नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन बिल को आज मोदी कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. अब संसद के इसी सत्र में सदन में सरकार नागरिकता संशोधन बिल पेश करेगी. बता दें कि इस बिल का कई विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं. इसलिए सदन में इस बिल पर खूब हंगामे के आसार हैं. अब चूकि एक बार फिर यह बिल चर्चा में है तो ऐसे में आइए जानते हैं आखिर क्या है नागरिकता संशोधन बिल और इस बिल पर इतना हंगामा क्यों हो रहा है. इस बिल का विपक्षी दल क्यों विरोध कर रहे हैं. आइए जानते हैं नागरिकता संशोधन बिल से जुड़ी हर एक पहलू के बारे में....
क्या है नागरिकता संशोधन बिल 2016?
भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया. मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे 'नागरिकता संशोधन बिल 2016' नाम दिया गया है. संशोधन के बाद ये बिल देश में छह साल गुजारने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई) के लोगों को बिना उचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का रास्ता तैयार करेगा. लेकिन 'नागरिकता अधिनियम 1955' के मुताबिक, वैध दस्तावेज होने पर ही ऐसे लोगों को 12 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी.
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क्यों हो रहा है विरोध?
असम गण परिषद (एजीपी) के अलावा देश की कई विपक्षी पार्टियां भी इस बिल का विरोध कर रही हैं. इनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत दूसरी पार्टियां शामिल हैं. इनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. ये विधेयक 19 जुलाई 2016 को पहली बार लोकसभा में पेश किया गया. इसके बाद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. जेपीसी रिपोर्ट में विपक्षी सदस्यों ने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है. इस बिल में संशोधन का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि अगर बिल लोकसभा से पास हो गया तो ये 1985 के 'असम समझौते' को अमान्य कर देगा.
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बिल पास करवाना चुनौती
हालांकि इस बार भी सरकार के लिए नागरिकता संशोधन बिल पास करवाना मुश्किल होगा. विपक्ष के विरोध की वजह से इसे सरकार इसे संख्याबल के आधार पर लोकसभा में तो पास करवा लेगी लेकिन मामला राज्यसभा में फंस सकता है.सरकार के सामने राज्यसभा में इस बिल को पास कराने की चुनौती है.
दरसअल राज्यसभा में वर्तमान सांसदों की संख्या 239 है. ऐसे में अगर सभी सांसद वोट करें तो बहुमत के लिए 120 सांसदों का वोट चाहिए. सदन में बीजेपी के पास 81 सांसद हैं. ऐसी स्थिति में बीजेपी को बहुमत के लिए 39 और वोट चाहिए होंगे. अब मुश्किल ये है कि बीजेपी की सहयोगी जेडीयू हमेशा से इस बिल के ख़िलाफ़ रही है, जिसके पास 6 सांसद हैं.
इतना ही नहीं महाराष्ट्र में बीजेपी का साथ छोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने वाली शिवसेना भी इसके खिलाफ जा सकती है, जिसके 3 सांसद हैं. आमतौर पर सरकार का साथ देने वाली टीआरएस भी इस संसोधन बिल के खिलाफ दिख रही है. सदन में टीआरएस के 6 सांसद हैं.