UNLF News: मणिपुर में एक्टिव उग्रवादी समूह यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) ने बुधवार (29 नवंबर) को सरकार के साथ ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. यूएनएलएफ ने हिंसा त्यागने पर सहमति भी जताई. यूएनएलएफ की तरफ से शांति समझौते पर हस्ताक्षर की जानकारी ऐसे समय पर सामने आई, जब हाल ही में इस ग्रुप को 'गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम' (यूएपीए) के तहत बैन किए जाने की अवधि पांच साल के लिए बढ़ाई गई थी.


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ने नई दिल्ली में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. यूएनएलएफ हिंसा त्याग कर मुख्यधारा में शामिल होने पर सहमत हो गया है. माना जा रहा है कि ये समझौता इसलिए हुआ है, क्योंकि मणिपुर में हो रही हिंसा को लेकर सरकार एक्शन में है. ऐसे वह यूएनएलएफ पर भी कार्रवाई के मूड में थी. इस वजह से शायद संगठन ने शांति समझौते को बेहतर समझा. आइए जानते हैं कि आखिर यूएनएलएफ क्या है. 


क्या है यूएनएलएफ? 


यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) की 1964 में स्थापना की गई थी. ये मणिपुर के सबसे पुराने सशस्त्र समूहों में से एक है. इसके ज्यादातर सदस्य मैतई समुदाय से आते हैं. फ्रंटियर मणिपुर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस उग्रवादी संगठन की स्थापना 24 नवंबर, 1964 को अरंबम समरेंद्र ने की थी. वह मैतई समुदाय से थे और संगठन के जनरल सेक्रेटरी थे. ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष कलालुंग कामेई एक नागा थे और इसके उपाध्यक्ष थानखोपाओ सिंगसिट नामक कुकी थे. 


यूएनएलएफ का मकसद मणिपुर को भारत से आजाद करवाना और एक स्वतंत्र मणिपुर बनाना था. स्थापना के साथ इस उग्रवादी संगठन ने अपनी सदस्यता बढ़ाना शुरू कर दिया और अपने सामाजिक काम भी जारी रखे. द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, यूएनएलएफ की टॉप अधिकारियों ने 1971 के युद्ध में भारत के खिलाफ जाकर पाकिस्तान का साथ दिया था. इस ग्रुप के चीन के साथ भी कनेक्शन की बात कही जाती है. 


मदद मांगने चीन गए थे यूएनएलएफ के सदस्य


'द साउथ एशिया टेरेरिज्म पोर्टल' वेबसाइट के मुताबिक, यूएनएलएफ के नेता एन बिशेश्वर सिंह और उनके साथियों ने 1975 में चीन से मदद मांगने के लिए ल्हासा का दौरा किया था. 22 मई, 1990 को यूएनएलएफ, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-खापलांग (एनएससीएन-के), यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) और कुकी नेशनल आर्मी (केएनए) ने इंडो-बर्मा रिवोल्यूशनरी फ्रंट (आईबीआरएफ) नामक एक संगठन बनाया.


इस संयुक्त उग्रवादी संगठन का मकसद इंडो-बर्मा की आजादी के लिए एकजुट संघर्ष करना था. यूएनएलएफ ने अपना सशस्त्र कैडर बनाने के लिए 1976 में पहला कदम बढ़ाया था. उसी समय आरके मेघेन, एन ओकेन और कुछ अन्य लोगों के साथ म्यांमार में सोमरा ट्रैक्ट तक पहुंचे और वहां मौजूद नागा विद्रोहियों के साथ संबंध स्थापित किए.  


यूएनएलएफ ने अपना पहला हमला 1990 में किया था, जब उसने लम्दान में सीआरपीएफ के काफिले को निशाना बनाया. 1990 के दशक के मध्य में मेघन के डिप्टी एन ओकेन ने यूएनएलएफ का साथ छोड़ दिया. उन्होंने कांगलेई यावोल कन्ना लूप (केवाईकेएल) की स्थापना की, जिससे यूएनएलएफ टूट गया. इसके बाद 10 जून 2000 को केवाईकेएल ने यूएनएलएफ के संस्थापक समरेंद्र की गोली मारकर हत्या कर दी. इस समूह ने पहले भी शांति समझौता करने की कोशिश की थी, मगर इसकी शर्तों के चलते उसे ठुकरा दिया गया था. 


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