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अरुण जेटली ने की थी शुरुआत, कई बार हुए हैं बदलाव, जाने इलेक्शन बॉन्ड का इतिहास

Electoral Bond History: चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने का आदेश दिया है. इसकी शुरुआत 2018 में हुई थी. तब के केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने इसके बचाव में कई तर्क दिए थे.

Electoral Bond News: ‘चुनावी बॉन्ड योजना’ को उच्चतम न्यायालय द्वारा गुरुवार (15 फरवरी) को ‘असंवैधानिक’ बताकर निरस्त किए जाने से कई साल पहले तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे वैध और पारदर्शी करार दिया था. जेटली चुनावी बॉन्ड योजना के प्रमुख प्रस्तावकर्ता थे. प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि मतदाताओं को मतदान करने के लिए आवश्यक जानकारी रखने का अधिकार है. कोर्ट ने बॉन्ड जारी करने के लिए अधिकृत वित्तीय संस्थान, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को कहा कि वह राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बॉन्ड का विवरण पेश करे.

अरुण जेटली ने सबसे पहले किया था जिक्र

चुनावी बॉन्ड योजना की घोषणा तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017-18 के अपने बजट भाषण में की थी और इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया था. उन्होंने एक व्यक्ति की ओर से नकद चंदे की सीमा दो हजार रुपये तक सीमित करते और चुनावी बॉन्ड योजना प्रस्तावित करते हुए कहा था, ‘‘भारत में राजनीतिक वित्तपोषण की व्यवस्था में शुचिता की जरूरत है.’’

हालांकि विपक्षी दलों ने योजना की अस्पष्टता को लेकर हंगामा किया था, लेकिन सरकार ने आगे बढ़ते हुए दो जनवरी, 2018 को इस योजना को अधिसूचित किया था. ऐसा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम में संशोधन करके किया गया, जिससे एसबीआई के लिए इस तरह का बॉन्ड जारी करने का मार्ग प्रशस्त हुआ.

छह सालों में जारी हुए 30 बॉन्ड

चुनावी बॉन्ड के पहले बैच की बिक्री मार्च 2018 में हुई थी. पिछले छह वर्षों में, एसबीआई ने 16,518 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड की 30 शृंखला जारी की हैं. जेटली ने जनवरी 2018 में कहा था कि चुनावी बॉन्ड योजना 'राजनीतिक वित्तपोषण की प्रणाली में आने वाले व्हाइट मनी और पर्याप्त पारदर्शिता की परिकल्पना करती है.'

अरुण जेटली ने ऐसे किया था चुनावी बॉन्ड योजना का बचाव

जेटली ने 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना का दृढ़ता से बचाव करते हुए अरुण जेटली ने कहा था कि अगर दानदाताओं को अपने नाम का खुलासा करने के लिए मजबूर किया जाता है तो नकदी और काले धन के माध्यम से राजनीतिक वित्तपोषण की प्रणाली वापस आ जाएगी. जेटली ने अप्रैल 2019 में कहा था, 'अगर आप लोगों से उसकी (दानकर्ता की) पहचान का भी खुलासा करने के लिए कहेंगे तो मुझे डर है कि नकदी प्रणाली वापस आ जाएगी.

उन्होंने आगे कहा था कि लोग योजना में गलती तो ढूंढ़ते हैं लेकिन चुनाव प्रक्रिया में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए किसी विकल्प के साथ नहीं आते. उन्होंने कहा था कि यह योजना भविष्य में काले धन के सृजन को रोकने के साथ-साथ राजनीतिक वित्तपोषण में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही लाएगी.

कई बार हुए हैं सुधार

राजनीतिक वित्तपोषण सुधारों के हिस्से के रूप में, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कानून मंत्री के रूप में अरुण जेटली ने चेक से दिए गए चंदे को वैध बनाने वाला एक विधेयक पेश किया था, बशर्ते इसकी घोषणा आयकर और निर्वाचन आयोग को की जाए. इन चंदे को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार ने प्रावधान किया कि राजनीतिक दलों को चंदे में दी गई राशि दानकर्ता की आयकर रिटर्न की गणना के उद्देश्य से कटौती योग्य व्यय होगी.

इसके बाद, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन नीत सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान वित्त मंत्री के रूप में प्रणब मुखर्जी वर्ष 2010 में दूसरा सुधार लेकर आए. जेटली ने सात अप्रैल 2019 को एक ब्लॉग में लिखा था, 'अत्यधिक ज्ञान और गहराई के धनी, उन्हें एहसास हुआ कि केवल चेक से चंदा देने से बदलाव नहीं आएगा. दानदाताओं को डर है कि उनकी पहचान उस राजनीतिक दल के साथ संबंध से होगी, जिसे उन्होंने चंदा दिया है.’’

जेटली ने क्या कहा था?

उन्होंने कहा था कि मुखर्जी ने 2010 में ‘पास-थ्रू इलेक्टोरल ट्रस्ट’ बनाकर पहचान को 'छिपा' दिया था. एक दानकर्ता एक पंजीकृत चुनावी ट्रस्ट को दान दे सकता है, जो बदले में एक राजनीतिक दल को दान देगा. जेटली ने वर्ष 2017-18 के बजट में कहा था कि आजादी के 70 साल बाद भी देश राजनीतिक दलों को वित्तपोषित करने का एक पारदर्शी तरीका विकसित नहीं कर पाया है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण है. राजनीतिक वित्तपोषण में काले धन के प्रवेश से चिंतित जेटली ने चुनावी बॉन्ड योजना का प्रस्ताव रखा था.

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