Explained: क्या है नागरिकता संशोधन बिल, जान लीजिए इसके बारे में सबकुछ
Citizenship Amendment Bill: जानिए नागरिकता संशोधन विधेयक क्या है और इसको पास करवाना सरकार के लिए कितना आसान और कितना मुश्किल होगा.
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Citizenship Amendment Bill: आज नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) लोकसभा में केंद्र सरकार पेश करेगी. इस बिल को लेकर लगातार विवाद हो रहा है. ऐसे में आज इस बिल को लेकर फिर एक बार सदन में हंगामें के आसार हैं. हालांकि लोकसभा में सरकार के पास बहुमत होने की वजह से बिल को आसानी से मंजूरी मिल जाएगी. लोकसभा में सोमवार को होने वाले कार्यों की सूची के मुताबिक गृह मंत्री दोपहर में विधेयक पेश करेंगे जिसमें छह दशक पुराने नागरिकता कानून में संशोधन की बात है और इसके बाद इस पर चर्चा होगी. इस बिल के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
हालांकि नागरिकता संशोधन विधेयक अगर दोनों सदनों में पास हो भी जाता है तो भी यह पूरे देश में लागू नहीं होगा. आइए आज आपको बताते हैं इस बिल से जुड़ी हर एक पहलू के बारे में सबकुछ
क्या है नागरिकता संशोधन बिल 2016?
भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया. मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे 'नागरिकता संशोधन बिल 2016' नाम दिया गया है. संशोधन के बाद ये बिल देश में छह साल गुजारने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई) के लोगों को बिना उचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का रास्ता तैयार करेगा. पहले'नागरिकता अधिनियम 1955' के मुताबिक, वैध दस्तावेज होने पर ही ऐसे लोगों को 12 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी.
क्यों हो रहा है विरोध?
असम गण परिषद (एजीपी) के अलावा देश की कई विपक्षी पार्टियां भी इस बिल का विरोध कर रही हैं. इनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत दूसरी पार्टियां शामिल हैं. इनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. ये विधेयक 19 जुलाई 2016 को पहली बार लोकसभा में पेश किया गया. इसके बाद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. जेपीसी रिपोर्ट में विपक्षी सदस्यों ने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है. इस बिल में संशोधन का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि अगर बिल लोकसभा से पास हो गया तो ये 1985 के 'असम समझौते' को अमान्य कर देगा.
कहां लागू नहीं होगा यह बिल
इस नागरिकता संशोधन बिल में दो अपवाद जोड़े गए हैं. CAB की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में लागू नहीं होगा (जो स्वायत्त आदिवासी बहुल क्षेत्रों से संबंधित है), जिनमें असम, मेघायल, त्रिपुरा और के क्षेत्र मिजोरम शामिल हैं वहीं ये बिल उन राज्यों पर भी लागू नहीं होगा जहां इनर लाइन परमिट है जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम. इनर लाइन परमिट ईस्टर्न फ्रंटियर विनियम 1873 के अंतर्गत जारी किया जाने वाला एक ट्रैवल डॉक्यूमेंट है. भारत में भारतीय नागरिकों के लिए बने इनर लाइन परमिट के इस नियम को ब्रिटिश सरकार ने बनाया था. बाद में देश की स्वतंत्रा के बाद समय-समय पर फेरबदल कर इसे जारी रखा गया.
बिल पास करवाना चुनौती
हालांकि इस बार भी सरकार के लिए नागरिकता संशोधन बिल पास करवाना मुश्किल होगा. विपक्ष के विरोध की वजह से इसे सरकार इसे संख्याबल के आधार पर लोकसभा में तो पास करवा लेगी लेकिन मामला राज्यसभा में फंस सकता है.सरकार के सामने राज्यसभा में इस बिल को पास कराने की चुनौती है. दरसअल राज्यसभा में वर्तमान सांसदों की संख्या 239 है. ऐसे में अगर सभी सांसद वोट करें तो बहुमत के लिए 120 सांसदों का वोट चाहिए. सदन में बीजेपी के पास 81 सांसद हैं. ऐसी स्थिति में बीजेपी को बहुमत के लिए 39 और वोट चाहिए होंगे. अब मुश्किल ये है कि बीजेपी की सहयोगी जेडीयू हमेशा से इस बिल के ख़िलाफ़ रही है, जिसके पास 6 सांसद हैं.
इतना ही नहीं महाराष्ट्र में बीजेपी का साथ छोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने वाली शिवसेना भी इसके खिलाफ जा सकती है, जिसके 3 सांसद हैं. आमतौर पर सरकार का साथ देने वाली टीआरएस भी इस संसोधन बिल के खिलाफ दिख रही है. सदन में टीआरएस के 6 सांसद हैं.
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