नई दिल्ली: ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कारपोरेशन 56 इस्लामी और मुस्लिम राष्ट्रों का सबसे बड़ा संगठन है. IOC का मुख्य काम इस्लामिक देशों के मध्य सभी विषयों में सहयोग को प्रोत्साहित करना है. इस ऑर्गनाइजेशन का मुख्यालय जेद्दा, (सऊदी अरब) में स्थित है. इस ऑर्गनाइजेशन ने इस बार भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को विशिष्ट अतिथि के तौर पर निमंत्रण दिया है.
सुषमा स्वराज को निमंत्रण देना इस लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस संगठन ने भारत-जैसे राष्ट्र का सदा बहिष्कार किया है. भारत में दो-तीन मुस्लिम देशों को छोड़कर दुनिया के सबसे ज्यादा मुसलमान रहते हैं लेकिन इस संगठन ने भारत को सदस्यता देना तो दूर, पर्यवेक्षक का दर्जा भी आजतक नहीं दिया है. जबकि पर्यवेक्षक की तौर पर रूस, थाईलैंड और कई छोटे-मोटे अफ्रीकी देशों को हमेशा बुलाया जाता है.
इस बार पाकिस्तान के लाख चिल्लाने के वाबजूद भारत को IOC में बुलाया गया है. दरअसल पाकिस्तान ने हमेशा भारत को इस संगठन का हिस्सा होने के राह में रुकावट पैदा करता रहा है. अब 1 मार्च को होने वाले अधिवेशन में सुषमा स्वराज मुख्य अतिथि होंगी. ऐसे में आइए जानते हैं इस ऑर्गनाइजेशन के बारे में सबकुछ..
कब बना OIC और कौन-कौन से देश हैं इसका हिस्सा
OIC 1969 में बना ऑर्गेनाइजेशन है. इस ऑर्गेनाइजेशन में कुल 56 देश हैं. इन 56 देशों के नाम हैं- अफगानिस्तान, अल्बानिया, अल्जीरिया, अज़रबैजान, बहरीन, बांग्लादेश, बेनिन, ब्रूनेई, दार-ए- सलाम, बुर्किना फासो, कैमरून, चाड, कोमोरोस, आईवरी कोस्ट, जिबूती, मिस्र, गैबॉन, गाम्बिया, गिनी, गिनी-बिसाऊ, गुयाना, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, जार्डन, कजाखस्तान, कुवैत, किरगिज़स्तान, लेबनान, लीबिया, मलेशिया, मालदीव, माली, मॉरिटानिया, मोरक्को, मोजाम्बिक, नाइजर, नाइजीरिया, ओमान, पाकिस्तान, फिलिस्तीन, कतर, सऊदी अरब, सेनेगल, सियरा लिओन, सोमालिया, सूडान, सूरीनाम, सीरिया, ताजिकिस्तान, टोगो, ट्यूनीशिया, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, युगांडा, संयुक्त अरब अमीरात, उज्बेकिस्तान, यमन.
क्या है OIC का मुख्य उद्देश्य
1- OIC का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इस्लामी एकजुटता को प्रोत्साहन देना है. सदस्यों के बीच परामर्श की व्यवस्था करना है.
2- इसके अलावा इसका उद्देश्य न्याय पर आधारित देश अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बहाल करना है.
3- विश्व के सभी मुसलमानों की गरिमा, स्वतंत्रता और राष्ट्रीय अधिकारों की रक्षा करने का उद्देश्य भी इस संस्था का है.
पाकिस्तान के विरोध के बावजूद OIC में पहली बार शामिल होगा भारत
भारत-पाकिस्तान विवाद इस संगठन में भी दिखता है. भारत में विश्व की मुस्लिम जनसंख्या का 12 प्रतिशत रहती है, पाकिस्तान द्वारा ओआईसी में भारत की सदस्यता को रोका जाता रहा है. जिन देशों में मुस्लिम जनसंख्या काफी है ऐसे कुछ देश जैसे रूस एवं थाईलैंड पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं, जबकि भारत को यह दर्जा भी नहीं दिया गया. लेकिन इस बार सउदी अरब और संयुक्त अरब अमारात की पहल पर भारत को यह मौका मिला है, हालांकि पिछले साल बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने भी भारत को कम से कम पर्यवेक्षक का दर्जा दिए जाने की पहल की थी. इस बार भारत को न सिर्फ निमंत्रण मिला बल्कि हमारी विदेश मंत्री को विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया गया है.
OIC में शामिल होना क्यों महत्वपूर्ण है
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट है कि कश्मीर विवाद पर अपना झूठा हक जताए रखने के लिए पाकिस्तान ने अक्सर ओआईसी में अपनी सदस्यता का लाभ उठाया है. उसने हमेशा भारत को परिषद से बाहर रखने की भी पैरवी की है.1969 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल याह्या खान ने मांग की कि ओआईसी भारत का बहिष्कार करे. पाकिस्तान ने यह भी कहा है कि OIC कश्मीर में जनमत संग्रह के लिए अपनी मांगों का समर्थन करता है.
बता दें कि 2006 में उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने ओआईसी में शामिल होने के लिए कहा था लेकिन असफल रहे. सऊदी अरब, कतर और बांग्लादेश इस बात पर सहमत हुए हैं कि भारत को पर्यवेक्षक का दर्जा मिलना चाहिए, लेकिन पाकिस्तान ने इन प्रस्तावों का विरोध किया है. 2016 में, MEA ने एक बयान जारी कर कहा था कि कश्मीर पर OIC की चर्चा गलत तथ्यों पर आधारित होती है.
पाकिस्तान के रवैये को देखते हुए भारत का OIC में हिस्सा लेना महत्वपूर्ण है. विशेषज्ञों का कहना है कि पुलवामा हमले को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने के बाद भारत को निमंत्रण मिलने से पाकिस्तान बैकफुट पर आ सकता है. साथ कश्मीर के मसले पर भी भारत मजबूती के अपना पक्ष रखेगा और पाकिस्तान को बेनकाब करेगा.