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कॉलेजियम सिस्टम: क्या सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच टकराव की जमीन तैयार है?

सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम है. जिसमें प्रधान न्यायाधीश सहित सुप्रीम कोर्ट के 4 जज होते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के जज डी वाई चंद्रचूड़ ने देश के प्रधान न्यायाधीश के तौर पर पदभार ग्रहण कर लिया है. 9 नवंबर 2022, बुधवार को राष्ट्रपति दौपद्री मुर्मू ने उन्हें इस पद की शपथ दिलाई. देश के 50वें चीफ जस्टिस बनने के बाद उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम की वकालत की है. उन्होंने कहा कि ये सिस्टम न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है.

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि कार्यपालिका को भव्यता से बचना चाहिए. हालांकि उनका कहना ये भी है कि वो कॉलोजियम सिस्टम में अधिक पारदर्शिता का समर्थन करते हैं. जस्टिस चंद्रचूड़  ने कहा है कि कोई भी संवैधानिक संस्था या मॉडल सही नहीं होता, लेकिन हमें उसकी कमियों को दूर करके और आलोचना के प्रति उत्तरदायी होकर कॉलेजियम प्रणाली को मजबूत करने की जरुरत है.

जस्टिस चंद्रचूण ने कहा कि न्यायिक प्रणाली में लोकतंत्र स्थापित करने के लिए साल 1993 में कॉलेजियम सिस्टम को लागू किया गया और साल 1998 में इस प्रणाली का देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ने विस्तार दिया. उसी समय सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यों की एक टीम बनाई गई थी. कॉलेजियम सिस्टम के जरिए न्यायाधीशों की नियुक्ति निष्पक्ष रूप से की जाती है साथ ही ये कानून के शासन को भी सुनिश्चित करता है. जस्टिस चंद्रचूड़ का कहना है कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है.

इसके साथ ही देश के नए प्रधान न्यायाधीश ने कॉलेजियम प्रणाली में 5 सदस्यों की जगर 6 सदस्यों की भी सिफारिश की है. आमतौर पर इस प्रणाली में सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठतम जज सदस्य होते हैं और इसका नेतृत्व देश के मुख्य न्यायाधीश करते हैं. कुल मिलाकर इसमें  5 लोग होते हैं. लेकिन अब इसमें एक सदस्य ऐसा होगा जो देश का अगला प्रधान न्यायाधीश बन सकता है.

क्योंकि मौजूदा समय में कॉलेजियम सिस्टम में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस आर शाह शामिल हैं ये चारों सदस्य सीजेई डीवाई चंद्रचूण के कार्यकाल 10 नंवबर 2024 से पहले ही रिटायर हो रहें हैं. ऐसे में साल 1998 के एक फैसले के मुताबिक कॉलेजियम में एक ऐसे सदस्य को शामिल करना होगा जो अगला चीफ जस्टिस बने. 

कॉलेजियम सिस्टम पर सरकार के सवाल
वहीं केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिरिजू ने कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल खड़े किए हैं उनका कहना है कि लोग जजों को नियुक्ति के लिए बने कॉलेजियम सिस्टम से खुश नहीं हैं. जज आधा समय नियुक्तियों की पेचिदगियों में ही व्यस्त रहते हैं, जिसकी वजह से न्याय देने की उनकी जो मुख्य जिम्मेदारी है उस पर असर पड़ता है.


कॉलेजियम सिस्टम: क्या सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच टकराव की जमीन तैयार है?

उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था कि उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए कॉलेजियम प्रणाली पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. लोग इस सिस्टम से खुश नहीं हैं. जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर एक सवाल के जवाब में रिजिजू ने कहा कि साल 1993 तक भारत में जजों को भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से कानून मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया जाता था. उस समय हमारे पास बहुत प्रतिष्ठित जज थे. 

केंद्रीय मंत्री का कहना है कि देश में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका लोकतंत्र के तीन स्तंभ हैं. कार्यपालिका और विधायिका अपने कर्तव्यों में बंधे हैं और न्यायपालिका उन्हें सुधारती है, लेकिन जब न्यायपालिका भटक जाती है तो उन्हें सुधारने का कोई उपाय नहीं है.

इतना ही नहीं रिजिजू ने कॉलेजियम सिस्टम को गैर-पारदर्शी करार दिया है और आरोप लगाया है कॉलेजियम के सदस्य अपने आधार पर जजों की नियुक्ति करते हैं. और इसमें जजों की नियुक्ति को लेकर गहन राजनीति चल रही है. न्यायपालिका में ये दिखाई नहीं देता.  

क्या है कॉलेजियम सिस्टम ?
सुप्रीम कोर्ट और राज्यों के हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही कॉलेजियम सिस्टम को अस्तिव में लाया गया. जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के 4 जज होते हैं और CJI इसका नेतृत्व करते हैं. कॉलेजियम सिस्टम ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कार्ट में जजों की नियुक्ति और उनके तबादलें को लेकर निर्णय लेता है. इसमें संसद के अधिनियम या संविधान का प्रावधान नहीं हैं मतलब सरकार की भूमिका नहीं होती.

लेकिन कॉलेजियम सिस्टम के सदस्य जज ही नामों की सिफारिश कर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेजते हैं. साल 1990 में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बाद यह व्यवस्था बनाई गई थी और साल 1993 से इसी प्रणाली के जरिए उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति शुरू की गई. कॉलेजियम प्रणाली जिन जजों का चुनाव करती हैं उन्हें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और उनकी मंजूरी मिलने के बाद जजों की नियुक्ति की जाती है.  


कॉलेजियम सिस्टम: क्या सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच टकराव की जमीन तैयार है?

भारत के संविधान में नियम क्या हैं
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) में यह कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय के जजों के परामर्श और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद होगी. इसके अलावा अनुच्छेद 217 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति प्रधान न्यायाधीश, राष्ट्रपति और राज्य के राज्यपाल के परामर्श से की जाएगी. और मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति उच्च  न्यायालय  के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से की जाएगी.

क्यों होती है इस प्रणाली की आलोचना ?
साल 1993 से पहले कॉलेजियम सिस्टम के बिना जजों की नियुक्ति की जाती थी. भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श और केंद्रीय कानून मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति करता था.

लेकिन फिर जजों की नियुक्ति को लेकर कुछ ऐसे मामले सामने आए जिनकी सुनवाई के बाद कॉलेजियम सिस्टम लाया गया और इसमें मौजूद सुप्रीम जजों के परामर्श से नियुक्तियां की जा रही हैं लेकिन अब कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं का मानना है कि इसमें पारदर्शिता नहीं है. इसमें कोई सचिवालय और आधिकारिक तंत्र नहीं हैं और तो और इस सिस्टम के तहत जजों की नियुक्ति को लेकर फैसला एक बंद कमरे में किया जाता है. जिसके बारे में किसी को कोी जानकारी या चयन प्रक्रिया नहीं होती. इसी को लेकर केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने आपत्ति जताई है और इस प्रक्रिया में सरकार के दखल की बात कही है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट इसे खारिज करता आ रहा है.

क्या है राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग ?
हालांकि इस विवाद को लेकर साल 2014  में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों का नियुक्ति और तबादलों को लेकर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम बनाया था. हालांकि एक साल बाद ही साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार कर दिया. जिसे लेकर कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग न्यायपालिका के कामकाज में हस्तक्षेप है.

क्या तैयार है टकराव की जमीन?

एक ओर सरकार ने कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना कर रुख साफ कर दिया है कि वो जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में शामिल होना चाहती है. दूसरी ओर नए प्रधान न्यायाधीश ने इसमें पारदर्शिता लाने की बात कहकर इसमें किसी भी तरह से बदलाव से इनकार कर दिया है. साल 2015 में जब राष्ट्रीय न्यायिक आयोग को खारिज किया गया था तो लंबी बहस चली थी. लेकिन एक बार फिर ऐसा लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच टकराव की जमीन तैयार हो रही है.

 

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