Maratha Agitation: महाराष्ट्र में एक बार फिर से मराठा आंदोलन की शुरुआत हो चुकी है. मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर जारी आंदोलन सोमवार (30 अक्टूबर) को बेहद ही हिंसक और आगजनी से भरा हुआ रहा. मराठवाड़ा क्षेत्र में कई सारे नेताओं के घरों में आग लगा दी गई और कई के दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया गया. अभी तक शांत चल रहा प्रदर्शन सोमवार से ही हिंसक हो गया है.
प्रदर्शनकारियों ने बीड में एनसीपी विधायक प्रकाश सोलंकी के आवास को फूंक दिया. उनके आवास पर पथराव भी किया गया. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि बीड़ में ही नगरपालिका परिषद भवन की पहली मंजिल को आग के हवाले कर दिया गया. मराठा आंदोलन की वजह से इस्तीफों का दौर भी शुरू हो गया है. गेवराई विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी विधायक लक्ष्मण पवार ने मराठा आरक्षण की मांग के समर्थन में विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है.
वहीं, महाराष्ट्र के नासिक और हिंगोली से शिवसेना के सांसदों ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने की मांग के समर्थन में अपना इस्तीफा दे दिया है. दोनों को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का करीबी माना जाता हैं. ऐसे में ये सवाल उठता है कि मराठा आरक्षण को लेकर विवाद क्या है. इस मामले में आखिर पेंच कहां फंसा हुआ और राज्य में जातियों के आरक्षण की क्या व्यवस्था है. आइए इस बारे में जानते हैं.
मराठा आरक्षण को लेकर क्या विवाद है?
महाराष्ट्र सरकार ने 30 नवंबर 2018 विधानसभा में मराठा आरक्षण बिल पास किया. इस बिल के जरिए राज्य की सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में मराठों को 16 फीसदी आरक्षण दिया गया. वहीं, सरकार के इस फैसले के खिलाफ मेडिकल छात्र बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंच गए. इस मामले पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई और फिर अदालत ने सरकार के फैसले को खारिज करने से इनकार कर दिया.
हालांकि, फिर 27 जून 2018 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला करते हुए महाराष्ट्र स्टेट बैकवॉर्ड क्लास कमीशन की सिफारिश पर आरक्षण की सीमा को कम कर दिया. इसके तहत मराठा लोगों को शैक्षणिक संस्थानों में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था की गई. 2019-20 सेशन के लिए एमबीबीएस के दाखिले में भी बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण लागू कर दिया.
वहीं, मराठा आरक्षण के विरोधियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपनी बात रखी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें निराशा हाथ लगी. शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के मराठा आक्षरण को वैठ ठहराने वाले फैसले पर रोक नहीं लगाई. मगर अदालत की तरफ से इस पर कोई अंतरिम फैसला नहीं दिया गया. इसके बाद 5 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया. इसका कहना था कि ये आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा से अधिक है.
सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर दिया फैसला?
दरअसल, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि देश के किसी भी राज्य में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण की व्यवस्था नहीं की जा सकती है. ये बात महाराष्ट्र पर भी लागू होती है. महराष्ट्र में पहले से ही 52 फीसदी आरक्षण चला आ रहा है. राज्य में आरक्षण की व्यवस्था कुछ इस प्रकार है:-
- अनुसूचित जाति - 15 फीसदी
- अनुसूचित जनजाति - 7.5 फीसदी
- अन्य पिछड़ा वर्ग - 27 फीसदी
- अन्य - 2.5 फीसदी
- कुल आरक्षण - 52 फीसदी
यहां गौर करने वाली बात ये है कि केंद्र सरकार के जरिए दिए जाने वाले गरीब सवर्णों के आरक्षण की व्यवस्था भी राज्य में लागू है. इसका मतलब हुआ कि कुल 52 फीसदी आरक्षण के अलावा राज्य में 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण भी दिया जाता है.
मराठा कौन हैं?
किसान, जमींदार और अन्य वर्ग के लोगों को शामिल कर महाराष्ट्र में जातियों का एक समूह है. महाराष्ट्र की आबादी में मराठा समुदाय की हिस्सेदारी 30 फीसदी से ज्यादा बताई जाती है. मराठाओं का इतिहास योद्धाओं का रहा है. राज्य की राजनीति में भी ये वर्ग काफी प्रभावशाली है. महाराष्ट्र को अभी तक जितने भी मुख्यमंत्री मिले हैं, उनमें से ज्यादातर इसी समुदाय से आते हैं. 2018 में भी महराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर बड़ा आंदोलन हो चुका है.
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