हो सकते हैं. ये काउंसिल जल, जंगल, जमीन, जंगल, खेती-बाड़ी, स्वास्थ्य, स्वच्छता के अलावा, खनन, कानून-व्यवस्था, विरासत, शादी-तलाक और सामाजिक रीति-रिवाज से जुड़े कानून बना सकती है. मकसद ये है कि आदिवासी समुदाय के हितों को संरक्षित किया जा सके.

अब लद्दाख के लोग भी चाहते हैं कि उनके राज्य को भी छठी अनुसूचि में शामिल किया जा सके, ताकि लद्दाख को भी असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम जैसा विशेषाधिकार मिल सके, क्योंकि लद्दाख में सबसे ज्यादा आबादी जनजाति की है. इस मांग के सबसे बड़े समर्थक सोनम वांगचुक हैं, जिनकी जिंदगी पर थ्री इडियट्स जैसी फिल्म भी बन चुकी है. अपनी मांग को लेकर सोनम वांगचुक लंबे समय तक आंदोलन कर चुके हैं.

कांग्रेस भी लद्दाख के लोगों की इस मांग का समर्थन कर रही है. खुद बीजेपी के सांसद भी चाहते हैं कि लद्दाख को छठी अनुसूचि में शामिल किया जाए, लेकिन केंद्र सरकार ने इससे साफ इंकार कर दिया है. लद्दाख को छठे शेड्यूल में शामिल करने को लेकर चल रहे आंदोलन की अगुवाई करने वाले दो प्रमुख संगठन लेह एपेक्स बॉडी यानी ABL और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी KDA के साथ खुद गृह मंत्री अमित शाह ने बैठक की है. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि लद्दाख को छठी अनुसूचि में तो शामिल नहीं कर सकते, लेकिन वहां आर्टिकल 371 लागू किया जा सकता है. 

क्या है आर्टिकल 371?

आर्टिकल 371 संविधान के भाग 21 का हिस्सा है. इस आर्टिकल के जरिए महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, असम, नगालैंड, गोवा, मणिपुर और कर्नाटक कुल 12 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है. आर्टिकल 371 में महाराष्ट्र और गुजरात को लेकर विशेष प्रावधान बनाए गए हैं.

इस आर्टिकल के तहत राष्ट्रपति के आदेश से महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा के साथ ही गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ में अलग से विकास बोर्ड का गठन हो सकता है. इसी तरह से आर्टिकल 371 (A) नगालैंड को लेकर विशेष प्रावधान करता है, जिसमें नगालैंड की विधानसभा की सहमति के बिना संसद में नगालैंड से जुड़ी सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं, जमीन और स्वामित्व से जुड़ा कोई कानून नहीं बन सकता है.

आर्टिकल 371 (B) असम के लिए विशेष प्रावधान करता है. आर्टिकल 371 (C) से मणिपुर को स्पेशल स्टेट का दर्जा मिलता है. आर्टिकल 371 (D) से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को विशेष दर्जा मिला है. आर्टिकल 371 (E) से आंध्र प्रदेश में सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाई जा सकती है. आर्टिकल 371 (F) सिक्किम के लिए है, आर्टिकल 371 (G) मिजोरम के लिए, आर्टिकल 371 (H) अरुणाचल प्रदेश के लिए, आर्टिकल 371 (I) गोवा के लिए और आर्टिकल 371 (J) कर्नाटक के लिए विशेष प्रावधान लेकर आता है.

इन विशेष प्रावधानों से मतलब ये है कि चाहे नगालैंड हो या मणिपुर, या फिर सिक्किम और अरुणाचल, इन राज्यों में रहने वाले लोगों के लिए सामाजिक, धार्मिक और पारंपरिक विषयों को लेकर संसद जो कानून बनाती है और जो पूरे देश में लागू होता है, वो इन राज्यों के निवासियों पर लागू नहीं होते हैं.

संसद के बनाए कानून इन राज्यों में तब तक लागू नहीं होंगे, जब तक इन कानूनों को राज्यों की विधानसभाओं के मंजूरी न मिल जाए. इससे ये समझने के लिए ये काफी है कि आर्टिकल 371 और 371 (A) से (J) तक राज्यों को विशेषाधिकार मुहैया करवाता है.

आर्टिकल 371 से लद्दाख को फायदा क्या होगा?

अगर आर्टिकल 371 लद्दाख में लागू होता है तो इसके लागू होने से लद्दाख को भी विशेषाधिकार मिल जाएगा और तब केंद्र सरकार इस लद्दाख के विकास के लिए अलग से फंड जारी कर सकेगी. लद्दाख अपने लोगों को नौकरियों में संविधान में दिए गए आरक्षण की सीमा से बाहर जाकर भी आरक्षण दे सकेगा. इसके अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों की तरह ही लद्दाख के मूल निवासियों को अपनी भाषा, संस्कृति और अपनी पारंपरिक मान्यताओं को संरक्षित करने का भी अधिकार मिल जाएगा.

लागू करने में मुश्किल क्या है?

लद्दाख में आर्टिकल 371 को लागू करना जितना आसान दिख रहा है, उतना है नहीं. दरअसल इसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा. पहले भी जब संविधान बना था, तो उसमें सिर्फ आर्टिकल 371 ही था, लेकिन जैसे-जैसे राज्यों का पुनर्गठन होता गया, संविधान में संशोधन करके 371 के साथ A, B, C,D,E,F,G,H,I और J जोड़े गए.

ऐसे में अब लद्दाख के लिए भी नया उपबंध जोड़ना होगा. आर्टिकल 371 संविधान के भाग 21 का हिस्सा है और इसके प्रावधान अस्थाई होते हैं. सरकार चाहे तो आर्टिकल 371 को लागू करने के बाद उसे हटा भी सकती है और ये पूरी तरह से संवैधानिक प्रकिया है.

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