पुलिस अधिकारी अगर आपकी FIR दर्ज करने से मना कर दे तो क्या करें? FIR से जुड़े आपके अधिकार क्या हैं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका सामना किसी न किसी रूप में होता है. अगर आपको कानूनी पहलुओं की बुनियादी जानकारी होगी तो आप अपने अधिकार का सही इस्तेमाल कर सकते हैं.


FIR से संबंधित आपके कानूनी अधिकार


थाने में लिखित रूप में किसी अपराध की दी जानेवाली सूचना को FIR कहा जाता है. अपराध के संज्ञेय होने पर ही FIR लिखी जाती है. अगर किसी अपराध की शिकायत फोन पर की गई है तो शिकायतकर्ता को बाद में थाने जाकर FIR का पंजीकरण कराना चाहिए. प्रभारी के थाने में नहीं होने पर थाने के सबसे वरिष्ठ अधिकारी से शिकायत की जा सकती है.  अगर थाना प्रभारी ही FIR लिखने से मना कर दे तो पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी से शिकायत करें.


थाने में अगर आप रिपोर्ट लिखाने जाते हैं तो आपके साथ घटे अपराध की जानकारी देने को कहा जाता है. उस वक्त अपराध का समय, अपराध की जगह और मौके की स्थिति इत्यादि के बारे में पूछा जाता है. आपकी दी हुई जानकारी डेली डायरी में दर्ज की जाती है. डेली डायरी को रोजनामचा भी कहा जाता है. रोजनामचे को FIR समझने की भूल मत करें और न ही संतुष्ट होना चाहिए क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि आपकी शिकायत पर पुख्ता कार्यवाही होगी.


इसलिए जब भी अपराध की रिपोर्ट दर्ज कराने जाएं तो FIR लिखवाएं. सबूत के तौर पर एक प्रति अपने पास रखें. FIR की प्रति मांगना आपका कानूनी अधिकार है. FIR में देरी या लापरवाही की उच्च अधिकारी से शिकायत की जा सकती है. FIR दर्ज करने की कोई फीस नहीं होती है. मगर FIR जल्दी दर्ज कराना चाहिए. मौखिक रूप से भी घटना की शिकायत की थाना प्रभारी से की जा सकती है.


FIR में दी जानेवाली जानकारियां


अपराध का दोषी कौन है? अपराध किसके खिलाफ किया गया है? अपराध होने का समय क्या था? घटना को किस जगह अंजाम दिया गया? अपराध की प्रकृति क्या थी? अपराध से होनेवाले नुकसान क्या हैं? ये सभी जानकारी FIR में लिखवाई जाती हैं.


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