What is Inheritance Tax: भारत में कभी 85% तक लगता था विरासत से जुड़ा टैक्स, राजीव गांधी सरकार ने इसे क्यों कर दिया खत्म? इनसाइड स्टोरी
Inheritance Tax: चुनावी महौल के बीच 'विरासत टैक्स' बड़ा मुद्दा बनता नजर आया है. बीजेपी ने इसके बहाने जहां कांग्रेस को घेरा. वहीं, विपक्षी दल ने कहा कि जयंत सिन्हा ने भी कभी ऐसे ही कर की वकालत की थी.
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What is Inheritance Tax: लोकसभा चुनाव 2024 के पहले इनहेरिटेंस टैक्स यानी कि विरासत कर को लेकर सियासी बवाल मचा है. कांग्रेस के सैम पित्रोदा के एक बयान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दल को फिर घेरा है.
मध्य प्रदेश के मुरैना में गुरुवार (25 अप्रैल, 2024) को चुनावी जनसभा के दौरान उन्होंने कहा- पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मां इंदिरा गांधी के निधन के बाद "संपत्ति बचाने के लिए पहले से मौजूद विरासत कानून को खत्म कर दिया था."
विरासत कर को लेकर चुनावी समर में दावों, आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी के बीच समझिए कि असल में यह टैक्स क्या है, कैसे वसूला जाता है और दुनिया भर के किन-किन मुल्कों में फिलहाल लागू होता है. आइए, जानते हैं इस बारे में:
'विरासत कर' आखिर है क्या?
विरासत कर को एस्टेट टैक्स (Estate Tax) के नाम से भी जाना जाता है. भारत में साल 1985 तक इसी तरह का कर देखने को मिलता था, जिसमें किसी व्यक्ति की जीवन भर की गाढ़ी कमाई और संपत्ति उसकी मौत के बाद बच्चे को ट्रांसफर होती थी और बच्चे को उस कुल रकम/संपत्ति पर सरकार को टैक्स चुकाना पड़ता था.
उदाहरण के जरिए समझिए
मान लीजिए कि सुरेश कुमार नाम के कारोबारी के पास एक करोड़ रुपए की संपत्ति और दौलत है. अचानक उनकी मृत्यु हो जाती है, जिसके बाद यह पूरी रकम उनके बेटी निशा कुमारी के पास चली जाती है. अब निशा कुमारी को इसी कुल रकम और संपत्ति पर सरकार को 50 फीसदी टैक्स देना पड़ेगा. यानी उन्हें 50 लाख रुपए सरकार को विरासत कर या एस्टेट टैक्स के रूप में देने होंगे और शेष रकम उनके पास ही रहेगी. यही विरासत कर या एस्टेट टैक्स कहलाता है.
1953 में लाया गया था Estate Tax
मौजूदा समय में देश में विरासत टैक्स अमल में नहीं है. हालांकि, पहले एस्टेट टैक्स लगाया जाता था, जिसे 1985 में खत्म कर दिया गया था. यह साल 1953 में लाया गया था. चूंकि, देश को इससे कुछ साल पहले ही आजादी मिली थी और तब गरीबी थी. आर्थिक तौर पर असमानता थी. सरकार की तब सोच थी कि अमीर लोगों का पैसा अगर उनके बच्चों के पास जाएगा तब समाज में यह असमानता और बढ़ जाएगी. यही वजह थी कि इस कर को एक एक्ट (अधिनियम) के जरिए लाया गया था.
...तो इतनी थी भारत में इस कर की दर
एस्टेट टैक्स तब चल और अचल संपत्ति - दोनों पर ही लगाया जाता था. जानकारी के मुताबिक, भारत में तब जिसके पास 20 लाख रुपए से अधिक की संपत्ति होती थी, उस पर 85 फीसदी यह टैक्स लगता था. अगर किसी के पास तब कम से कम एक लाख रुपए की संपत्तियां हैं, तब इस कर की दर साढ़े सात फीसदी हुआ करती थी. इस तरह से रकम और संपत्तियों के हिसाब से टैक्स की दर भी बढ़ जाती थी.
खत्म क्यों किया गया था एस्टेट टैक्स?
साल 1985 में राजीव गांधी की सरकार आई थी और तब वित्त मंत्री वीपी सिंह थे. चूंकि, इस टैक्स को लेकर लोगों के बीच खासा नाराजगी थी और जिस मकसद को ध्यान में रखकर इसे लाया गया था, वह असल में पूरा नहीं हो पा रहा था. 1984-85 में एस्टेट टैक्स के नाम पर सरकार के पास लगभग 20 करोड़ रुपए ही आते थे, जबकि इसे कलेक्ट या रिकवर करने की कीमत इस रकम (कलेक्शन) से अधिक थी. ऐसे में वीपी सिंह ने इस टैक्स को कई कारणों और जटिलताओं के चलते खत्म कर दिया था. यह टैक्स तब एक तरह से बड़ी विफलता माना गया था.
सैम पित्रोदा के बयान पर मचा था बवाल!
इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा बोले थे- अमेरिका में 55 फीसदी विरासत टैक्स लगता है. सरकार 55 फीसदी हिस्सा ले लेती है. अगर किसी व्यक्ति के पास 10 करोड़ डॉलर की संपत्ति है तो उसके मरने के बाद 45 फीसदी संपत्ति उसके बच्चों को और 55 फीसदी संपत्ति सरकार की हो जाती है. भारत में ऐसा कानून नहीं है. ऐसे मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए और वे ऐसी नीतियों की बात कर रहे हैं, जो लोगों के हित में हो न कि सिर्फ अमीरों के हित में.
सैम पित्रोदा की इस टिप्पणी के बाद छत्तीसगढ़ के सरगुजा में बुधवार को पीएम मोदी ने कहा, "जिन लोगों ने पूरी कांग्रेस को पैतृक संपत्ति मानकर बच्चों को दे दी, वे लोग नहीं चाहते कि एक सामान्य भारतीय बच्चों को खुद की संपत्ति दे. कांग्रेस माता-पिता से मिलने वाली विरासत पर भी टैक्स लगाना चाहती है यानी कांग्रेस का मंत्र है- कांग्रेस की लूट, जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी."
भारत में पहले भी हो चुकी है इस टैक्स की चर्चा
- साल 2011 में योजना आयोग (अब नीति आयोग) की मीटिंग में इस तरह के टैक्स की चर्चा पहली बार तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने की थी.
- 2012 में उन्होंने फिर से यह मुद्दा उठाया था. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी इवेंट के सामने वह बोले थे- क्या हमने इस पर ध्यान दिया? हमें इस पर विचार करना चाहिए, ताकि समाज में जो गैर-बराबरी वाली खाई है, उसे भरा जा सके.
- पी चिदंबरम ने वर्ष 2013 में यूपीए-2 सरकार के बजट पेश करने के दौरान इस टैक्स को लागू करने की बात कही. उन्होंने यह तक कहा था कि इस कर के जरिए राजस्व बढ़ सकता है. हालांकि, कैबिनेट में उनकी इस बात से अधिक लोग खुश नहीं हुए थे.
- आगे 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार आई. केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने तब इस तरह के टैक्स की वकालत की थी. वह बोले थे- हमें भारत में अगर इस तरह के कर को लाना है, तब ले आना चाहिए जिससे गैर-बराबरी को कम किया जा सके.
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