नई दिल्ली: दिल्ली में सीसीटीवी कैमरे लगाने को लेकर विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. आम आदमी पार्टी लगातार दिल्ली के उपराज्यपाल पर सीसीटीवी के काम को रोकने का आरोप लगा रही है तो उपराज्यपाल ने साफ कर दिया है कि उनकी तरफ से सीसीटीवी के काम को रोकने की कोई कोशिश नहीं की गई है उल्टा दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने आज तक उनके पास इस मुद्दे से जुड़ी हुई कोई फाइल ही नहीं भेजी है तो भला काम को रोकने का सवाल ही नहीं उठता है. इस बीच दिल्ली बीजेपी और दिल्ली कांग्रेस ने भी केजरीवाल सरकार पर सीसीटीवी कैमरे के नाम पर भ्रष्टाचार करने और देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है. लेकिन आखिर ये पूरा विवाद है क्या, चलिए आपको सिलसिलेवार तौर से बताते हैं


क्या है सीसीटीवी विवाद?


14 फरवरी 2015 को केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली और उसके कुछ महीनों के अंदर यानी कि 13-10-2015 को कैबिनेट की बैठक में प्रस्ताव पारित कर दिल्ली में सार्वजनिक जगहों पर सीसीटीवी कैमरा लगाने के फैसले पर मुहर लगा दी गई. फैसले के मुताबिक दिल्ली में सार्वजनिक जगहों पर सीसीटीवी लगाने अनुमानित लागत करीबन 130 करोड़ रखी गई थी. लेकिन कैबिनेट की तरफ से पास हुए इस फैसले पर अगले 2 सालों तक काम शुरू नहीं हो पाया. इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही केजरीवाल सरकार पर निशाना साधा और जनता के साथ धोखा करने का आरोप लगाया.


2017 में जारी हुआ था टेंडर


नवंबर 2017 में दिल्ली सरकार के अधीन आने वाले लोक निर्माण विभाग को मुख्यमंत्री और पीडब्ल्यूडी मंत्री यानी सत्येंद्र जैन की तरफ से लगभग 571 करोड़ों रुपए के टेंडर जारी करने की अनुमति मिल गई. इसके बाद टेंडर जारी किए गए और टेंडर की प्रक्रिया में सिर्फ दो कंपनियों ने हिस्सा लिया पहली कंपनी थी बीईएल यानी की बेल और दूसरी कंपनी थी एलएंडटी. सरकार को इन दो कंपनियों की तरफ से प्रस्ताव मिला जिसके बाद बेल को दिल्ली में सीसीटीवी लगाने का कांट्रेक्ट दे दिया गया. कांट्रेक्ट के मुताबिक लगभग 321 करोड़ों रुपए सीसीटीवी लगाने के लिए रखे गए थे और लगभग 250 करोड रुपए अगले 5 साल तक इसका रखरखाव करने के लिए.


विपक्ष के निशाने पर केजरीवाल


सरकार के इस फैसले के बाद से सवाल उठने शुरू हो गए, कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों ने केजरीवाल सरकार पर घोटाले का आरोप लगाना शुरू कर दिया. दोनों ही दलों की तरफ से दलील देते हुए कहा गया कि आखिर जब केजरीवाल सरकार ने 2015 में 130 करोड़ रुपए का बजट कैबिनेट से पास करवाया था तो फिर बिना कैबिनेट की मंजूरी के बेल कंपनी को 571 करोड़ का कांट्रेक्ट कैसे दे दिया गया ?


आरोप सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि कांग्रेस ने तो जिस तरह से ठेका बेल से ज़रिए चीनी कंपनी हिक विज़न को मिला उस पर भी सवाल खड़े किये हैं. माकन ने आरोप लगाया कि चीन की कंपनी को सीसीटीवी लगाने का काम देने के लिए सभी नियम-कानून ताक पर रखे गए. चीनी कंपनी को ठेका देने के लिए दो बार टेंडर दिए गए. माकन के आरोप लगाया कि नवंबर महीने में बेल की वेंडर सूची में चीनी कंपनी हिकविजन शामिल नहीं थी इसलिए उस दौरान टेंडर जारी नहीं किया गया. इसके बाद जब चीनी कंपनी हिकविज़न बेल की वेंडर सूची में शामिल हुई तो फिर टेंडर जारी किया गया और सीसीटीवी लगाने का टेंडर बेल को दिया गया.


आप की दलील


कांग्रेस और बीजेपी के आरोपों पर आम आदमी पार्टी ने सफाई देते हुए कहा जिस कंपनी को सीसीटीवी लगाने का टेंडर दिया गया है वो सरकारी उपक्रम है और इससे पहले भी कई जगहों पर सीसीटीवी लगाने का काम करती रही है. लेकिन इस बार सीसीटीवी का कांट्रेक्ट सरकारी उपक्रम बीईएल को भी देने से पहले टेंडर किया गया और टेंडर में बेल की तरफ से सबसे कम बोली लगाई गई उसके बाद ही टेंडर दिया गया तो ऐसे में भ्रष्टाचार और घोटाले के आरोप बेबुनियाद हैं.


आम आदमी पार्टी कांग्रेस और बीजेपी के आरोपों पर जवाब देने से ज्यादा इस मुद्दे को लेकर उपराज्यपाल पर गंभीर आरोप लगा रही है. आम आदमी पार्टी के नेता और खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल पर आरोप लगाते हुए दिल्ली सरकार के सीसीटीवी लगाने के फैसले में अडंगा डालने की बात कर रहे हैं.


उपराज्यपाल ने केजरीवाल पर उठाये सवाल


सीएम केजरीवाल के आरोपों पर उपराज्यपाल कार्यालय की तरफ से जारी प्रेस रिलीज में अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के मंत्रियों की तरफ से लगाए जा रहे आरोपों को सिरे से खारिज किया है. उपराज्यपाल की तरफ से कहा गया कि केजरीवाल और उनके मंत्री सीसीटीवी की फाइल रोकने का जो आरोप उपराज्यपाल पर लगा रहे हैं वह आरोप पूरी तरह बेबुनियाद क्योंकि सीसीटीवी से जुड़ी कोई फाइल उपराज्यपाल के पास भेजी ही नहीं गयी.


विवाद की वजह कुछ और


एक तरफ आम आदमी पार्टी उपराज्यपाल के ऊपर सीसीटीवी लगाने से जुड़े प्रोजेक्ट पर रोक लगाने का आरोप लगा रही है तो दूसरी तरफ आप के बागी विधायक कपिल मिश्रा ने भी केजरीवाल सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. कपिल मिश्रा के आरोपों के मुताबिक पूरा खेल वित्तीय गड़बड़ी से जुड़ा हुआ है और रही बात उपराज्यपाल के ऊपर आरोप लगाने तो केजरीवाल इसके जरिए अपनी सरकार की नाकामियों और गड़बड़ियों को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं.


फिलहाल ये विवाद इतनी जल्दी सुलझता नहीं दिख रहा क्योंकि जहां एक तरफ दिल्ली के उपराज्यपाल ने सीसीटीवी लगाने को लेकर एक कमिटी का गठन किया है तो केजरीवाल सरकार ने उस कमिटी को ही गैर कानूनी और असंवैधानिक बताकर खारिज़ कर दिया है. यानि की कुल मिलाकर फिलहाल मुद्दा एक है पर मुद्दे से जुड़े विवाद और सवाल कई हैं हालांकि हर कोई सीसीटीवी लगाने की बात तो जरुर कर रहा है पर फिलहाल ये दिल्ली की राजनीति में उलझ कर रह गया है.