What Is Narco Test: दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार (17 नवंबर) को श्रद्धा हत्याकांड (Shraddha Murder Case) के आरोपी आफताब अमीन पूनावाला के नार्को टेस्ट की इजाजत दी है. इसका इस्तेमाल पहले भी कई महत्वपूर्ण मामलों को सुलझाने के लिए किया गया है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आखिर नार्को टेस्ट क्या होता है और इससे कौन सी जानकारी हासिल होती है. 


नार्को टेस्ट में शख्स को कुछ दवाई दी जाती हैं जैसे सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल. इसे लेने वाले बाद व्यक्ति एनेस्थीसिया की कई स्टेज से गुजरता है. इसका मतलब है कि व्यक्ति ना तो पूरी तरह से होश में होता है और ना ही बेहोश होता है. इस प्रोसेस के सम्मोहक स्टेज में व्यक्ति से वो जानकारी मिलने की अधिक संभावना होती है, जो आमतौर पर वह सचेत अवस्था में नहीं बताता है. 


टेस्ट के लिए व्यक्ति की सहमति भी जरूरी


जांच एजेंसियां इस टेस्ट का इस्तेमाल तब करती हैं जब बाकी सबूतों से भी मामले की असल तस्वीर सामने नहीं आ पाती है. नियमों के मुताबिक नार्को टेस्ट कराने के लिए भी संबंधित व्यक्ति की सहमति भी जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के टेस्ट की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिका पर फैसला सुनाया था कि नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना नहीं किए जा सकते. 


आफताब नार्को टेस्ट के लिए तैयार हुआ


श्रद्धा हत्याकांड के मामले में दिल्ली पुलिस ने आफताब के नार्को टेस्ट की मांग की थी. गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान आफताब ने नार्को टेस्ट के लिए हामी भरी. जिसके बाद कोर्ट ने आफताब के नार्को टेस्ट की इजाजत दे दी. हालांकि, नार्को टेस्ट के दौरान दिए गए बयान अदालत में स्वीकार्य नहीं हैं, सिवाय कुछ परिस्थितियों के जब अदालत को लगता है कि मामले के फेक्ट और प्रकृति इसकी अनुमति देती हैं. नार्को-एनालिसिस शब्द ग्रीक शब्द नर्को (जिसका अर्थ है एनेस्थीसिया या टॉरपोर) से लिया गया है. 


विशेषज्ञों के मुताबिक, नार्को टेस्ट के दौरान मॉलिक्यूलर लेवल पर व्यक्ति के नर्वस सिस्टम में दखल देकर उसकी हिचक कम की जाती है. ऐसी नींद जैसी हालत में अपराध के बारे में प्रमाणिक सच के बारे में जानने का प्रयास किया जाता है. इंजेक्शन के जरिए दिए जाने वाली ये खुराक व्यक्ति के लिंग, आयु, स्वास्थ्य और शारीरिक स्थिति के अनुसार तय की जाती है. 


डॉक्टर की मौजूदगी में होती है पूछताछ


इसके बाद संबंधित व्यक्ति से जांच एजेंसियों की ओर से डॉक्टरों की मौजूदगी में पूछताछ की जाती है. इस दौरान किए गए खुलासे की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाती है. कोर्ट के आदेश के बाद सरकारी अस्पताल में ये टेस्ट किया जाता है. 2002 के गुजरात दंगों के मामले, अब्दुल करीम तेलगी फर्जी स्टांप पेपर घोटाला, 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के मामले में पकड़े गए आतंकवादी अजमल कसाब और 2007 में निठारी हत्याकांड में भी नार्को टेस्ट (Narco Test) का इस्तेमाल किया गया था. 


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