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क्या है पेपरमेशी कला, जिसमें बिहार की सुभद्रा कुमारी को मिला पद्मश्री अवार्ड

पेपरमेशी मूल रूप से जम्मू-कश्मीर की कला के रूप में जाना जाता है, लेकिन बिहार की सुभद्रा देवी ने बचपन में ही इस कला को सीख लिया था.

भारत के 74 वें गणतंत्र दिवस और सरस्वती पूजा से एक दिन पहले यानी 25 जनवरी की पूर्व संध्या को पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों की घोषणा की गई है. जिसके अनुसार मधुबनी की सुभद्रा देवी सहित बिहार के तीन लोगों को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

सुभद्रा देवी को पेपरमेशी कला में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री से नवाजा जाएगा. तो वहीं सुपर 30 के विश्व प्रसिद्ध चेहरे आनंद कुमार और दूसरे कपिलदेव प्रसाद को बावन बूटी के लिए पद्मश्री मिला है. इस खास मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सुभद्रा देवी को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं.

क्या है पेपरमेशी कला?

पेपरमेशी मूल रूप से जम्मू-कश्मीर की कला के रूप में जाना जाता है, लेकिन बिहार की सुभद्रा देवी ने बचपन में ही इस कला को सीख लिया था और अपने दोस्तों के बीच कलाकृतियां बनाया करती थीं. 

कागजों को गलाकर उसे लुगदी के रूप में तैयार करना और फिर फूले हुए कागज को कूटकर उसमें गोंद नीना और थोथा का इस्तेमाल कर पेस्ट बनाना और उससे कलाकृतियां तैयार करना पेपरमेशी कला कहलाता है. 

इसकी मदद से अलग अलग तरह की कलाकृतियां बनाई जाती है. भारत में त्योहारों के वक्त भी इस कला से मुखौटे और छोटी छोटी मूर्तियां बनाई जाती है. आम तौर पर आपने पेपरमेशी कला का इस्तेमाल दशहरे जैसे त्योहारों के मौके पर रावण या मेघनाथ के मुखौटे पर देखा होगा.

इसके अलावा दक्षिण भारत में कथकली के नर्तक का मुखौटा भी पेपरमेशी कला से तैयार किया जाता है. इस कला की सुंदरता इस पर की गई चित्रकारी से उभरकर सामने आता है.पेपरमेशी से मुखौटे, खिलौने, मूर्तियां, की-रिंग, पशु-पक्षी, ज्वेलरी और मॉडर्न आर्ट की कलाकृतियां बनाई जाती हैं

कैसे तैयार किया जाता है लुगदी

पेपरमेशी कला के लिए सबसे जरूरी है लुगदी तैयार करना. लेकिन अगर आपको नहीं पता कि आखिर इसे तैयार कैसे किया जाता है तो सबसे पहले अपको एक टब में पानी भर कर रखना है. इसके बाद कागज के छोटे-छोटे टुकड़े कर उन्हें टब के पानी में अच्छे से भिगो दिया जाता है.  

लुगदी बनाने की प्रक्रिया में इस बात ख्याल रहना चाहिए कि पानी कागजों के ऊपर हो और इसे एक हफ्ते पर बदला जाए. कागज के टुकड़े को पानी में भिगोए दो हफ्ते होने के बाद उसे टब से निकाल दिया जाता है. इतने दिनों तक पानी में रहने के कारण टूटे हुए कागज का में से छोटा छोटा रेशा निकल आता है और तब कागज लुगदी के लिए तैयार हो गया है. 

दो हफ्ते बाद कागज को पानी से निकाल कर ऊखल में कूटा जाता है और कूटने के क्रम में नीला थोथा व गोंद मिला कर उसे तैयार कर दिया जाता है. इसके बाद आप जिस वस्तु का आप आकार बनाना चाहते हैं ,उसका आकार दे सकते हैं. 

राजस्थान में भी मशहूर है ये कला 

पेपरमेशी कला राजस्थान में भी काफी फेमस है. वहां किसी भी त्योहार के अवसर पर आयोजित मेले के दौरान इसकी मांग बढ़ जाती है. राजस्थान में इस जब भी इस कला का इस्तेमाल कर कलाकृतियां बनाई जाती है तब इसमें पानी के रंगों का खूब प्रयोग किया जाता है. राजस्थानी पेपरमेशी में ज्यादातर खिलौने बनाए जाते हैं.  

कौन हैं सुभद्रा देवी 

सुभद्रा देवी का ससुराल मधुबनी जिला मुख्यालय के पास भिट्ठी सलेमपुर गांव में है. सुभद्रा देवी की तीन बेटियां और दो बेटे हैं. वर्तमान में वह अभी अपने छोटे बेटे के साथ दिल्ली में हैं. सुभद्रा देवी का मायका दरभंगा जिले में मनीगाछी के निकट बलौर गांव में है. जिस कला के लिए उनको नवाजा गया है वो भी अनोखा है. उन्हें पेपरमेशी कला में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ये पुरस्कार दिया जा रहा है. इससे पहले उन्हें 1980 में इन्हें राज्य पुरस्कार और 1991 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. 

मुख्यमंत्री ने दी बधाई

नीतीश कुमार ने ट्वीट करते हुए कहा कि बिहार के मधुबनी की सुभद्रा देवी के कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान मिलने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं. इनके अलावा बिहार के दो और अन्य लोगों को भी इस अवार्ड से नवाजा गया है. बता दें कि मधुबनी की सुभद्रा देवी को पेपरमेशी कला के लिए पद्मश्री पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है. 

बिहार के तीन लोगों को इस सम्मान से नवाजा गया

बिहार के तीन लोगों को पद्म श्री पुरस्कार मिला है. जिसमें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में सुपर थर्टी के मेंटॉर आनंद कुमार को पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा गया है. एक साल बाद नालंदा को दूसरा पद्मश्री पुरस्कार मिला है. बिहारशरीफ मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर बसवन बिगहा गांव के रहने वाले बुनकर कपिलदेव प्रसाद को पद्मश्री सम्मान मिला है. पिछले साल राजगीर के वीरायतन प्रमुख आचार्य चंदना जी को यह सम्मान मिला था.

कपिलदेव प्रसाद को यह सम्मान बुनकरों के लिए किए जा रहे कार्यों व बावन बूटी कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए मिला है. 

क्या है बावन बूटी

साल 2017 में आयोजित हैंडलूम प्रतियोगिता में खूबसूरत कलाकृति बनाने के लिए देश के 31 बुनकरों को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया था. इनमें नालंदा के कपिलदेव प्रसाद भी शामिल थे. यह हस्तकला से तैयार की जाने वाली एक विशेष साड़ी है. साधारण सूती और तार के कपड़े पर हाथ से की गई कारीगरी वाली यह साड़ी खूबियों के लिए जानी जाती है.

पूरी साड़ी में एक जैसी 52 बूटियां यानी मोटिफ होती है जिसके कारण उसे बावन बूटी कहा जाता है.  इस साड़ी में बौद्ध धर्म संस्कृति की भी झलक मिलती है.  बावन बूटी से सजी साड़ियों के अलावा, चादर, शॉल, रूमाल, पर्दे ,आदि भी बनते हैं. वहीं कपिलदेव प्रसाद के अलावा आनंद कुमार और सुभद्रा देवी को भी पद्मश्री से नवाजा गया है. सभी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी बधाई और शुभकामनाएं दी है.

क्या है पद्मश्री, क्यों है इतना सम्मानजनक 

पद्म श्री या पद्मश्री, भारत सरकार द्वारा आम तौर पर सिर्फ भारतीय नागरिकों को दिया जाने वाला सम्मान है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि, कला, शिक्षा, उद्योग, साहित्य, विज्ञान, खेल, चिकित्सा, समाज सेवा और सार्वजनिक जीवन आदि में उनके विशिष्ट योगदान को मान्यता प्रदान करने के लिए दिया जाता है. 

पद्म पुरस्कार देने की शुरुआत साल 1954 में हुई थी. इसके बाद साल 1978-1979 और साल 1993-1997 के बीच आई रुकावटों को छोड़कर हर साल दिया जाता रहा है. 

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