6 सदस्य, वीटो पावर; आखिर क्या है NJAC, जिस पर 6 साल बाद सुप्रीम कोर्ट से भिड़ गई है मोदी सरकार
जजों की नियुक्ति के लिए मोदी सरकार ने 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध बता दिया. 6 साल बाद इसको लेकर केंद्र और कोर्ट में फिर से तनातनी बढ़ गई है.
18 अक्टूबर 2022- कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने जजों की नियुक्ति वाली कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाया. रिजिजू ने कहा कि जज न्याय देने की बजाय नियुक्ति करने में व्यस्त रहते हैं. कॉलेजियम प्रणाली संविधान के लिए एलियन है.
28 नवंबर 2022- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बड़े पद पर बैठे व्यक्ति को इस तरह के बयान देने से बचना चाहिए. जस्टिस एसके कौल ने कहा कि आपको कॉलेजियम का सम्मान करना पड़ेगा.
15 दिसंबर 2022- राज्यसभा में कानून मंत्री ने कहा कि जब तक जजों की नियुक्ति के लिए नई व्यवस्था नहीं होगी, तब तक सवाल उठता रहेगा. जजों के पद तब तक खाली रहेंगे, जब तक कॉलेजियम सिस्टम खत्म नहीं हो जाता है.
ऊपर के 3 बयान न्यायपालिका और सरकार में छिड़ी तकरार को बताने के लिए काफी है. पिछले कुछ महीनों से भारत में जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार ने कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सरकार जजों की नियुक्ति के लिए 6 साल पहले खारिज राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को फिर से लागू करने की मांग कर रही है.
जजों की नियुक्ति के लिए NJAC क्यों, 2 दलीलें...
- सरकार का कहना है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी, दलित और आदिवासी जजों की संख्या कम है, जिसकी वजह कॉलेजियम सिस्टम है.
- कॉलेजियम की वजह से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद चलता है. मेरिट के आधार पर नियुक्ति नहीं हो पाती है.
पहले जानते हैं जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है?
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए साल 1993 से देश में कॉलेजियम सिस्टम लागू है. इसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस समेत 5 सीनियर जज शामिल होते हैं. कॉलेजियम की मीटिंग में जजों के नियुक्ति पर चर्चा होती है और फिर इसकी सिफारिश सरकार से की जाती है.
कानून मंत्रालय से हरी झंडी मिलने के बाद जजों की नियुक्ति का फाइल राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति की मुहर लगने के साथ ही जजों की नियुक्ति फाइनल हो जाती है.
NJAC क्या है, 3 फैक्ट्स
1. 2014 में मोदी सरकार ने जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) बनाया था.
2. इसमें चीफ जस्टिस, कानून मंत्री समेत 6 लोगों को शामिल करने की बात कही गई थी.
3. 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस आयोग को संविधान के विरुद्धबताते हुए खत्म कर दिया था.
NJAC कैसे आया, विवाद में क्यों?
2013 में मनमोहन सरकार ने जजों की नियुक्ति के लिए न्यायिक नियुक्ति आयोग बिल लोकसभा में पेश की. इसपर काफी हंगामा हुआ, जिसे बाद में संसद की स्टैंडिंग कमेटी में भेजा गया. कमेटी ने कुछ सुझाव के साथ इस बिल को वापस सरकार के पास भेजा. हालांकि, तब तक लोकसभा चुनाव 2014 का बिगुल बज गया और मनमोहन सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया.
JAC और NJAC में अंतर क्या, 2 प्वाइंट्स
- JAC में नियुक्ति में शामिल सदस्यों के वीटो पावर का जिक्र नहीं किया गया था, जबकि NJAC में वीटो पावर का जिक्र है. अगर आयोग के कोई 2 सदस्य किसी नाम पर असहमत हैं, तो वो नाम नियुक्ति के लिए नहीं भेजा जा सकता है.
- JAC में 2 सदस्यों को मनोनीतकरने का अधिकार किसके पास है, इसका जिक्र नहीं था. NJAC में इसका जिक्र है. साथ दोनों के ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय से होना भी अनिवार्य बताया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
NJAC के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. सुनवाई करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर की संवैधानिक बेंच ने इसे अवैध घोषित कर दिया. कोर्ट ने माना कि आयोग के गठन से न्यायिक स्वतंत्रता पर असर होगा.
अब कॉलेजियम और NJAC में अंतर समझिए...
1. कॉलेजियम में सीजेआई समेत सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ जज होते हैं जो नियुक्ति, स्थानांतरण और प्रोन्नति पर फैसला लेते हैं. NJAC में 6 सदस्यों को शामिल करने का प्रस्ताव था, जिसमें चीफ जस्टिस समेत 3 जज को शामिल किया जाता.
2. कॉलेजियम में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है, जबकि NJAC लागू होने पर जजों के नाम फाइनल करने की प्रक्रिया में सरकार मुख्य भूमिका में आ जाती.
3. कॉलेजियम में कई बार सहमति नहीं बनने पर 3-2 से नाम फाइनल किए जाते हैं. NJAC में चीफ जस्टिस को ही वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया था.