सर्राफा कारोबार पर ई-वे बिल प्रस्तावित किया गया है. इस बिल के आने से दो लाख से ज्यादा के आभूषणों ( सोना, चांदी या कीमती धातू) के इंटर स्टेट ट्रांसपोर्ट पर कारोबारियों को ई बिल जेनरेट करना होगा.
प्रदेश के बाहर सोना, चांदी या कीमती धातु बेचने पर अभी ई बिल अनिवार्य नहीं है. अक्टूबर से यह नियम प्रभावी हो जाएगा. इस नए नियम के आने के बाद सर्राफा कारोबारियों को कई तरह की मुश्किलें पेश आने लगी है.
यूपी में 90 प्रतिशत छोटे सर्राफा कारोबारी हैं, जिन्हें एक ही गहना बनवाने के लिए कई-कई बार ई वे बिल बनाना पड़ेगा. एक आभूषण कई कारखानों में बनकर तैयार होता है, ऐसे में जितनी बार वो कारखाने से निकलेगा उतनी ही बार ई बिल जेनरेट करवाना पड़ेगा. केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड ने सभी राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों में दो लाख से ज्यादा गोल्ड ज्वेलरी के मूवमेंट पर ई वे बिल जारी करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है.
इस सब के बीच ऑल इंडिया ज्वैलर्स एंड गोल्डस्मिथ फेडरेशन ने बदलाव की मांग की है. फेडरेशन का कहना है कि छोटे सर्राफा कारोबारियों को इस नियम से सबसे ज्यादा नुकसान होगा. ऑल इंडिया ज्वैलर्स एंड गोल्डस्मिथ फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज अरोड़ा के नेतृत्व में बारह राज्यों के सर्राफा व्यापारियों की बैठक हुई. इसमें तय किया गया कि फेडरेशन के सभी प्रदेश अध्यक्ष अपने राज्य के वित्त मंत्रियों से मुलाकात करेंगे.
जानिए क्या है ई-वे बिल
किसी भी वाहन से माल भेजने पर उसके साथ ऑनलाइन बिल भेजना पड़ता है. इसे ही ई वे बिल कहा जाता है. जीएसटी नियम के तहत अगर किसी गाड़ी से 50 हजार रुपए से ज्यादा की धातु भेजी जाती है तो उस पर ई-वे बिल जरूर होना चाहिए. ई-वे बिल के फॉर्म में दो पार्ट होते हैं. पहले हिस्से में माल की जानकारी,वजन और कीमत वगैरह बताई जाती है. फॉर्म के दूसरे हिस्से में वाहन संख्या और पहचान का जिक्र होता है. इसमें दूरी की जानकारी भी होती है.
छोटे कारोबारियों को कैसे होगी परेशानी
जानकार बताते हैं कि 90 फीसदी छोटे सर्राफा कारोबारियों को आज भी कंप्यूटर के बारे में जानकारी नहीं है. काम के लिए आज भी वो इंटरनेट कैफे जाते हैं. ऐसे में ई बिल के लिए बार-बार कैफे जाना सुरक्षित नहीं समझा जा सकता है. यूपी में करीब 15 फीसदी ज्वैलर्स ने कामकाज के लिए कंप्यूटर ऑपरेटर रखा है , ऐसे में ई बिल जिसे गोपनीय रहना चाहिए वो गोपनीय नहीं रह पाएगा.
उत्तर प्रदेश संयोजक ऑल इंडिया ज्वेलर्स एंड गोल्ड स्मिथ फेडरेशन और महामंत्री -चौक सर्राफा एसोसिएशन विनोद महेश्वरी एबीपी न्यूज को बताया कि एक आभूषण को बनाने में अलग-अलग प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. इसके कारीगर भी अलग-अलग होते हैं. कास्टिंग , पालिश, छिलाई, हॉलमार्किंग के लिए अलग कारीगरों के पास जाना और हर बार ई बिल बनाना बहुत जटिल हो जाता है. देखा जाए तो ई बिल जैसा कॉन्सेप्ट सराफा कारोबारियों के लिए नहीं है.
माहेश्वरी ने आगे कहा कि सभी सर्राफा बाजारों में गहनों की तौल के लिए मान्यता प्राप्त धर्मकांटो की पर्ची होना जरूरी है. किसी भी माल को व्यापारियों को सौंपने से पहले धर्मकांटे पर माल भेजकर वजन चेक किया जाता है. फिर माल हॉलमार्किंग के लिए जाता है ऐसे में बार- बार ई बिल बनवाने से काफी दिक्कतें आएंगी.
इस बिल में क्या क्या कवर किया जाएगा
आभूषण, सोना और चांदी के सामान , मोती और कीमती या अर्ध-कीमती पत्थर; बहुमूल्य धातुओं पर ई बिल लगाया जाएगा.
ई-वे बिल कब जरूरी है :
लेन-देन और आभूषण बनाने और हॉलमार्किंग के लिए माल भेजने पर ई बिल जरूरी है. राज्य के भीतर आभूषण ट्रांसपोर्ट करने पर भी ई बिल जरूरी बताया जा रहा है. इसी को लेकर विवाद है.
ई-वे बिल कब जरूरी नहीं है
एक राज्य से दूसरे राज्य में माल ट्रांसपोर्ट करने में ई बिल की जरूरत नहीं होगी. ई-वे बिल तमाम पंजीकृत कारोबारी के लिए लागू किए जाते हैं . कई बार अपंजीकृत ग्राहक एक्सचेंज या बिक्री के लिए पुराना सोना लेकर स्टोर या शोरूम पर जाते हैं. इन मामलों में ई-वे बिल जेनरेट करने की जरूरत नहीं होगी.
सोने के लिए ई-वे बिल बनाने के लिए भाग बी की जानकारी की जरूरत नहीं होती, भाग बी का मतलब वाहन संख्या और ट्रांसपोर्टर की जानकारी से है. ई वे बिल में फॉर्म जीएसटी ईडब्ल्यूबी-01 (ई-वे-बिल) का केवल भाग ए तैयार किया जाना है.
इसे ई-कॉम ऑपरेटरों या कूरियर एजेंसी बना सकती हैं. सोने के लिए ई-वेबिल पोर्टल में मुख्य मेनू में एक अलग विकल्प दिया गया है. इसमें ई-वे-बिल बनाने के 24 या 72 घंटों के भीतर पैसा जमा करना होगा. इसकी गणना पिन टू पिन दूरी के आधार पर की जाएगी.